मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा अध्याय – 19 ( ख) अकबर बनाता रहा नई – नई योजनाएं

अकबर बनाता रहा नई नई योजनाएं

जब अकबर ने देखा कि जयमल उसकी सारी योजनाओं पर पानी फेर रहा है तो उसने अपने सैनिकों को एक लंबी सुरंग खोदने का आदेश दिया। स्पष्ट है कि यह सुरंग कहीं दूर जंगल से लाकर किले की दीवारों के नीचे लाकर समाप्त करनी थी। अकबर की योजना थी कि इस सुरंग में बारूद भरकर और उस में अचानक आग लगाकर किले की दीवारों को पूर्णतया नष्ट कर दिया जाए। परंतु अकबर की यह योजना भी जयमल जैसे वीर देश भक्तों की नजरों से बच नहीं सकी । उसे जैसे ही अकबर की इस योजना की जानकारी हुई तो उसके सैनिकों ने सुरंग खोदती मुगल सेना पर अचानक हमला कर दिया। जिससे अकबर की यह योजना भी पूर्ण होने से पहले ही ध्वस्त हो गई।
अकबर यह भली प्रकार जान चुका था कि महाराणा उदय सिंह के लिए इस समय जयमल एक मजबूत ढाल के रूप में काम कर रहा है। उसकी वीरता, देशभक्ति , शौर्य और पराक्रम को देखकर अकबर घबरा गया था। अबुल फजल जैसे चाटुकार इतिहासकार ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि जयमल की पराक्रम पूर्ण नीति से अकबर बहुत अधिक भयभीत हो गया था।

जयमल का जज्बा देखकर भयभीत अकबर हो गया।
चित्तौड़ लेने का अहद तब रातों-रात बिखर सा गया।।

ऐसी परिस्थितियों में अकबर ने हमारे वीर योद्धाओं में परस्पर फूट डालने का प्रयास किया। उसने राजा टोडरमल के हाथों जयमल को एक पत्र भिजवाया। उस पत्र में अकबर ने महाराणा उदय सिंह और जयमल के बीच फूट डालने के उद्देश्य से प्रेरित होकर लिखा कि तुम महाराणा उदय सिंह के लिए अनावश्यक ही इतना परिश्रम कर रहे हो। यदि आपने यह किला मुझे जीत लेने दिया तो इसको मैं आपको ही सौंप दूंगा। तुम्हें इस किले के लिए अपने प्राणों की बाजी नहीं लगानी चाहिए।
स्पष्ट बात यह थी अकबर किसी भी प्रकार से इस किले पर अपना अधिकार स्थापित कर लेना चाहता था। इसके लिए उसने हमारे जयमल जैसे देशभक्त वीर योद्धा के समक्ष टूटने का प्रस्ताव रखा। यद्यपि अकबर को इस बात का ज्ञान नहीं था कि ऐसा प्रस्ताव वह जिस देशभक्त के सामने रख रहा है उसके भीतर देशभक्ति कूट-कूट कर भरी है। वह ऐसे अनेक प्रस्तावों को भी लात मार देगा, परंतु अपनी देशभक्ति से डिगेगा नहीं। देश के प्रति निष्ठावान लोगों को कभी खरीदा नहीं जा सकता । अपने सम्मान और अपने देश के लिए वह मर मिट सकते हैं पर पीछे नहीं हट सकते।

संकल्प से पीछे नहीं हटे जयमल

जब जयमल को अकबर के इस प्रस्ताव को जाकर दिया गया तो उसने एक इंच भी पीछे हटने से इंकार कर दिया। उसने संदेशवाहक से स्पष्ट बोल दिया कि जाकर अपने अकबर से कह देना कि जयमल को अपनी देशभक्ति से पीछे हटाने वाला अभी कोई पैदा नहीं हुआ है। अपने संकल्प के लिए वह समर्पित है और जीते जी मेवाड़ की एक इंच भूमि पर भी अकबर का अधिकार स्थापित नहीं होने देगा। मेरे जीते जी मुगल सेना महाराणा उदय सिंह के दुर्ग में प्रवेश नहीं कर सकेगी।

जयमल में जब तक जान है और फत्ता उसके साथ है।
ना बाल बांका हो वतन का ,गर कमान उनके हाथ है।।

