— वीर सावरकर
ऐलन ओ. ह्यूम का नाम भारतीय राजनीति में प्रचलित रहा है और आज भी प्रचलित है! क्योंकि कालांतर में उसी ह्यूम ने आज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नाम से ख्यात- कुख्यात राजनीतिक संगठन की नींव रखी थी ! अलीगढ़ और मैनपुरी की क्रांति का समाचार जब इटावा नगर के प्रमुख मजिस्ट्रेट तथा जिला न्यायाधीश उस ह्यूम को पहुंचा तो उसने अपने अधीन काम करने वाले सहायक मजिस्ट्रेट डेनियल की सहायता से इटावा के आसपास स्थित मार्गों की सुरक्षा के लिए कुछ चुने हुए लोगों का एक दल गठित कर लिया था! 19 मई को मेरठ में आए कुछ सैनिकों के एक दल से इनकी मुठभेड़ भी हो चुकी थी! मेरठ के सिपाहियों को घेर लिया गया था और उन्हें शस्त्रास्त्र समर्पित करने का आदेश दे दिया गया था ! उन्होंने बड़े विचित्र प्रकार से शस्त्रास्त्र समर्पित किए थे! उन्होंने समर्पण के लिए एक साथ हथियार ऊपर को उठाए और उनसे समर्पण कराने वालों के ही टुकड़े कर दिए! यह करते ही वहां से तुरंत भागकर वे पास के गांव में एक मंदिर में जाकर छुप गए! ह्यूम को यह समाचार मिला तो वह डेनियल को साथ लेकर उस मंदिर पर आक्रमण करने के लिए बढ़ चला ! ह्यूम समझता था कि जब तक वह अपनी टुकड़ी लेकर मंदिर तक पहुंचेगा तब तक ग्रामवासी ही उन विद्रोहियों के टुकड़े-टुकड़े कर चुके होंगे! किंतु वहां पहुंचने पर यह देखकर वह स्तब्ध रह गया कि ग्रामवासी तो उनकी आवभगत में लगकर अपने को धन्य समझ रहे थे! डेनियल सोचने लगा कि ग्राम वासियों ने यदि यह काम नहीं किया तो कोई बात नहीं अब हमारे सैनिक इनको पाठ पढ़ाएंगे! अपने सैनिकों को उसने मंदिर पर एक साथ टूट पड़ने की आज्ञा दी !वह स्वयं भी आगे बढ़ा किंतु आश्चर्य? किसी ने उसकी आज्ञा को मानो सुना ही नहीं! हां देशद्रोही रहा होगा वह एक सिपाही जो डेनियल के साथ आगे बढ़ा ही था कि मंदिर में स्थित स्वतंत्रता के पुजारियों ने दोनों को तुरंत मोक्षधाम भेज दिया ! ह्यूम ने देखा तो उसके होश उड़ गए !अपने प्राण बचाने के लिए वह वहां से भाग खड़ा हुआ!
ऐसे था यह कांग्रेसका संस्थापक ह्यूम !अभी आगे और भी कुछ देखेंगे ! इटावा के सैनिक 31 मई को अथवा अलीगढ़ से प्राप्त होने वाले निर्देश की प्रतीक्षा कर रहे थे कि तभी उनको 12 मई को अलीगढ़ क्रांति का समाचार मिला तब उन्होंने भी क्रांति का शंखनाद गुंजा दिया ! इस संकटकालीन स्थिति में अंग्रेज सपरिवार पलायन करने लगे ! जिलाधीश ह्यूम भी भारतीय उदारता का लाभ उठाकर भारतीय महिला का वेश धारण कर बुर्का डालकर वहां से नौ दो ग्यारह हो गया ! उनके पलायन करते ही इटावा के स्वतंत्र हो जाने की घोषणा कर दी गई! इटावा के सैनिक दिल्ली की ओर बढ़ चले! अंग्रेज अधिकारी अपने इस लज्जास्पद कृत्य को कदाचित ही भुला पाए होंगे ! किंतु ह्यूम तो महा निर्लज्ज सिद्ध हुआ! यह हम बता आए हैं कि उसी ने सारी लज्जा त्याग कर कांग्रेस का गठन किया ! उस समय कांग्रेस के गठन का उद्देश्य था- भारतीयों को सदा-सदा के लिए दासत्व की नींद में सोते रहने देना ! कदाचित् वह इटावा का बदला लेना चाह रहा हो!
स्रोत -1857 का भारतीय स्वातंत्र्य समर
₹400.मंगवाने के लिए 7015591564 पर वट्सएप द्वारा सम्पर्क करें।
लेखक- श्री विनायक दामोदर सावरकर
प्रस्तुति- रामयतन