ईश्वर और अल्लाह एक नहीं हैं
ये लेख विभिन्न विद्वानों के लेख पर आधारित ४ भागो में है। कृपया पूरा पढ़े और मुस्लिम वर्ग को शेयर करे।
भाग -2
मुस्लिम नेता मेहमूद मदनी ने कहा है की ईश्वर और अल्ला एक ही है ,ऐसा गाँधी ने भी कहा की ईश्वर अल्ला तेरो नाम ,और बहुत से सेक्युलर नेता ऐसा कहते आये है की ईश्वर कहो या अल्ला दोनों एक ही बात है। अब समय आ गया है इस तथ्य को पूरी तरह समझा दिया जाये की ईश्वर और अल्ला दोनों ना तो एक है , और एक कहना किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं हो सकता क्योकि ये विचार पूरी तरह बेतुका है। आगे-
ईश्वर का ही निज नाम ओ३म् है।ईश्वर के गुणों की व्यख्या वेदो में की गई है जिसमे मुख्य गुण हैं , सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वज्ञ सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है।जिसे भी हम सुप्रीम पावर कहेंगे उसमें उक्त से कम गुण हो ही नही सकते हैं।
ईश्वर के नियम और न्याय अटल है जो बदलते नहीं है ,लेकिन अल्लाह कभी खुश होता है तो कभी नाराज। खुश भी इतना की उसको सिर्फ अपने लोग पसंद है तो उसको पूजते है ,उसके लिए मानव का , पशु का खून बहाते है लेकिन अल्लाह इसके बदले ७२ कुवारी महिला प्रदान करने की गारंटी देता है।
ईश्वर ने वेद का ज्ञान चार ऋषियों के माध्यम से दिया। अल्लाह ने क़ुरान का ज्ञान एक जिब्रील गधी को डाकिया बनाकर जमीं पर भेजा ,उसका ज्ञान किसी नबी नाम के आदमी को मिला और उसने पत्तो पैर लिखा जो की बकरी खा गयी ,अल्लाह इस बकरी से मात खा गया। फिर इस ज्ञान को संकलन करने में १०० साल से ज्यादा लग गए यानि तथाकथित नबी ,मुहम्मद ुऔर तीसरा बनाम अहमद की मृत्यु के बाद।
क्या मुहम्मद ही नबी है ? इस बात पर १०० प्रतिशत शक है क्योकि पूरे क़ुरान में मोहम्मद नाम सिर्फ चार बार आया है और एक बार अहमद का नाम आया और कई बार नबी शब्द आया, यह भी किसी अन्य सन्दर्भ में। क़ुरान में कही नहीं लिखा की हदीस के विषय में कोई बयान आया है। हदीस का और क़ुरान का कोई लेना देना नहीं है।
अल्लाह छह साल की बच्ची से ५० साल के आदमी की शादी को स्वीकार करता है लकिन ईश्वर का आदेश
इसके विपरीत है की पिता पुत्री का सम्बन्ध ,ब्रह्मचर्य का पालन, संयम ,आदि को वेद के माध्यम से मोक्ष का रास्ता बताया है।
अल्ला खून,लूट ,चोरी , आदि को माफ़ कर देता है जबकि ईश्वर इसका कड़ा दंड देता है।
कुछ संक्षेप में अंतर : (१) ईश्वर सर्वव्यापक (omnipresent) है, जबकि अल्लाह सातवें आसमान पर रहता है.
(२) ईश्वर सर्वशक्तिमान (omnipotent) है, वह कार्य करने में किसी की सहायता नहीं लेता, जबकि अल्लाह को फरिश्तों और जिन्नों की सहायता लेनी पडती है.
(३) ईश्वर न्यायकारी है, वह जीवों के कर्मानुसार नित्य न्याय करता है, जबकि अल्लाह केवल क़यामत के दिन ही न्याय करता है, और वह भी उनका जो की कब्रों में दफनाये गए हैं.
(४) ईश्वर क्षमाशील नहीं, वह दुष्टों को दण्ड अवश्य देता है, जबकि अल्लाह दुष्टों, बलात्कारियों के पाप क्षमा कर देता है. मुसलमान बनने वाले के पाप माफ़ कर देता है।
(५) ईश्वर कहता है, “मनुष्य बनों” मनु॑र्भव ज॒नया॒ दैव्यं॒ जन॑म् – ऋग्वेद 10.53.6,
जबकि अल्लाह कहता है, मुसलमान बनों. सूरा-2, अलबकरा पारा-1, आयत-134,135,136
प्रस्तुति डॉक्टर डीके गर्ग