चीन के निशाने पर अब 10 लाख तिब्बती बच्चे,
गौतम मोरारका
दरअसल चीन आरम्भकाल से ही तिब्बतियों के अधिकारों का दमन करता रहा है। यह दमन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में और बढ़ गया है। चीन तिब्बतियों की भावनाओं और विचारों की बिलकुल भी कद्र नहीं करता।
तिब्बत, तिब्बतियों के धर्म, संस्कृति और तिब्बतियों की हर पहचान को खत्म करने पर तुला चीन अब तिब्बती बच्चों पर अत्याचार कर रहा है। हम आपको बता दें कि चीन में करीब 10 लाख तिब्बती बच्चों को सरकारी बोर्डिंग स्कूलों में जबरन डाला जा रहा है। चीन का प्रयास है कि इन तिब्बती बच्चों को उनके धर्म और संस्कृति से दूर कर उन्हें वही बताया और पढ़ाया जाये जो ड्रैगन की नीति के मुताबिक हो। बच्चों का ब्रेन वॉश कर चीन चाहता है कि जब यह बच्चे बड़े होकर युवा पीढ़ी बनें तब तक उनके मन से चीन विरोध खत्म हो चुका हो। दलाई लामा को 60 से भी ज्यादा सालों तक निर्वासन में रहने को मजबूर करने वाला चीन चाहता है कि हर तिब्बती अपनी मूल भाषा छोड़कर मंदारिन जाने और उसी में बात करे, चीन चाहता है कि हर तिब्बती सिर्फ ड्रैगन के वचन को ही असली शासन माने। इस दिशा में वह लगातार प्रयास भी कर रहा है लेकिन अब समय आ गया है कि दुनिया विस्तारवादी मानसिकता वाले चीन के विरोध में एकजुट हो।
जहां तक तिब्बती बच्चों को जबरन बोर्डिंग स्कूलों में डाले जाने की बात है तो हम आपको बता दें कि इस खबर को सुनने के बाद संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के मामलों से जुड़े विशेषज्ञों ने दमनकारी कार्रवाइयों के जरिए तिब्बती अस्तित्व को मिटाने और उन्हें जबरन बहुसंख्यक हान-चीनी समुदाय के साथ मिलाने की चीन की नीति को लेकर आगाह किया है। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने कहा, ”हम तिब्बती शैक्षिक, धार्मिक और भाषाई संस्थानों के खिलाफ दमनकारी कार्रवाइयों के जरिए तिब्बती अस्तित्व को बहुसंख्यक हान-चीनी समुदाय के साथ मिलाने की नीति से चिंतित हैं।’’
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने कहा है कि चीन की सरकार की आवासीय विद्यालय प्रणाली के माध्यम से तिब्बती लोगों की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पहचान मिटाने पर केंद्रित नीति से तिब्बती अल्पसंख्यकों के करीब 10 लाख बच्चे प्रभावित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने एक बयान में कहा, ”हम तिब्बती बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय प्रणाली को लेकर चिंतित हैं, जो तिब्बतियों को बहुसंख्यक हान संस्कृति में शामिल करने के उद्देश्य से शुरू किया गया एक कार्यक्रम प्रतीत होता है, जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के विपरीत है।’’
हम आपको बता दें कि विशेषज्ञों के इस दल में अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत फर्नांड डी वेरेन्स, शिक्षा के अधिकार पर विशेष दूत फरीदा शहीद और सांस्कृतिक अधिकारों के क्षेत्र में विशेष दूत एलेक्जेंड्रा जांथाकी शामिल हैं। विशेषज्ञ दल की ओर से जारी बयान के अनुसार, आवासीय विद्यालयों में शैक्षिक सामग्री और वातावरण बहुसंख्यक हान संस्कृति के अनुरूप है, जिसमें पाठ्यपुस्तक की सामग्री लगभग पूरी तरह से हान छात्रों के अनुभवों पर आधारित है। तिब्बती अल्पसंख्यक बच्चों को पारंपरिक या सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक शिक्षा देने के बजाए मन्दारिन चीनी (पटु घुआ भाषा) में ‘‘अनिवार्य शिक्षा’’ पाठ्यक्रम पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है। पटु घुआ भाषा के सरकारी स्कूल तिब्बती अल्पसंख्यकों की भाषा, इतिहास और संस्कृति की कोई खास पढ़ाई नहीं कराते।
हम आपको बता दें कि चीन की तिब्बतियों के साथ हमेशा से ही दमनकारी नीति रही है। चीन अपनी नीतियों का पालन नहीं करने वाले तिब्बती लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करता है। चीन की बात जो भी तिब्बती नहीं मानता उसे सख्त सजा, क्रूर हिरासत, हत्या और शारीरिक तथा मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। दरअसल चीन जानता है कि बौद्ध धर्म तिब्बत की पहचान का आधार है। ऐसे में वह उसके इसी आधार को मिटाने की हर संभव कोशिश में जुटा हुआ है।
उल्लेखनीय है कि चीन आरम्भकाल से ही तिब्बतियों के अधिकारों का दमन करता रहा है। यह दमन राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में और बढ़ गया है। चीन तिब्बतियों की भावनाओं और विचारों की बिलकुल कद्र नहीं करता। वह अपनी विस्तारवादी नीति के तहत तिब्बत को कब्जा चुका है। अब चीन तमाम तरह के आयोग बनाकर पर्यावरण व विकास के नाम पर तिब्बतियों को दूसरी जगह पर बसा रहा है। इस तरह से यह तिब्बतियों की संस्कृति और एकता को नष्ट करने का प्रयास है।
हम आपको यह भी बता दें कि हाल ही में एक थिंक टैंक ग्लोबल आर्डर ने रिपोर्ट दी थी कि चीन की सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी ने तिब्बत के बौद्ध धर्म के लोगों को खत्म करने के लिए कई तरीके अपनाए हैं। खास बात यह है कि ये हथकंडे न केवल तिब्बत में, बल्कि तिब्बत के बाहर भी अपनाए गए हैं। चीन में कई जगहों पर सरकार ने कई तिब्बती मठों को तोड़ा है, इसके अलावा तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं पर भी कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। अब तिब्बती बच्चों का ब्रेन वॉश करने का अभियान चलाया जा रहा है। इस तरह चीन का शिकंजा लगातार तिब्बतियों पर बढ़ता ही जा रहा है।
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