विराग गुप्ता
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बजट भाषण पर हुई गफलत से भले ही उबर गए हों, लेकिन विधानसभा के मौजूदा सत्र में उनकी सरकार की ओर से राजस्थान अकाउंटिंग सिस्टम अमेंडमेंट बिल, 2023 पारित करवाने की कोशिश से बड़ी संवैधानिक डिबेट शुरू हो गई है। कम्पट्रोलर ऐंड ऑडिटर जनरल (CAG यानी कैग) ने इस मामले में राजस्थान के चीफ सेकेट्ररी को पत्र लिखा है, जिसमें इस विधेयक को संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ बताया है। वैसे, विधानसभा से पारित होने के बाद कानून बनने के लिए विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी चाहिए। अगर राज्यपाल इस विधेयक पर वीटो कर दें या उसे राष्ट्रपति के पास भेज दें तो संवैधानिक संकट गहरा सकता है।
CAG की अहमियत
राजस्थान सरकार की ओर से पेश इस विधेयक को लेकर मामला क्यों इतना गरमाया है, इसे समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि कम्पट्रोलर ऐंड ऑडिटर जनरल की राजकाज में क्या अहमियत है। आइए, इसके इतिहास पर एक नजर डालते हैं।
भारत में CAG पद का सृजन ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान 1858 में हुआ और 1884 में पूर्ण CAG की नियुक्ति हुई। वहीं, CAG की रिपोर्ट पर विचार के लिए पब्लिक अकाउंट्स कमेटी (PAC) के गठन की शुरुआत 1919 के कानून से हुई।
दिलचस्प बात यह है कि आजादी के बाद राज्यों के लिए अलग अकाउंटेंट जनरल (AG) के गठन की मांग उठी थी, लेकिन संविधान सभा में उसे स्वीकार नहीं किया गया। वहीं, संविधान में CAG के लिए पूरा चैप्टर है। संविधान के जनक बाबा साहेब आंबेडकर ने CAG को सर्वाधिक महत्वपूर्ण अथॉरिटी कहा था।
केंद्र-राज्यों के अधिकार
केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों के निर्धारण के लिए संविधान में अनेक प्रावधान हैं। सातवीं अनुसूची के तहत केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों का वितरण है। इसी तरीके से राज्यपाल, चुनाव आयोग, हाईकोर्ट और CAG के माध्यम से भारतीय संघ में राज्यों की संवैधानिक भूमिका का नियमन और निर्धारण होता है।
संविधान के अनुसार, केंद्र में संसद और राज्यों में विधानसभा की मंजूरी के बगैर कोई खर्च नहीं हो सकता। विभागों के खर्चों और उनकी प्रक्रिया का CAG की टीम द्वारा ऑडिट होता है। ऑडिट रिपोर्ट संसद और विधानसभा में पेश की जाती है, जिस पर PAC द्वारा विचार और कार्रवाई होती है।
सियासत और CAG
तत्कालीन CAG विनोद राय की 2जी घोटाले पर रिपोर्ट के बाद कई दागी नेताओं को जेल जाना पड़ा और यूपीए सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गई। कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार पर CAG की रिपोर्ट के बाद दिल्ली में शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार डगमगा गई।
पूर्व CAG टीएन चतुर्वेदी ने ही 1985 के दौर में बिहार की ट्रेजरी में हुए कई अरब रुपये के चारा घोटाले का खुलासा किया था। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और जगन्नाथ मिश्रा को अनेक आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ा।
CAG ने दो दशक पहले नीतीश सरकार में डीसी बिल के नाम पर 11,412 करोड़ रुपये की अनियमितता को पकड़ा था। हाईकोर्ट में इस मामले के जाने पर राज्य सरकार ने सीबीआई जांच के बजाए PAC कार्रवाई का समर्थन किया था।
यूपीए शासनकाल में विपक्ष के नेता एलके आडवाणी ने CAG की नियुक्ति के लिए कलीजियम जैसी व्यवस्था बनाने की मांग की थी। विनोद राय ने भी CAG की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए कई सुझाव दिए थे। उनके अनुसार, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP), पंचायती राज, सरकारी अनुदान पर आधारित समितियों को भी इसके दायरे में लाने की जरूरत है।
नए कानून का असर
ब्रिटेन में CAG को अकाउंट्स बनाने के साथ ऑडिट की दोहरी जिम्मेदारी मिली है, जबकि भारत में 1976 में नियमों में बदलाव के बाद केंद्र सरकार के अकाउंट्स की जिम्मेदारी से उसे मुक्त कर दिया। उसके लिए कम्पट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स की नई व्यवस्था बनाई गई। वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार, राज्य सरकारों को फंड दिए जाते हैं। केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाएं भी राज्यों के माध्यम से अमल में आती हैं। इसलिए सभी राज्य सरकारों और उनके विभागों की अकाउंटिंग और ऑडिट CAG के माध्यम से होता है।
राज्यों में जिला और तहसील स्तर पर ट्रेजरी विभाग होता है। राजस्थान में लगभग 12,000 आहरण और वितरण अधिकारी यानी DDO हैं। इनके माध्यम से लगभग 8.5 लाख रिटायर्ड कर्मचारियों को पेंशन और 93 लाख पेंशनर्स को सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलता है। ट्रेजरी के माध्यम से स्टैंप वितरण का भी काम होता है।
वर्तमान सिस्टम के अनुसार, सरकारी विभागों के बिलों के वेरिफिकेशन के बाद ट्रेजरी दफ्तरों के माध्यम से भुगतान होता है। पारदर्शिता लाने के लिए राजस्थान के कई जिलों में 3 साल पहले ट्रेजरी विभाग में ई-बिल का पायलट प्रॉजेक्ट शुरू किया गया।
विधानसभा के सातवें सत्र में सरकार ने पुरानी ट्रेजरी व्यवस्था खत्म करके नए पीएंडए ऑफिस खोलने की जानकारी दी थी। इसके अनुसार, केंद्रीय स्तर पर ई-ट्रेजरी के माध्यम से भुगतान और अकाउंटिंग का नया सिस्टम लागू होगा। यह कानून लागू होने के बाद राजस्थान में तहसील और जिला स्तर पर सभी ट्रेजरी ऑफिस बंद हो जाएंगे।
पेंशनर इसका विरोध कर रहे हैं। उनके अनुसार अभी लोगों की समस्याओं का निराकरण तहसील और जिला स्तर हो जाता है। लेकिन नए कानून के बाद सभी लोगों को राजधानी जयपुर की दौड़ लगानी होगी।
क्या हैं आपत्तियां
CAG के अनुसार, प्रस्तावित कानून संविधान के अनुच्छेद-150 और डीपीसी अधिनियम 1971 की धारा-10 के खिलाफ है। नए सिस्टम से अकाउंटिंग सिस्टम गड़बड़ाने के साथ चेक और बैलेंस भी खत्म हो जाएगा। अकाउंटिंग सिस्टम में टेक्नॉलजी के इस्तेमाल और केंद्रीयकरण के बारे में हो रही आलोचना और विरोध को राजस्थान सरकार दरकिनार कर सकती है, लेकिन नए सिस्टम से CAG की संवैधानिक भूमिका कम हुई तो अराजकता के साथ भ्रष्टाचार बढ़ने का भी खतरा है।