बताया जाता है कि अकबर इस आक्रमण में हार होने के भय से इतना अधिक आशंकित हो गया था कि उसने अजमेर शरीफ की मन्नत भी मांगी थी। उसे यह भली प्रकार ज्ञात था कि हिंदू वीर योद्धा युद्ध में कभी पीछे नहीं हटते हैं । उनकी देशभक्ति असंदिग्ध रहती है और वह जिसे एक बार अपना शत्रु मान लेते हैं उसे उस स्थिति में ही छोड़ते हैं जब वह अपने प्राणों की भीख मांगने लगे या युद्ध के मैदान से पीठ दिखा कर भागने लगे।
उधर अकबर के सैनिक निरंतर चित्तौड़गढ़ के किले की दीवारों पर बम वर्षा कर रहे थे। जिसमें उन्हें एक ओर से इतनी सफलता मिल गई थी कि दीवार को स्थाई रूप से तोड़ने में वह सफल हो गए थे। किले की दीवार का एक भाग टूट गया था। इसके उपरांत भी जयमल ने अपनी सूझबूझ और वीरता का परिचय देते हुए दीवार के टूटे हुए भाग पर रुई को तेल से भिगो कर आग लगवा दी जिससे कोई मुगल सैनिक अंदर नहीं आ सके। अकबर भली प्रकार यह जान गया था कि किले की टूटी हुई दीवारों की मरम्मत कराने में किसका मस्तिष्क काम कर रहा है? जयमल अपनी वीरता और पुरुषार्थ के बल पर किले की रक्षा करने में समर्थ होता जा रहा था परंतु 1568 ई0 के प्रारंभ में रात को किले की दीवार की मरम्मत कराते समय जयमल अकबर की बंदूक की गोली से मारा गया।

दिया सर्वोत्कृष्ट बलिदान

अकबर के पास एक बहुत ही विश्वसनीय बंदूक थी, जिसका नाम “संग्राम” था। जब अकबर ने देखा कि किले की दीवार की मरम्मत का कार्य एक व्यक्ति रात्रि में खड़ा होकर करवा रहा है तो उसने शाही वेशभूषा में खड़े उस व्यक्ति पर नीचे से गोली का निशाना साधा और उसकी गोली अपने सही निशाने पर जाकर उस शाही वेशभूषा में खड़े व्यक्ति को जाकर लगी। यह व्यक्ति मां भारती का सच्चा सपूत वीरता और शौर्य का प्रतीक जयमल राठौड़ ही था। जयमल उस समय हमारी आन - बान - शान का प्रतीक बन चुका था। वह पराक्रम और शौर्य की जीती जागती मिसाल था। उसकी वीरता अनेक लोगों को संबल देती थी। उसकी देशभक्ति अनेक लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत थी। उसका दृढ़ निश्चय हम सबको प्रतिज्ञावान बनाता था। जब वह चलता था तो हमारा शौर्य मचलने लगता था । जब वह बोलता था तो हमारी भुजाएं फड़कने लगती थीं और जब वह शत्रु सेना पर वज्र की भांति प्रहार करता था तो उसके एक संकेत पर अनेक वीर सैनिक अपना शौर्य दिखाते हुए मां भारती के लिए बलिदान देने पर उद्धत हो जाते थे।

देशहित बलिदान देकर वीर जहां से चल दिया,
शत्रु का अभिमान जिसने शांत सा था कर दिया।

आज जब ऐसी वीरता के अजस्र स्रोत का अंत होने का समाचार किले के भीतर पहुंचा तो चारों ओर शोक की लहर दौड़ गई। उसके उपरांत भी हमारे वीर योद्धा सैनिकों ने किसी भी प्रकार से अपने मनोबल को टूटने नहीं दिया। उन्होंने समझ लिया कि जयमल के लिए अब सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम जितने भर भी किले के भीतर हैं वे सब युद्ध के लिए निकल पड़े और मुगल सेना को काटते हुए अपना बलिदान दें। वीरता के साथ युद्ध करने का संकल्प लेकर 30000 की मेवाड़ी सेना मुगलों पर हमला के लिए कटिबद्ध हो जाती है।
हमारे देशभक्त हिंदू वीर योद्धा जहां उस समय जयमल जैसे शूरवीर के नेतृत्व में अकबर के साथ घनघोर युद्ध कर रहे थे, वहीं आमेर के राजा भगवानदास राठौर जैसे लोग भी थे जो उस समय अकबर का साथ दे रहे थे। यद्यपि भगवान दास भली भांति जानते थे कि मेवाड़ी सपूत जान दे देंगे लेकिन हार नहीं मानेंगे। हम सबके लिए यह कितने गर्व और गौरव का विषय है कि जहां अपने लोग भी शत्रु सेना के साथ खड़े हों वहां भी हमारे वीर योद्धा मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणपण से कार्य कर रहे थे।

अकबर भली प्रकार जानता था …..

