-प्रियांशु सेठ (वाराणसी)
प्रसिद्ध योगगुरु बाबा रामदेव ने बयान दिया कि “ज्योतिष विद्या ने क्यों नहीं कोरोना काल के बारे में पहले जानकारी दी। सारे मुहूर्त भगवान ने बना रखे हैं। ज्योतिषी काल, घड़ी, मुहूर्त के नाम पर बहकाते रहते हैं। बैठे-बैठे ही किस्मत बनाते हैं। किसी ज्योतिष ने यह नहीं बताया कि कोरोना आने वाला है।…”
बाबा रामदेव के इस बयान से पौराणिक मण्डल में खलबली मच गई। एक ओर वैदिक एजुकेशनल रिसर्च सोसायटी के संस्थापक पं० शिवपूजन शास्त्री ने बाबा रामदेव को शास्त्रार्थ की चुनौती दे दी। दूसरी ओर काशी विद्वत परिषद के महामन्त्री डॉ० रामनारायण द्विवेदी ने कहा कि बाबा रामदेव अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं।
दरअसल पौराणिक मण्डल ने कभी ज्योतिष के यथार्थ स्वरूप को समझा ही नहीं। अनार्ष ग्रन्थों को पढ़कर उसने फलित ज्योतिष की भ्रामक अवधारणाओं को स्थापित किया और पूरे मनुष्य समाज को कर्महीन तथा फल मात्र का उपासक बना दिया। आधुनिक युग के सुविख्यात समाज सुधारक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ “सत्यार्थप्रकाश” में फलित ज्योतिष पर कुछ ऐसे विचार प्रकट किए जिसके सामने फलित ज्योतिष की समस्त अवधारणाएं धराशायी हो गईं।[i]
इसमें कोई सन्देह नहीं कि ज्योतिष का प्रतिपादन वेद से है। वेद के अनुसार ज्योतिष के अधिकार क्षेत्र में- बीजगणित, अंकगणित, खगोल विद्या (Astronomy), मौसम विज्ञान (Meteorology) और भूगर्भ विज्ञान (Geology) आते हैं। इस वैज्ञानिक ज्योतिष विद्या को यजुर्वेद २२/२८ में इस प्रकार स्थापित किया है-
नक्षत्र, उपग्रह, दिन, रात्रि, पक्ष, मास, ऋतुएं, ऋतु-जन्य परिवर्तन, संवत्सर, द्यौ, अन्तरिक्ष, पृथिवी, चन्द्रमा, सूर्य, रश्मियाँ, ८ वसु, ११ रुद्र, १२ आदित्य, मरुत (१० प्राण, वायु, पवनादि) का उत्तम और यज्ञीय सुष्ठु क्रियाओं द्वारा सम्प्रयोग, जिससे विश्व के देव-देवियों (आप्त स्त्री-पुरुषों), मूल और शाखाओं, वनस्पतियों, फूलों, फलों और औषधियों के गुणों में वृद्धि हो तथा वे शुद्ध, पवित्र और यज्ञीय (श्रेष्ठ एवं कल्याणकारी) सुहुत हों।[ii]
यहां फलित ग्रह, नक्षत्र, जन्मपत्र, राशि, मुहूर्त, शकुन, अपशकुन जैसी अवैदिक क्रिया का कोई विधान नहीं है; जैसा कि पौराणिक मण्डल समझता रहा है। अब वेदों में खगोलीय, मौसमी और भूगर्भीय विद्या का वर्णन पढ़िए-
•’एता उ त्या उषस: केतुमक्रत पूर्वे अर्धे रजसो भानुमञ्जते।’ -ऋ० १/९२/१
अर्थात् जब उषायें (या उषा रश्मियां) अरुण वर्ण (लाल रंग) के प्रकाश का क्षेपण करती हैं, तब ये पृथ्वी के पूर्वी आधे भाग और ग्रहों का निर्माण करती हैं। प्रकाश शब्द से यहां दिन के प्रकाश से अर्थ है। ऐसा तभी सम्भव होता है जब पृथ्वी गोल हो।[iii]
वेद ने यहां स्पष्ट रूप से पृथ्वी की गोलाकार आकृति को प्रतिपादित किया है। प्रसिद्ध ज्योतिषी आर्यभट्ट ने भी वेद के उपर्युक्त कथन का समर्थन किया है-
भूग्रहमाना गोलार्धानि स्वछाययानि वर्णानि।
अर्धानि यथा सारं सूर्याभिमुखानि दीव्यते।। -आर्यभट्ट ४/५
यह पृथ्वी गोल है अतः प्रत्येक मनुष्य स्वयं यह सोचता है कि वह स्वयं ऊपर की ओर है और पृथ्वी के दूसरी ओर का भाग मानो उसके अधीन है।
