आरएसएस को अनपढ़ कहने वाले जरा अपने गिरेबां में झांकें, संघ पर टिप्पणी से पहले उसके बारे में जानें
आशीष राय
संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। द्वितीय सरसंघचालक रहे माधव राव सदाशिव गोलवलकर ‘श्री गुरुजी’ ने अपनी पढ़ाई बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से की।
‘संघ को जानना है, तो शाखा में आना होगा’ ऐसा संघ प्रमुख बारंबार कहते आ रहे हैं। परंतु अज्ञानता के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति नकारात्मक टिप्पणियां भी आती रहती हैं। चर्चा में रहने के लिए भी ऐसा होता आया है। हाल ही में संघ को एक और नकारात्मक टिप्पणी ‘अनपढ़’ से नवाजा गया। यह टिप्पणी एक अति महत्वाकांक्षी अविश्वासी कवि से आयी है। जो अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई तक पूरी नहीं कर पाया। जिसने राजनैतिक इच्छा पूरी न होने पर अपने साथियों तक छोड़ दिया हो वह एक ऐसे संगठन पर टिप्पणी कर बैठा जिसके विचारों से अभिभूत होकर बहुत सारे युवा संघ कार्य को अपना पूर्ण समय देकर प्रचारक जीवन में हैं। इसमें से कई युवा आईटी प्रोफेशनल्स, चिकित्सक, अभियंता इत्यादि क्षेत्रों से हैं जिन्होंने लाखों के पैकेज को ठुकरा कर प्रचारक जीवन अपनाया है। कवि ने अपनी इस टिप्पणी के लिए माफी तो मांग ली परंतु उनकी इस टिप्पणी से संघ के करोड़ों समर्थकों की भावनाएं आहत हुई हैं।
संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। द्वितीय सरसंघचालक रहे माधव राव सदाशिव गोलवलकर ‘श्री गुरुजी’ ने अपनी पढ़ाई बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से की। श्रीगुरु जी प्राणिशास्त्र में परास्नातक, विधि स्नातक थे। बताते हैं कि यदि उन्होंने संघ कार्य करने में रुचि नहीं दिखाई होती तो वह जगतगुरु शंकराचार्य की उपाधि से विभूषित होते। तृतीय सरसंघचालक मधुकर दत्तात्रेय उपाख्य बाला साहेब देवरस ने भी विधि स्नातक की उपाधि ली थी। चतुर्थ सरसंघचालक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र के विख्यात प्रोफेसर थे। पांचवें सरसंघचालक केसी सुदर्शन सिविल इंजीनियर थे तो वर्तमान सरसंघचालक ने पशु चिकित्सक की उपाधि ली। इन सब के अतिरिक्त संघ के विभिन्न दायित्वों का निर्वहन कर रहे अधिकांश कार्यकर्ताओं एवं प्रचारकों ने उच्चतर डिग्रियां हासिल कर रखी हैं।
संघ का मूल कार्य शाखा तो है ही परंतु शाखा में व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया से गुजरे स्वयं सेवक समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर उत्कृष्ट योगदान कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई अनुषांगिक संगठन विभिन्न क्षेत्रों में अपना सर्वोत्तम करने का प्रयास करते ही रहते हैं शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती, राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ और इतिहास संकलन समिति सीधे-सीधे बौद्धिक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। जिस वेद को लेकर नकरात्मक टिप्पणी की गई है उन वेदों को सबसे ज्यादा पढ़ने वाले, समझने वाले व समझाने वाले यदि कहीं मिल सकते हैं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उसके अनुषांगिक संगठन संस्कृत भारती में आसानी से मिल सकते हैं।
अपनी गतिविधियों के माध्यम से प्रयास करना कि किस प्रकार परिवारों में लोगों के आपसी संबंध मधुर बने रहें, रिश्ते प्रगाढ़ हों। समाज में सद्भाव व समरसता बनी रहे। पर्यावरण प्रदूषित न हो। वैश्विक संकटों को भांपकर पर्यावरण संरक्षण एवं संरक्षण की चिंता करना और समरसता व परिवारों में समन्वय की बात करना अनपढ़ों की श्रेणी में आता है क्या।
यदि स्वयं की चिंता न करते हुए राष्ट्र प्रथम की चिंता करना अनपढ़ की श्रेणी में आता हो तो संघ से बड़ा अनपढ़ संगठन तो कोई है ही नहीं। किसी विपत्ति, आपदा में सरकार या उसके तंत्र की उम्मीद छोड़ वह क्या कर सकते हैं, यह संघ के स्वयंसेवकों ने स्वयं करके दिखाया है। चरखी दादरी का विमान दुर्घटना कांड हो, विभिन्न रेल दुर्घटनाएं हों, सड़क दुर्घटनाएं हों, बाढ़ हो, तूफान हो, सुनामी हो, जब-जब विषम परिस्थितियों में समाज को आवश्यकता पड़ी, संघ के स्वयंसेवक अपनी जान की चिंता किए बगैर सेवा के लिए तत्पर रहे। भयंकर बीमारी कोरोना में जब पिता पुत्र के शव के नजदीक जाने से डरता था और पुत्र पिता के शव के नजदीक जाने से, रिश्तेदार तक दूर दूर रहते थे, तब उस समय श्मशान घाट पर सबसे ज्यादा किसी की संख्या दिखती थी तो संघ के स्वयंसेवकों की दिखती थी। उस कालखंड में भी घर-बाहर सड़क पर निकल निःस्वार्थ सेवा से संघ के स्वयंसेवकों ने ही सम्पूर्ण शक्ति लगा रखी थी।
संघ की शाखा से निकले तमाम स्वयंसेवक देश के विभिन्न संस्थानों में उच्च पदों पर आसीन हैं। शिक्षा का क्षेत्र, खेल का क्षेत्र, विज्ञान का क्षेत्र, कानून का क्षेत्र, सेना का क्षेत्र, शोध का क्षेत्र, प्रशासन का क्षेत्र, राजनीति का क्षेत्र सहित अनेकों क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवक आज अपना उत्कृष्ट योगदान कर रहे हैं। विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन के ऊपर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से पूर्व उसके पूरे संगठन के बारे में जानकारी अवश्य कर लेनी चाहिए। 1925 में प्रारंभ हुआ यह संगठन आज विश्व के लगभग 100 से अधिक देशों में अपना कार्य कर रहा है। वैश्विक स्तर पर सबसे विशाल संगठन के ऊपर नकारात्मक टिप्पणी उस संगठन के लाखों समर्थकों की भावनाएं आहत करती हैं। आजकल टिप्पणी करके माफी मांग लेना आम बात हो गयी है, परंतु ध्यान रखना होगा कि किसी गुण विशेष के कारण मिली सफलता यदि अहंकार में बदल जाए तो पराभव में भी समय नहीं लगता।