ऐ आसमां ! बता दे तेरी ऊंचाई क्या है?
विस्तार क्या है तेरा तेरी खुदाई क्या है?
मैं पूछती हूं तुझसे क्यों मौन तू खड़ा है?
अपना पता बता दे तेरी सच्चाई क्या है?
छू के रहूंगी एक दिन तेरी ऊंचाई को मैं।
विस्तार खोज लूंगी तेरी सच्चाई को मैं।।
दादा की मैं दुआ हूं ,अरमान हूं पिता का।
मम्मा की मैं हूं मूरत, सम्मान हूं वतन का।।
नाना की मैं हूं लाडो, बगिया की हूं मैं कोयल।
गाती हूं गीत प्यारे, दिल होते सबके घायल।।
महका रही हूं गुलशन गुलाब का मैं गुल हूं।
वक्त वह भी होगा जब दुनिया बनेगी कायल।।
जिंदगी सुनहरी होवे ,आशीष मुझको देना।
कोमल सी मैं कली हूं, संबल भी मुझको देना।।
दुलार देते चलना, सबसे बड़ा है गहना।
तारों के मोतियों की माला भी मुझको देना।।
डॉ राकेश कुमार आर्य