किले के भीतर यह बात अब पूर्णतया सुनिश्चित हो चुकी थी कि अकबर की जीत इस युद्ध में निश्चित है और हमारी मुट्ठी भर सेना अब जल्दी ही समाप्त हो जाएगी। ऐसी स्थिति में किले के भीतर बैठी वीरांगनाओं ने जौहर के लिए तैयारी करनी आरंभ कर दी थीं। भगवानदास राठौर यह भली प्रकार जानता था कि भारत के देशभक्त वीर योद्धा जब शत्रु पर टूटते हैं तो वह या तो मरकर पीछे हटते हैं या फिर मारकर पीछे हटते हैं। ऐसी स्थिति में इन योद्धाओं को अपने मरने का तनिक भी डर नहीं होता है। सर पर कफन बांध कर बाहर निकलने की बात विश्व इतिहास में केवल और केवल हिंदू वीर योद्धाओं से ही सीखी जा सकती है।

फत्ता ने दिखाया अपना पराक्रम

उधर फतेह सिंह सिसोदिया ( जिसे इतिहास में फत्ता के नाम से जाना जाता है ) भी अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हुए अकबर की सेना का संहार करते जा रहे थे। उसके जैसी वीरता संभवत मुगल सैनिकों ने उससे पहले नहीं देखी होगी। फत्ता आज जिधर भी निकलता था उधर ही मुग़ल सैनिक भागते हुए दिखाई देते थे। उसकी वीरता को देखकर भगवानदास राठौर को भी यह विश्वास नहीं हो रहा था कि वह किसी व्यक्ति को युद्ध करते देख रहा है या फिर कोई देवदूत आकर राक्षसों का संहार कर रहा है?
फत्ता मेवाड़ के आमेट ठिकाने का सामंत था। अकबर के चित्तौड़ आक्रमण के समय महाराणा उदयसिंह ने उसे जयमल के साथ किले की रक्षा का भार सौपा था। जयमल के मारे जाने पर भी फत्ता ने सेना का नेतृत्व किया और फरवरी 1568 ई0 में लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हो गया था। उसकी वीरता और देश भक्ति ने लोगों को प्रभावित किया था।
कहा जाता है कि इस भीषण युद्ध में रायमल राठौड़ और फतेह सिंह सिसोदिया ने मुगल सेना में इतनी मारकाट मचाई कि इनकी वीरता देखकर मुगल सम्राट अकबर दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो गया। युद्ध में जयमल और फत्ता के मारे जाने के बाद अकबर ने इनको झुक कर प्रणाम किया था।
अकबर हमारे इन दोनों वीर योद्धाओं की वीरता और पराक्रम से इतना अधिक प्रभावित हुआ था कि उसने आगरा के किले के द्वार पर जयमल की गजारूढ़ पाषाण प्रतिमा स्थापित करवाई थी। बीकानेर के जूनागढ़ किले के द्वार पर भी महाराजा रायसिंह ने जयमल एवं फत्ता की मूर्ति लगवाकर उनकी वीरता और देश भक्ति को सम्मान प्रदान किया था।चित्तौड़ के मुख्य दर्शनीय स्थलों में एक जयमल और फत्ता के महल भी है जो चित्तोडगढ के किले में स्थित है।

