बिखरे मोती : मन की व्याकुलता के संदर्भ में-
मन की व्याकुलता के संदर्भ में-
माया संचय में लगा,
मनवा रहे अधीर ।
संचय कर हरि ओ३म का,
आ रहेया वक्त आखीर॥2175॥
अध्यात्म अर्थात आत्मा के स्वभाव में जीना ही मन की शांति का स्रोत है:-
जो शान्ति अध्यात्म में ,
नहीं माया के पास।
मत भटकै संसार में,
कुंजी तेरे पास॥2170॥
छल कपट और झूठ से अर्जित दौलत और शौहरत कभी स्थायी नहीं होती :-
माया छल प्रपंच की,
एक दिन ऐसे जाप।
जैसे नीले आकाश में,
इंद्र-धनुष मिट जाय॥ 2177॥
दुष्टऔर गोखरू दोनों का स्वाभाव कष्टकर होता है:-
माली न बोवै गोखरू,
उगते अपने आप।
दुष्ट – गोखरू एक से,
दोनों दे संताप॥2178॥
धरती के रत्न
धरती के ये रत्न है,
आलिम, अदब़ और आब़।
सृष्टि को सज्जित करें,
ईश-कृति नायाब॥2179॥
वाचाल और दुर्बुद्धियों के संदर्भ में –
बिन लाइट बिन ब्रेक के,
मनुज बहुत मिल जाय।
इनसे दूरी ही भली,
बिना बात टकराय॥2180॥
खल और संत के संदर्भ में –
खल से तो दूरी भली,
संत के रहो समीप।
संत तो ऐसे जानिये,
मोतिन से भरा सीप॥2181॥
यदि स्वर्ग की चाह है तो –
नाम ले हरि ओ३म का,
जो चाहे हरीधाम।
कर भला संसार का,
हो करके निष्काम॥2182॥
नकारात्मक और सकारात्मक सोच के संदर्भ में –
कौआ जैसा वजीर हो,
बने बिगाड़े काम।
हँसा जैसा वजीर हो,
करे नेकिनिष्काम॥2183॥
कौन किस में किससे श्रेष्ठ है-
गीता, वेद तो श्रेष्ठ है,
पशुओं में है गाय।
नदियों में गंगा श्रेष्ठ है,
नरों में गुरु कहाय॥2184॥
आशा और निराशा के संदर्भ में –
निराशा को मत पालिये,
मंजिल से भटकाय।
आशा – अध्यवसाय से,
अभीष्ट लक्ष्य मिल जाय॥2185॥
क्रमशः
मुख्य संपादक, उगता भारत