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डॉ डी के गर्ग
भाग- 6
ये लेख दस भाग में है , पूरे विषय को सामने लाने का प्रयास किया है। आप अपनी प्रतिक्रिया दे और और अपने विचार से भी अवगत कराये
शिवलिंग कथा
लोककथाः– इस संदर्भ मे एक पौराणिक लोक कथा है कि एक समय महाराजा शिव नग्न होकर ऋृषि पत्नी के द्वार पहुंचे तो ऋृषियों ने श्राप दिया कि तेरा लिंग पृथ्वी में स्थापित हो जाये। यह पृथ्वी में स्थापित हो गया और क्रीड़ा करने लगा। तीनों लोकों में त्राहिमाम मच गया तो देवताओं ने याचना की। आकाश वाणी हुई कि तुम पार्वती की याचना करो वह इसको शान्त कर देगी और पार्वती ने इसको शांत करने के लिए शिव के लिंग पर जल डालते रहने की सलाह दी। इसलिए शिव लिंग पर आज भीं जल डाल रहे हैं ताकि ठंडा रहे।
विश्लेषणः– सनातन धर्म में चाहे अनचाहे ऐसी कहानियां पुराणों में भरी पड़ी हैं। जिनके दो-दो अर्थ निकालते हैं। एक अश्लील है तो दूसरा आध्यात्मिक।
जिस समय ये कथा लिखी गई होगी तो समाज में इसके वास्तविक अर्थ का प्रचार प्रसार किया होगा अन्यथा ये कथा वही समाप्त हो जाती लेकिन समय के साथ अनर्थ आगे निकल गया और कथाकारों ने बिना विचारे इस अश्लील कथा को जपना शुरू कर दिया ।

इसका दाशर्निक रूप ऐसे हैं कि शिव नाम परमात्मा का है, पार्वती नाम प्रकृति का हैं और प्राण नाम लिंग का है। जब संसार में यह प्राण बिना प्रकृति के होता हैं तो त्राहिमाम मच जाती हैं जैसे मनुष्य के शरीर में जब अपान और प्राण दोनों की एक गति हो जाती है तो मानव मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। जिससे त्राहिमाम्-त्राहिमाम् हो जाती है।

इसी प्रकार जब प्राण रूपी लिंग संसार में बिना प्रकृति के आता है तो हाहाकार हो जाता हैं। देवता उस समय याचना करते हैं कि हे माता पार्वती ! तू आ उसमें यह प्रकृति माता पार्वती आती हैं।भग नाम ही प्रकृति का है जो लिंग रूपी प्राण को अपने में धारण कर शांत कर देती हैं। जैसे आयुर्वेद का आचार्य जब प्राण और अपान दोनों की सन्धि हो जाती हैं तो कोई औषधि व सोमलता देकर प्राणों को पृथक करता हैं और उसको यथार्थ गति पर लाता है इसी प्रकार प्राण को प्रकृति धारण करती हैं तो सृष्टि प्रारंभ हो जाती हैं। इस प्रकार जो सृष्टि को प्रारंम्भ करता है, उसका नाम शिव है।
जो शिवलिंग मुस्लिम आक्रमणकारियों से अपनी रक्षा नहीं कर पाया और जिसकी रक्षा के लिये चैबीस घंटे पुलिस तैनात रहती है। बनारस में स्थापित शिवलिंग को काशी विश्वनाथ व भगवान विश्वनाथ कहना क्या उचित हैं?क्या यह शिवलिंग सच में पूरे विश्व का नाथ है। आदि गुरु शंकराचार्य ने अपनी पुस्तक परापूजा के माध्यम से हर प्रकार की पाषाण पूजा अर्थात् मूर्ति पूजा को गलत कहा है।
तीर्थेषु पशु यज्ञेषु काष्ठे पाषाण-मृण्मये प्रतिमायां मनो येषां ते नरा मूढचेतसः।। स्वगृहे पायसं त्यक्त्वा भिक्षामृच्छति दुर्मतिः। शिलामृत् दारु चित्रेषु देवता बुद्धि कल्पिता।।
शंकराचार्य ने कहा है- लकड़ी, पत्थर, मिटटी आदि की मूर्ति में जिनका मन है, वे मनुष्य मूढ़ मति (पशु यज्ञेषु) वाले हैं जो अपने घर की खीर (अपने अन्दर के परमात्मा) को छोड़कर पत्थर, मिटटी, लकड़ी आदि में देवताओं की कल्पना करता हैं, वह अज्ञानी हैं व मूढ हैं।
मनुष्य के द्वारा बनाये गये मूर्ति आदि पदार्थ जड प्रकृति के होते हैं। प्रकृति पूजा क्या हैं ? प्रकृति जड़ है जैसे- अग्नि के आगे सौ साल तक हाथ जोड़े रहो पर जब उसमे हाथ ड़ालोगे वह हाथ को जला ही देगी, जो व्यक्ति तैरना नहीं जानता चाहे लाख पूजा कर ले गंगा उसे डुबो ही देगी इसलिये अपने अंदर के ईश्वर पर भरोसा करो क्योंकि किसी भी जड़ पदार्थ में न देखने की शक्ति और न सुनने की शक्ति होती है।

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