•पृथिवी एक वर्ष (३६५-३६६ दिनों) में प्रत्येक राशि से सीधी गुजरती हुई अपने पूर्व स्थान पर आती है। इसी वर्ष को सूर्य की गति के आधार पर यजुर्वेद ने १२ मास और ६ ऋतुओं में प्रतिपादित किया है-
१. बसन्त (ऋतु) – मधु, माधव (मास) – यजुर्वेद १३/२५
२. ग्रीष्म (ऋतु) – शुक्र, शुचि (मास) – यजुर्वेद १४/६
३. वर्षा (ऋतु) – नभ, नभस्य – यजुर्वेद १४/१५
४. शरद् (ऋतु) – इष, ऊर्ज – यजुर्वेद १४/१६
५. हेमन्त (ऋतु) – सह, सहस्य – यजुर्वेद १४/२७
६. शिशिर (ऋतु) – तप, तपस्य – यजुर्वेद १५/५७
•अहोरात्रे पृथिवी नो दुहाताम्। -अथर्ववेद १२/१/३६
अर्थात् वायु की गैसों का प्रवाह पृथ्वी को भ्रमण कराता है।
यहां स्पष्टतः वात सूत्र और सूर्य सिद्धान्त के परिधि मण्डन का वर्णन है।
•तिस्रो भूमीरूपरा: षड्विधाना:। -ऋग्वेद ७/८७/५
यहां पृथ्वी के छ: महाद्वीपों की ओर संकेत किया गया है। ये ही छ: महाद्वीप महाभाष्य व्याकरण १/११/११ में सात महाप्रदेश (द्वीप) हैं। १. जम्बू २. प्लक्ष ३. शाल्मल ४. कुश ५. क्रौंच ६. शोक और सातवां पुष्कर।
फलित ज्योतिष के पाखण्ड पर कट्टर पौराणिक विद्वानों की सम्मति-
१. सुप्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलविद जनार्दन जोशी ने अपनी पुस्तक “ज्योतिष चमत्कार” (पृष्ठ १६१; लक्ष्मी नारायण प्रेस, मुरादाबाद; प्रथम संस्करण) में फलित ज्योतिष पर बनारस के प्रसिद्ध ज्योतिषी पं० सुधाकर द्विवेदी का २२ मई, १९०६ को लिखा एक पत्र उद्धृत किया है, जो संलग्न है-
“I have belief in astrology. I regard it as mere play as it has been written in the Vishva Gunadarsh that astrologers rob the people of their money by means of verbal jugglery.”
अर्थात्- मेरा विश्वास फलित ज्योतिष में नहीं है। मैं इसे एक प्रकार का खेल समझता हूं। जैसे कि विश्वगुणादर्श में लिखा है कि ज्योतिषी लोग अपने वाग्जाल से लोगों का धन व्यर्थ लूटा करते हैं।
२. पौराणिक विद्वान् विद्यासागर, तपोमूर्ति आचार्य श्रीराम शर्मा के आश्रम में ज्योतिष पर गूढ़ अनुसन्धान के बाद यह निष्कर्ष निकला-
“गणित और फलित ज्योतिष में बहुत दिनों से विवाद चल रहा है पर ग्रहगणित वस्तुतः विज्ञानसम्मत एक पूर्ण विद्या है। उसके साथ फलित ज्योतिष का जंजाल जुड़ जाने से यह असमंजस उठ खड़ा हुआ है।…
मुहूर्त जनमानस में गहराई से घुसे हैं। मुहूर्तवाद ने इतना अनर्थ किया है और कर रहा है कि उससे हुई हानियों को गिना नहीं जा सकता।” -ब्रह्मवर्चस् पंचांग की भूमिका
३. श्री सीताराम झा अपने गीतापंचांग में फलित ज्योतिष पर लिखते हैं-
“मैं पंचांग में राशिफल नहीं लिखता क्योंकि वह अनुचित है।… एक राशि में कई करोड़ लोग होते हैं, उनकी स्थितियां भिन्न-भिन्न होती हैं और जन्मपत्रियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं तो फिर राशिफल कैसे लिखा जा एकता है और वह सत्य क्यों हो सकता है?…”
४. बनारस के सुप्रसिद्ध पौराणिक और प्रकाण्ड ज्योतिष विद्वान् आचार्य हरिहर पाण्डेय की एक पुस्तक है- “हमारा ज्योतिष और धर्मशास्त्र”।[iv] इस पुस्तक में आचार्य हरिहर ने फलित ज्योतिष की धज्जियां उड़ा कर रख दी है। आजतक कोई ज्योतिषाचार्य इस पुस्तक का खण्डन न कर सका। हम उस पुस्तक से एक स्थल का वाक्य उद्धृत करते हैं-
