आपस्तम्ब धर्मसूत्र की ११ वीं कक्षा का भाषा में सार*।


फाल्गुन कृष्ण अष्टमी के निर्धारित अवकाश के पश्चात आज दिनांक 15 फरवरी 2023 को फागुन कृष्ण नवमी को आपस्तम्ब धर्मसूत्र की 11वीं कक्षा में आज परम पूज्य स्वामी जी ने धर्मसूत्र की तीसरी कंडिका के………… आचार्यकुल मे ब्राह्मण क्षत्रिय आदि वर्णों के ब्रह्मचारीयो वस्त्र विधान से संबंधित सूत्रो का अर्थ करते हुए ,उनकी गहन गंभीर व्याख्या की।
माञ्जिष्ठं राजनस्य इस सुत्र का अर्थ करते हुए स्वामी जी ने बताया क्षत्रिय को गुरुकुल में मंजिष्ठ से रंगे हुए वस्त्र को धारण करना चाहिए । हारिन्द्रं वैश्यस्य वैश्य वर्ण के ब्रह्मचारी को हल्दी से रंगा हुआ वस्त्र पहनना चाहिए।
स्वामी जी ने शब्दक्रम व पाठ्क्रम पर भी चर्चा की। स्वामी जी ने कहा शब्द या वाक्यार्थ को समझना ही मीमांसा दर्शन का मुख्य उद्देश्य है।मीमांसा तब ही फलितार्थ होती है जब व्यक्ति भाषा विज्ञान शब्द अर्थ संबंध को जानता है। हारिणमैणेयं वा ब्रह्मणस्य क्रम से प्राप्त इस सूत्र का अर्थ करते हुए स्वामी जी ने कहा–” ब्राह्मण विद्यार्थी को काले हिरण के चर्म से बने काले ही वस्त्र को धारण करना चाहिए । ऐसा वस्त्र धारी ब्रह्मचारी लेटे ना या बैठे ना इसका यह अर्थ होना चाहिए उक्त ब्रह्मचारी को घोर पुरुषार्थ करना चाहिए।
रौरव राजन्यस्य अर्थात
क्षत्रिय ब्रह्मचारी को रूरू प्रजाति के हिरण के चर्म का वस्त्र धारण करना चाहिए। वही वैश्य को बकरे के चर्म से बने वस्त्र को धारण करना चाहिए। आविकं सार्ववर्णिकम् तथा कम्बलश्च इन दो सूत्रों की व्याख्या करते हुए स्वामी जी ने कहा ऊनी वस्त्र सभी वर्ण के ब्रह्मचारी धारण कर सकते हैं। कंबल भी सभी ब्रह्मचारी धारण कर सकते हैं। स्वामी जी ने कहा सामान्य विधान सबके लिए होता है लेकिन विशेष विधान परिस्थिति विशेष के लिए किया गया होता है। आज की कक्षा में अंतिम सूत्र की व्याख्या करते हुए स्वामी जी ने कहा आपस्तंम्ब ऋषि ने विशेष विधान करते हुए कहा है कि ब्रह्मवर्चस प्राप्ति के अभिलाषी ब्रह्मचारी को केवल काले मृग के चरम से बने वस्त्र को धारण करना चाहिए।
जब स्वामी जी अंतिम सूत्र की व्याख्या कर रहे थे मैंने स्वयं अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार प्रश्न पूछते हुए यह शंका व्यक्त की — स्वामी जी मात्र वस्त्र विधान या धारण करने मात्र से कैसे ब्रह्म प्राप्ति या राजप्राप्ति के लक्ष्य को पाया जा सकता है? यह कुछ मेरी बुद्धि में नहीं बैठ रहा है। स्वामी जी ने बेहद तार्किक शास्त्रीय प्रमाणों व अपने गहन गंभीर सुदीर्घ अध्ययन के आधार पर के मेरी शंका का समाधान किया जो इस प्रकार है। स्वामी जी ने कहा सूत्रकार ने ब्राह्मण आदि वर्णों के लिए जो वस्त्रों का विधान किया है इसका केवल महत्व प्रतीकात्मक है लेकिन यह वस्त्रों के रंग आदि प्रतीक महान उद्देश्य लक्ष्य की प्राप्ति के सूचक बोधक होते हैं। यदि ब्राह्मण वर्ण का ब्रह्मचारी काला वस्त्र धारण करता है तो काला रंग अज्ञान का प्रतीक है अज्ञान को उस ब्रह्मचारी को अपने जीवन से दूर करना है उसके (ब्रह्मचारी) के सामने महान ज्ञान प्राप्ति का लक्ष्य बना रहेगा। स्वामी जी ने कहा शिखा व यज्ञोपवीत धारण करने का भी यही उद्देश्य है यह धारण कर्ता व्यक्ति के विद्या प्राप्ति के सूचक हैं अर्थात विद्या के चिन्ह है। इस संबंध में देव ऋषि दयानंद के वाक्य को भी स्वामी जी ने बेहद सुंदर उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया।इसी क्रम मे स्वामी जी ने पूर्णविद्या शब्द की व्याख्या की स्वामी जी ने कहा पूर्णविद्या शब्द का हमें इतना अर्थ लेना चाहिए जिस जिस अर्थ में हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति विद्या से हो जाए। मनुष्य अल्पज्ञ है सीमितकाल मे कोई भी व्यक्ति पूरी विद्या इस जीवन में नहीं पढ़ सकता ईश्वर प्राप्ति में या किसी लौकिक प्रयोजन विषय विशेष को जानने समझने के लिए के लिए हमें जितना अध्ययन आवश्यक होता है जितनी विद्या हम अर्जित करते हैं उसी अर्थ मात्रा अनुपात में हमें उसे पूर्ण विद्या मानना चाहिए।

आप सभी को सादर नमस्ते🙏

कृपया विषय के समग्र यथार्थ प्रमाणित निर्धारण के लिए स्वामी जी की मूल कक्षा को ही प्राथमिकता दें मैं जितना सुन पाया उतना ही मैंने लेख बद्ध किया है।

आर्य सागर खारी🖋️

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