देश की राजनीति में और देश के हर राजनीतिक दल में कुछ ऐसे लोग हुआ करते हैं जिन्हें लोकमान्यता तो प्राप्त नहीं होती-पर वे सत्ता सुख भोगने में सफल हो जाते हैं। हमारी संविधान प्रतिपादित लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे छिद्र हैं जिनमें से कुछ लोग देश के लोकतंत्र के पावन मंदिर संसद के ऊपरी सदन में पहुंचकर चोर दरवाजे से सत्ता में भागीदार जा बनते हैं। इन राजनीतिज्ञों की जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती, जनता का दर्द उनके लिए कुछ नहीं होता। यद्यपि हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान में संसद के ऊपरी सदन का निर्माण इसलिए किया था कि इसके माध्यम से लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति गहन निष्ठा रखने वाले अनुभवी राजनीतिज्ञों या बुद्घिजीवियों या राजनीतिक पंडितों व मनीषियों को इस सदन का सदस्य बनाकर जनसमस्याओं का निस्तारण करने में सहायता मिलेगी।
हो सकता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अरूण जेटली को संसद के पिछले दरवाजे से भीतर इसीलिए ले गये हों कि उनकी सेवाओं से लोकतंत्र और देशवासियों को लाभान्वित किया जा सकेगा। परंतु मोदी विरोधी लोगों को मोदी सरकार पर कीचड़ उछालने का अवसर उपलब्ध कराने में जितनी सहायता अरूण जेटली ने दी है-उतनी किसी अन्य मंत्री ने नहीं दी है। हमें याद रखना चाहिए कि आपातकाल के समय एक नारा चला था-‘नसबंदी के तीन दलाल-इंदिरा, संजय, बंसीलाल।’ हमारा मानना है कि इंदिरा जी के उस कठोर निर्णय को भी देश की जनता स्वीकार कर लेती-यदि उसमें संजय गांधी और बंसीलाल के ऊपर वह अपना नियंत्रण स्थापित कर लेतीं। यह देश कठोर निर्णयों का सम्मान करने का तो अभ्यासी रहा है पर किसी के अत्याचारों को सहन नहीं कर सकता। यह देश नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी जैसे निर्णय पर उनके साथ हो सकता है, पर अरूण जेटली की तानाशाही का विरोध करता है और यही कारण है कि मोदी की लोकप्रियता निरंतर अच्छी बने रहने के बावजूद भी उनकी सरकार की लोकप्रियता गिरी है। जिसमें वित्तमंत्री श्री अरूण जेटली का सर्वाधिक सहयोग है। कुछ समय पूर्व जेटली महोदय ने स्वर्णकार समाज के विरूद्घ कठोर कदम उठाये थे। तब उनसे स्वर्णकार समाज का एक प्रतिनिधिमंडल मिला था। जिससे बड़ी कठिनता से जेटली साहब ने मिलने का समय दिया था। जब मिले तो साहब ने पहली शर्त यह रखी कि आपके विरूद्घ जो कदम उठाया गया है-उस पर तो कोई बात करनी नहीं है, उससे अलग कोई बात है तो बतायें। उनका स्पष्ट कहना था कि जो कदम उठाया गया है उससे पीछे हटने का सरकार का कोई इरादा नहीं है।
हम मानते हैं कि श्री जेटली की इस प्रकार की शर्त लोकतंत्र की भावना और परम्पराओं के साथ क्रूर उपहास के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था। लोकतंत्र में जनता सरकार के किसी भी अप्रिय निर्णय के विरूद्घ बात करना चाहती है-यह उसका लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार होता है। इस अधिकार का सम्मान प्रत्येक मंत्री करेगा-यह लोकतंत्र और संविधान उससे अपेक्षा करता है। इसलिए श्री जेटली को उक्त प्रतिनिधिमंडल से मिलना चाहिए था और उसके क्रोध और विरोध रूपी