(व्यभिचारी एवं चरित्रहीन व्यक्ति नष्ट हो जाता है।)
आज समाज में अश्लीलता को आधुनिकता के नाम पर परोसा जा रहा है। इसे एक प्रकार से बौद्धिक आतंकवाद भी कहा जा सकता ह। युवावस्था के अपरिपक्व मस्तिष्क को अफीम के समान व्यभिचार कि लत के लिए प्रेरित कर उसे भोगवाद के अंधे कुएँ में धकेल दिया जाता है। जिससे वह जीवन भर कस्तूरी मृग के समान भागता रहता है और अपने लक्ष्य तक कभी न पहुँच सकता। घर से भाग कर बेमेल विवाह करना और फिर तलाक, चरित्रहीनता, समलेंगिकता, लिव इन रिलेशनशिप सभी विषयासक्ति नामक सिक्के के ही अनेक पहलु हैं। खेद है कि समाज में जितनी अधिक भौतिक और आर्थिक प्रगति हो रही है, उतनी अधिक चरित्र हीनता भी बढ़ रही है। हमारे धार्मिक उपदेशों को पुराने और दकियानूसी कह कर जो लोग नकार देते हैं, उन्हीं ग्रंथों में इस बीमारी का हल भी हैं।
रामायण महाकाव्य का तो सन्देश ही यही है कि जो परनारी पर बुरी दृष्टि डालता है। उसे यथोचित दंड देना चाहिए। रामायण में हमें रावण जैसे परम बलशाली कि श्री राम के हाथों मृत्यु का कारण भी पता चलता है। जब वीरवर हनुमान लंका में प्रवेश कर लंका नगरी का भ्रमण कर रहे होते है तब का एक प्रसंग पढ़िये।
उषाकाल में वीरवर हनुमान रावण के महल की ओर जाते हुए रावण राज्य के द्विजों को वेद मन्त्रों का स्वाध्याय करते हुए एवं अग्निहोत्र करते हुए देखते हैं। तब उनके मन में विचार आया कि उषा काल में जिस नगरी के जन वेदोक्त नित्य कर्म करते है। उस नगरी को जीत पाना कठिन ही नहीं असम्भव भी है। जब वे रावण के महल में पहुँचते है तब उन्हें मद्य, माँस और व्यभिचार में लिप्त रावण और रावण कि स्त्रियों को सोते देखा तो उन्होंने विचार किया कि रावण तो जीवित ही मरे के समान है। इससे युद्ध में विजय प्राप्त करना कठिन नहीं हैं।
वीरवर हनुमान के सन्देश से एक ही आशय सिद्ध होता है कि वेद मार्ग का परित्याग कर भोग मार्ग का वरण करने वाला व्यक्ति नष्ट हो जाता है।
योगिराज श्री कृष्ण जी महाराज भी गीता के श्लोक १६/२३ में कहते है :-
जो पुरुष वेद कि आज्ञा को छोड़कर अपनी स्व इच्छानुसार चलता है , वह पुरुष न सिद्धि को प्राप्त होता है, न सुख को प्राप्त होता है, न मुक्ति को प्राप्त होता है, अतएव मनुष्य मात्र का कर्तव्य है कि वेद कि आज्ञा का पालन करते हुए चले।
अंतिम सन्देश यही है कि भोगवाद में लिप्त व्यक्ति कभी उन्नति नहीं कर सकता।
#डॉविवेकआर्य
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