“महर्षि दयानन्द ने बहुत सोच समझ कर और परमात्मा की कृपा प्राप्त कर पृथ्वी को चला कहा, सूर्य और पूरे सौर परिवार को गतिमान कहा, गणित और वैज्ञानिक ज्योतिष को ग्राह्य कहा, फलित ज्योतिष्ज्ञ के दोषों की व्याख्या की, पाश्चात्य ज्ञान का अन्धानुकरण नहीं किया, अंग्रेजों के दुःस्वार्थ और अनाचार को तथा पाश्चात्य संस्कृति के दोषों को पहचाना, उनसे घृणा की और उन्हें यहां से हटाने की प्रेरणा दी। श्रीमती ऐनी बेसेंट ने लिखा है कि स्वामी दयानन्द वह प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने कहा कि भारत भारतीयों का है।…” -हमारा ज्योतिष और धर्मशास्त्र; पृष्ठ सं० २८०; द्वितीय संस्करण; सन् २००६ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा प्रकाशित
५. F.W. Westaway ने फलित ज्योतिष की ठठोली निम्न शब्दों में की है-
“The gods are always especially favourable to those who pay the astrologer a handsome fee”. -Obsessions and Convictions of the Human Intellect; Pg. 4
अर्थात्- भगवान् विशेष रूप से उन लोगों के लिए हमेशा अनुकूल होते हैं जो ज्योतिषी को एक सुन्दर शुल्क का भुगतान करता है।
फलित ज्योतिष पर पौराणिक मण्डली से ५ सामान्य प्रश्न-
प्रश्न १. पौराणिक पण्डित ग्रह आदि पूजा कराकर ग्रह-दोषों को शान्त कराते हैं। इसके बावजूद खगोलीय घटना सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण आदि से बहुत डरते हैं। क्या वो उन्हें शान्त नहीं करा सकते? यदि राहु, केतु आदि को पोप-पण्डे नियन्त्रित कर सकते हैं तो उन्हें देशद्रोहियों पर क्यूँ नहीं बिठाते?
प्रश्न २. आगामी प्राकृतिक आपदा से होने वाली हानियों की सूची क्या विश्व का कोई ज्योतिषी दे सकता है?
प्रश्न ३. एक ही राशि लाखों व्यक्ति की होती है। क्या उस राशि का फल सभी व्यक्तियों पर घटित होता है? यदि नहीं तो राशिफल झूठा है।
प्रश्न ४. क्या विश्व का कोई भी ज्योतिषी हस्तरेखा, मस्तकरेखा, तालुरेखा आदि देखकर किसी जानवर का भविष्य बतला सकता हैं?
प्रश्न ५. रामायण के अनुसार श्रीराम को राजगद्दी पर बैठाने का मुहूर्त वशिष्ठ ऋषि ने निकाला था। यदि शुभाऽशुभ मुहूर्त सत्य होता तो श्रीराम को चौदह वर्ष के लिये वन में क्यों भटकना पड़ा? दशरथ की पुत्र वियोग में मृत्यु क्यों हो गई? तीनों रानियां विधवा हो गयीं। सीता का हरण हुआ। अतः वशिष्ठ की शुभ मुहूर्त शुभकार्य हेतु व्यर्थ गया।
ज्योतिषों का दावा है कि वह भविष्य देखते हैं, लेकिन वह खुद का भविष्य तक नहीं बता पाते। अतः सिद्ध है कि पौराणिक ज्योतिषी कर्महीनता और ठगी के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। फलित ज्योतिष, मुहूर्त शास्त्र, ग्रह-नक्षत्र की पूजा, शकुन-अपशकुन, राशिफल, जन्मपत्री आदि जाली हैं।
[i] सत्यार्थप्रकाश, एकादश समुलास
[ii] ज्योतिष कितनी सच्ची? कितनी झूठी; लेखक- महात्मा गोपाल स्वामी सरस्वती (वैदिक मिशनरी); मातुश्री धनदेवी, केशवराम धर्मार्थ वैदिक ट्रस्ट “धन कुटीर”, बरेली से प्रकाशित; पृष्ठ ३
[iii] मासिक पत्रिका सत्यार्थ सौरभ के जून २०१९ का लेख “वेद, वैदिक और भारतीय साहित्य में पृथ्वी”
[iv] इस पुस्तक का प्रथम संस्करण सन् १९८९ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा दया प्रकाश सिन्हा के निर्देशन में छपा था।