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!! “सच्चा वैरागी” ? !!
ये मन अपने कर्मों को बाचता हैं
इसे पत्रों की आवश्यकता नहीं होती।
एक साधु को एक नाविक रोज इस पार से उस पार ले जाता था, बदले मैं कुछ नही लेता था वैसे भी साधु के पास पहले पैसा कहां होता था,
नाविक सरल था पढा-लिखा तो नही पर समझ की कमी नही थी ! साधु रास्ते में ज्ञान की बात कहते कभी भगवान की सर्वव्यापकता बताते और कभी अर्थसहित श्रीमदभगवद्गीता के श्लोक सुनाते !
नाविक मछुआरा बङे ध्यान से सुनता और बाबा की बात ह्रदय में बैठा लेता,
एक दिन उस पार उतरने पर साधु नाविक को कुटिया में ले गये और बोले वत्स, मैं पहले व्यापारी था धन तो कमाया था पर अपने परिवार को आपदा से नही बचा पाया था अब ये धन मेरे किसी का काम का नही तुम ले लो तुम्हारा जीवन संवर जायेगा तेरे परिवार का भी भला हो जाएगा !
नाविक बोला नही बाबाजी मैं ये धन नही ले सकता मुफ्त का धन घर में जाते ही आचरण बिगाड़ देगा कोई मेहनत नही करेगा, आलसी जीवन लोभ लालच और पाप बढायेगा !
आप ही ने मुझे ईश्वर के बारे में बताया मुझे तो आजकल लहरों में भी कई बार वो दृष्टिगत होता हैं !
जब मै उसकी दृष्टि में ही हूँ तो फिर अविश्वास क्यों करूं मैं अपना काम करूं और शेष उसी पर छोङ दूं !
प्रसंग तो समाप्त हो गया पर एक सवाल छोड़ गया इन दोनों पात्रों में साधु कौन था ?
एक वो था जिसने दुःख आया तो भगवा पहना संन्यास लिया धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया याद किया और समझाने लायक स्थिति में भी आ गया फिर भी धन की ममता नही छोङ पाया सुपात्र की तलाश करता रहा !
और दूसरी तरफ वो निर्धन नाविक सुबह खा लिया तो शाम का पता नही फिर भी पराये धन के प्रति कोई ललक नही संसार में लिप्त रहकर भी निर्लिप्त रहना आ गया भगवा नही पहना सन्यास नही लिया पर उस का ईश्वरीय सत्ता में विश्वास जम गया !
श्रीमदभगवद्गीता के श्लोक को ना केवल समझा बल्कि उन्हें व्यवहारिक जीवन में कैसे उतारना है ये सीख गया और पल भर में धन के मोह को ठुकरा गया !
वास्तव में वैरागी कौन ? विचार कीजिए..!!
🙏🙏 जय श्रीकृष्ण 🙏🙏
वयं राष्ट्रे जागृयाम
———–🌅 शुभम् स्वस्ति 🌹———