कल्ला जी राठौर के बारे में

अकबर और महाराणा उदयसिंह के बीच हुए इस युद्ध में रायमल राठौड़ (मेड़तिया) और फतेह सिंह सिसोदिया वीरगति को प्राप्त हुए। पैर में गोली लगी होने के उपरांत भी रायमल राठौड़ मेड़तिया वीर कल्लाजी राठौड़ के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे। कल्लाजी राठौड़ के बारे में हमें जानकारी मिलती है कि उनका जन्म आश्विन शुक्ल अष्टमी विक्रम संवत 1544 ईसवी को सामियाना गांव मेड़ता नागौर में हुआ था । इनके पिता का नाम अचल सिंह राठौड़ था।  इनकी माता जी का नाम श्वेत कवर था। वीर कल्लाजी जयमल मेड़तिया तथा मीराबाई के भतीजे थे। अपने गुरु भैरवनाथ से उन्होंने योग की शिक्षा ली थी। जिससे स्पष्ट है कि उनकी वीरता में सात्विकता का भाव समाविष्ट था।
जब कल्लाजी का विवाह शिवगढ़ के शासक कृष्ण दास की बेटी राजकुमारी कृष्णकांता के साथ हो रहा था तो उसी समय चित्तौड़गढ़ के महाराजा उदय सिंह ने संदेश भेजा कि अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया है और आपको अपनी सेना सहित इसी समय मेवाड़ की रक्षा के लिए आना पड़ेगा। इसके बाद वे वायु वेग से मेवाड़ की ओर प्रस्थान कर देते हैं। इससे पूर्व विवाह संपन्न कर अपनी पत्नी को वीर कल्ला जी ने वचन दिया कि “  मैं आपसे कैसे भी हालत में मिलने अवश्य आऊंगा”। वे अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पहुंचे।
1568 ईस्वी को जयमल और कल्लाजी ने केसरिया धारण किया। इस युद्ध में वीर जयमल मेड़तिया  कल्लाजी ने अद्भुत वीरता दिखाई थी। युद्ध के दौरान राठौड़ जयमल के पाँव में गोली लगी। इसके उपरांत भी उनका मनोबल टूटा नहीं था और उनकी युद्ध करने की तीव्र इच्छा थी। पर उनसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। कल्ला जी ने यह देखकर जयमल के दोनों हाथों में तलवार देकर उन्हें अपने कन्धे पर बैठा लिया। इसके बाद कल्ला जी ने अपने दोनों हाथों में भी तलवारें ले लीं। तब दो पैर वाले आदमी ने चार हाथों से मुगल सेना को काटना आरंभ किया था। उसकी ऐसी अद्भुत वीरता को देखकर अकबर ने उसे चारभुजा वाला देवता कहा था। जब कल्ला जी का सिर कटकर धरती पर गिर गया था तो उसके बाद भी वह अपने धड़ से ही युद्ध करते रहे थे।

कल्लाजी भल्ला बने , देश के थे सिरमौर।
इतिहास में सम्मान है, ऊंची पाई ठौर ।।

कहा तो यह भी जाता है कि जब युद्ध पूर्ण हुआ तब कल्लाजी का बिना सिर बाला धड़ चित्तौड़ से चलकर 180 मील दूर सलूंबर के पास रनेला आया और पत्नी के पास आकर शांत हो गया । हमें नहीं लगता कि वह धड़ इतनी दूर चल कर आ गया होगा। ऐसी बातों में अतिशयोक्ति हो सकती है। बहुत संभव है कि उनका सिर कटा धड़ उनकी धर्मपत्नी को लाकर दिया गया होगा। जिसके साथ उस वीरांगना ने सती होने का निर्णय लिया होगा। कल्लाजी विक्रम संवत 1624 ई0 को वीरगति को प्राप्त हुए थे।
इस प्रकार राजस्थान के मेवाड़ के महाराणा वंश में जयमल, फत्ता और कल्ला जी का बलिदान बहुत ही प्रेरणास्पद है।
कर्नल टॉड ने हमारे इन दोनों महावीरों के लिए लिखा है कि :- “यह जयमल फत्ता उस समय के अंधकार में जगमगाने वाले प्रकाश पुंज हैं, जिनकी वीरता की गाथा प्रलय काल तक अपना दिव्य प्रकाश संसार में फैलाते रहेंगी। इन दोनों वीरों के नाम की महिमा उस समय तक गाई जाएगी जब तक राजपूत जाति के दम में दम रहेगा। राजपूताने की तरह संसार के और भी किसी देश को ऐसी वीर जननी और वीर सपूतों को गर्भ में धारण कर वीरगर्भा कहलाने का सौभाग्य प्राप्त है, कभी नहीं।”

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

(हमारी यह लेख माला आप आर्य संदेश यूट्यूब चैनल और “जियो” पर शाम 8:00 बजे और सुबह 9:00 बजे प्रति दिन रविवार को छोड़कर सुन सकते हैं।
अब तक रूप में मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा नामक हमारी है पुस्तक अभी हाल ही में डायमंड पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हो चुकी है । जिसका मूल्य ₹350 है। खरीदने के इच्छुक सज्जन 8920613273 पर संपर्क कर सकते हैं। इसे आप दिनांक 25 फरवरी 2023 से दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित होने वाले विश्व पुस्तक मेले में हॉल नंबर 5 , स्टाल नंबर 120 – 124 से भी खरीद सकते हैं।)

 

Comment: