रेपो दर में वृद्धि मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करते हुए रुपए को मजबूती भी प्रदान करेगी

दिनांक 08 फरवरी 2023 को भारतीय रिजर्व बैंक ने एक बार पुनः रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं की वृद्धि करते हुए इसे 6.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंचा दिया है। मई 2022 के बाद से भारतीय रिजर्व बैंक ने छठी बार रेपो दर में यह वृद्धि की है एवं अब कुल मिलाकर 250 आधार बिंदुओं की वृद्धि रेपो दर में की जा चुकी है। हालांकि, भारत के कई अर्थशास्त्रियों द्वारा इसका अनुमान पूर्व से ही लगाया जा रहा था क्योंकि एक तो मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में बनाए रखना बहुत आवश्यक है और दूसरे वैश्विक स्तर पर अभी भी, विशेष रूप से विकसित देशों में, मुद्रा स्फीति की दर लगातार उच्च स्तर पर बनी हुई है एवं ये देश इसे नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जा रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रान्स, जर्मनी आदि देशों ने अभी हाल ही में ब्याज दरों में 25 आधार बिंदुओं से लेकर 50 आधार बिंदुओं तक की वृद्धि की घोषणा की है। अमेरिका में फेडरल रिजर्व ने तो अप्रेल 2022 के बाद से 425 आधार बिंदुओं की वृद्धि अपनी ब्याज दर में की है। इन देशों द्वारा ब्याज दरों में तुलनात्मक रूप से अधिक वृद्धि किए जाने से इन देशों की मुद्रा भारतीय रुपए की तुलना में अधिक मजबूत होने लगती है और भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में यदि इन देशों की मुद्रा की तुलना में कमजोर होता है तो भारत में आयात किए जाने वाले उत्पाद महंगे होने लगते हैं जिससे भारत में आयातित मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि होने लगती है। अतः भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूत बनाए रखना भी बहुत आवश्यक है।

चूंकि आयातित महंगाई दर के अतिरिक्त, भारत में महंगाई की दर अब बहुत बड़ी हद्द तक नियंत्रण में आ चुकी है अतः भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अब यह उम्मीद की जा रही है कि थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर मई एवं जून 2023 माह में ऋणात्मक हो जाने की सम्भावना है वहीं खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर अप्रेल 2023 में 4.5 प्रतिशत के नीचे आ जाने की सम्भावना है। भारत में महंगाई दर के नियंत्रण में बने रहने के चलते वित्तीय वर्ष 2023-24 के प्रथम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर के रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। अर्थात, महंगाई दर पर नियंत्रण, देश की विकास दर को आगे बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध हो रहा है। जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद में 7 प्रतिशत की वृद्धि की सम्भावना व्यक्त की गई है। साथ ही, भारतीय स्टेट बैंक का मासिक मिश्रित इंडेक्स भी दिसम्बर 2022 माह के 55.9 के स्तर से बढ़कर जनवरी 2023 माह में 56.1 के स्तर पर पहुंच गया है जो कि उत्पादन के क्षेत्र में उच्च वृद्धि दर को दर्शा रहा है।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में की जा रही वृद्धि का आश्य सदैव यह कदापि नहीं होता है कि इतनी ही दर से बैकों द्वारा भी बाजार में ऋणराशि एवं जमाराशि की ब्याज दरों में वृद्धि कर दी जाएगी। रेपो दर में वृद्धि का प्रभाव केवल विभिन्न बैकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक से लिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दर पर ही पड़ता है एवं हालांकि यह बाजार को आभास दिलाने का कार्य भी करता है कि बैंकों द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की सम्भावना बन रही है। मई 2022 से लेकर अभी तक भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 250 आधार बिंदुओं की वृद्धि की घोषणा की है जबकि बैकों द्वारा इसी अवधि के दौरान विभिन्न समयकाल की सावधिक जमाराशि पर केवल 150 आधार बिंदुओं की वृद्धि की गई है और रेपो दर से लिंकड नए ऋणों पर केवल 125 आधार बिंदुओं की वृद्धि की गई है।

दरअसल, भारत में लगातार तेज हो रही विकास की गति के चलते बैंकों की ऋणराशि में वित्तीय वर्ष 2022-23 की 13 जनवरी 2023 को समाप्त अवधि तक 13.90 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि 11.7 प्रतिशत की दर से अर्जित की गई है जबकि इसी समय अवधि के दौरान जमाराशि में 12 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि 7.3 प्रतिशत की दर से दर्ज हुई है। इस प्रकार, स्पष्ट रूप से तरलता पर कुछ दबाव दिखाई दे रहा है। भारत में ऋण:जमा अनुपात भी लगभग 75 प्रतिशत तक आ गया है एवं औद्योगिक इकाईयों की उत्पादन क्षमता का दोहन भी लगभग 75 प्रतिशत के स्तर को पार कर गया है। इस प्रकार आगे आने वाले समय में ऋण की मांग में और अधिक वृद्धि होने की भरपूर सम्भावनाएं बन रही हैं। बैकों द्वारा जमाराशि पर ब्याज दरों को इसलिए भी आकर्षक बनाया जा रहा ताकि बैंकों की जमाराशि में अधिक वृद्धि हो और इस प्रकार इन बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता में वृद्धि होती रहे।

देश में तरलता से सम्बंधित किसी भी प्रकार की समस्या न होने पाए इसके लिए केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक लगातार कई प्रयास कर रहे हैं। देश में वित्तीय अनुपालन में लगातार हो रहे सुधार के चलते वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान केंद्र सरकार द्वारा करों की उगाही में जबरदस्त सुधार दृष्टिगोचर है। इससे केंद्र सरकार को बाजार से ऋण लेने की इस वर्ष कम आवश्यकता महसूस हुई है, जिसके कारण भी देश में तरलता की समस्या उत्पन्न नहीं हुई है और बैकों के ऋणों में भारी भरकम वृद्धि के बावजूद अभी तक तरलता का आधिक्य ही बना हुआ है।

विकसित देशों के सम्बंध में अभी तक तो यह कहा जाता रहा है कि इन देशों में ब्याज दर में वृद्धि अथवा कमी का प्रभाव मुद्रा स्फीति पर तुरंत दिखाई देने लगता है परंतु अभी हाल ही के समय में यह पाया जा रहा है कि पिछले लगभग एक वर्ष से इन देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार की जा रही वृद्धि का प्रभाव मुद्रा स्फीति पर अंकुश के मामले में कोई बहुत बड़ा असर करता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, जबकि भारत जैसे विकासशील देश में ब्याज दर में की गई वृद्धि का असर मुद्रा स्फीति पर तुलनात्मक रूप से कुछ शीघ्रता से होता दिखाई दे रहा है, इसके पीछे अन्य कई कारणों के अलावा केंद्र सरकार की राजकोषीय नीति एवं भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में आपसी तालमेल का होना भी एक महत्वपूर्ण मुख्य कारण है।

प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक

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