विधि और विधि का दैवीय सिद्धांत क्या है ?
ऋषिराज नागर (एडवोकेट)
- विधिशास्त्रियों ने अपनी-2 विचारधारा के अनुसार विधि (Law) की परिभाषाएं दी हैं-
- मान्टेस्क्यू- मान्टेस्क्यू के अनुसार’ व्यापक अर्थ में विधियां प्राकृतिक वस्तुओं के पारस्परिक सम्बन्धों का निर्देश करती हैं। ईश्वर की अपनी विधियां हैं। भौतिक संसार की तथा मनुष्यों की अपनी विधियां हैं।”
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प्रो. होलैन्ड के अनुसार” बिधे पॉवर का सामान्य नियम है। उनके अनुसार, व्यवहार में वे ही कार्य आयेंगे जो कि एक निश्चित अधिकारी द्वारा लागू किये गये हैं जो कि सर्वशक्तिमान है।’
- ऑस्टिन के अनुसार विधि राज्य का आदेश है । ऑस्टिन के मुताबिक राज्य का सर्वोच्च सत्ताधारी होना चाहिए तथा विधि के पीछे है सम्प्रभु की शक्ति होनी चाहिए जिससे कि लोक विधि का सम्मान करें।
- हॉब्स Hobbes : के अनुसार-“विधि कक्ति के या व्यक्तियों के समूह के आदेश हैं। जिन्हें अपने आदेशों के दबाव डालकर मनवा लेने का सम्बल प्राप्त ‘है।
5.पैटन Paton – पैटन ने विधि को नैतिकता का पूरक माना है पैटन के अनुसार विधि में कर्त्तव्य तथा अधिकार दोनो को ही महत्व प्राप्त है।- सेविनी Savigny के अनुसार विधि (low) का वास्तविक स्रोत जन चेतना है।
विधि के स्रोत- (Sources of Low)
विधि का स्रोत से तात्पर्य विधि का ‘उदगम’ या ‘प्रारम्भ’ से हैं। निम्नलिखित को विधि के स्रोत के रूप में मान्यता हैं।
1 रूढ़ि (custam) कानून में रूढि का प्रमुख स्थान है। आदिम समुदाय में यदि कोई विधि थी, तो वह शुरू में रुढ़ि जन्म विधि थी।
2- न्यायिक पूर्व निर्णय – भूतकालीन निर्णयों को मार्ग दर्शक के रूप में मानते हुए भावी निर्णयों के प्रति लागू करना है। बेन्थम- ने तो इसे न्यायाधीश निर्मित विधि कहा है तथा ऑस्टिन इसे न्याय पालिका की विधि मानते हैं।
3-विधायन (ugistation) वर्तमान समय में विद्यायन को विधि का अच्छा व प्रमुख स्रोत माना गया है, क्योंकि वर्तमान राज व्यवस्था के विधानमंडलों द्वारा निर्मित(MP,MLA द्वारा) विधि को ही कानून के रूप में प्रमुख रूप से स्वीकार किया गया है। विधायन को लोकमत का समर्थन भी प्राप्त होता है।
4- साम्प Equity – कॉमन विधि के दोषों को दूर करने के लिए साम्य को अपनाया गया था। धीरे-2 साम्य का स्थान विधि के रूप में स्थापित होने लगा। साम्य का विकाश रिट पद्धति द्वारा चान्सरी न्यायालयों द्वारा किया गया है।
5-धर्म (Religion)- यह माना गया है कि विधि की उत्पत्ति देवी शाक्त से है। हिन्दू धर्म में वेदो को ईश्वर द्वारा प्रदत्त या ईश्वर का वाक्यकथन कहा गया है तथा मुस्लम धर्म में मुस्लिम विधि को कुरान द्वारा प्रदत्त, युनानी विधि में, थेमेस्टीज को दैवीय शक्ति कहा गया है। अंग्रेजी विधि में भी धर्म का स्थान है।
6- नैतिक धारणाएँ (Moral cameepts) नैतिक धारणाओं का उपयोग भी विधि में किया जाता है, जैसे कि लाटरी पर प्रतिबन्ध, सती प्रथा पर प्रतिबुध, दहेज विरोधी कानून, पशु अत्याचार, पुनर्विवाह का कानून नैतिक धारणाओं पर है।
7- सामाजिक मान्यताएं तथा लोकमत – किसी समाज की मान्यताएं तथा लोगों का एकमत वहां के कानून को प्रभावित करते हैं जैसे -संपत्ति कानून में परिवर्तन, पशुओं के खेलों में कानूनी हस्तक्षेप आदि ।
8-मानक विधि ग्रंथ – विधि के स्रोत के रूप में हमारे में मानक विधि ग्रंथ है। रोमन विधि ज्यादातर ऐसे ही मानक ग्रंथों पर आधारित है ।
9- विधि वेत्ताओं की राय – न्यायाधीशों, वकीलों तथा विधि प्राध्यापकों का प्रभाव विधि पर पड़ता है,इसलिए विधि के स्रोत के रूप में विधि वेत्ताओं का स्थान महत्वपूर्ण है।
जब हम विधि के दैवीय सिद्धांत की बात करते हैं तो इसका अर्थ होता है कि विधि परमपिता परमेश्वर की न्याय व्यवस्था के अनुकूल आचरण करने वाली व्यवस्था का नाम है। जैसे परमपिता परमेश्वर प्रत्येक जीवधारी को उसके कर्म के अनुसार उसका फल प्रदान करता है और उसमें किसी भी प्रकार का पक्षपात या अन्याय नहीं करता, वैसे ही राजा का भी फर्ज है कि वह भी अपनी प्रजा को न्याय देते समय ऐसी ही विधि का पालन करे जो किसी के साथ अन्याय या पक्षपात न करने वाली हो। लोगों ने राजा के दैवीय सिद्धांत विधि के इस दैवीय सिद्धांत की व्याख्या गलत करते हुए इसे तानाशाही प्रवृत्ति का प्रतीक बताया है, पर सच यही है कि धर्म और विधि दोनों एक हैं जो परमपिता परमेश्वर की पक्षपातशून्य न्याय व्यवस्था की प्रतिपादक हैं।
इसके विपरीत जब कोई व्यक्ति या व्यक्ति समूह आदेश देकर किसी वर्ग विशेष को उसके अनुसार चलाने का प्रयास करता है तो वह उसकी तानाशाही होती है। उसे विधि नहीं कह सकते। आदेश किसी भी दृष्टिकोण से विधि का समानार्थक नहीं हो सकता। इसलिए आदेश से किसी विधि का निर्माण भी नहीं हो सकता।