कोप के विष को अपने सामने उगलवा लेना चाहिए था। जिससे वे लोग ठंडे होते और जनता में आकर बताते कि हमारी बात को ध्यानपूर्वक सुना गया है। पर श्री जेटली ने ऐसा न करके पहले से ही कुपित लोगों को और भी अधिक कुण्ठित कर दिया। यह सर्वमान्य सत्य है कि कुपित और कुण्ठित व्यक्ति या व्यक्ति समूह किसी भी सरकार के विरूद्घ नकारात्मक परिवेश बनाने में सबसे अधिक सक्रिय भूमिका निभाया करता है। मोदी सरकार की लोकप्रियता को कम करने में श्री जेटली के ऐसे अनेकों निर्णयों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जड़विहीन श्री जेटली के लिए आजकल एक मजाक चल रहा है कि वह जेटली नहीं ‘जेब लूट ली’ हैं। उनकी कार्यशैली और अधिक से अधिक कर संग्रह के लिए देश के ईमानदार लोगों को भी दु:खी करने की मनोवृत्ति के चलते उनके प्रति लोगों की ऐसी धारणा बनी है। अब देश की जनता के समक्ष यह कहा जा रहा है कि पिछले तीन वर्ष में तीन करोड़ नये आयकर दाता बढ़े हैं पर इन आयकरदाताओं से देश की सरकार की आय कितनी बढ़ी है और उस बढ़ी हुई आय से कौन से नये विकास कार्य कराये जा रहे हैं? यह नहीं बताया जा रहा है। करोड़ों आयकरदाता बढ़ाकर भी बुलेट टे्रन के लिए जापान से ऋण लिया जा रहा है-यह बात जनता की समझ में नहीं आ रही है।
श्री मोदी को यह बात समझनी होगी कि वह जब 2019 में जनता दरबार में उपस्थित होकर अपने पांच वर्ष का हिसाब जनता को देंगे तो उसमें जेटली की ‘जेब लूट ली’ वाली छवि से उपजे अनेकों प्रश्न भी उनके सामने उठेंगे। इसलिए देश की राजनीति में पिछले दरवाजे से घुसे श्री जेटली जैसे लोगों को देश की जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए और जनता की संवेदनाओं को समझने के लिए श्री जेटली को पीएम निर्देशित करें यह उनके स्वयं के लिए और उनकी सरकार के स्वास्थ्य के लिए भी अति आवश्यक है।
आजकल देश के लोग किसी भी क्षेत्र में पूंजी निवेश करने से डर रहे हैं। आयकर विभाग से किसान और ईमानदार लोग भी दु:खी हो उठे हैं जो अपनी ईमानदारी की कमाई से कोई प्लाट, मकान या दुकान लेना नहीं चाहते हैं। इसलिए लोगों की करोड़ों की अचल संपत्ति के भाव गिरे हैं जो इस समय लाखों में आ गये हैं। भारी नुकसान लोगों को हो रहा है। जबकि ‘नीरो’ बने जेटली पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। माना कि चोरों पर शिकंजा कसने के लिए कठोर निर्णय लिये जाने आवश्यक हैं, परंतु इन कठोर निर्णयों की भी कोई सीमा होती है, इनमें इतनी गुंजाइश तो रहनी ही चाहिए कि जनसाधारण को सांस लेने में कोई पीड़ा न हो। यदि जनसाधारण का दम घोंटा गया तो श्री जेटली को याद रखना चाहिए कि ये जनसाधारण इस सरकार का गला घोंट देगा। हमें पता है कि इस समय विपक्ष के पास कोई नेता श्री मोदी का सामना करने के लिए नहीं है, लेकिन यह स्थिति सदा ही बनी रहेगी यह नहीं कहा जा सकता। संभावनाओं के पालने में आशाओं के गीत सदा ही गुनगुनाये जाते रहे हैं-जिसे कोई नकार नहीं सकता। जिन अपेक्षाओं से देश की जनता ने मोदी को देश की कमान सौंपी है-उस पर खरा उतरना भी आवश्यक है, अन्यथा अनर्थ हो जाएगा। अच्छा हो कि पीएम श्री मोदी श्री अरूण जेटली को उनकी कार्यशैली में परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करें।