डॉ. राधे श्याम द्विवेदी
मैहर में शारदा माँ का प्रसिद्ध मन्दिर है जो नैसर्गिक रूप से समृद्ध कैमूर तथा विंध्य की पर्वत श्रेणियों की गोद में अठखेलियां करती तमसा के तट पर त्रिकूट पर्वत की पर्वत मालाओं के मध्य 600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह ऐतिहासिक मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक है।मैहर धाम में मंदिर के अलाबा आल्हा उदल अखाडा भी दार्शनिक स्थान है जिनमे से है,जो माँ शारदा देवी के अनन्य भक्त थे इसी बजह से मैहर आने बाले श्रद्धालु यहाँ जरूर जाते है।
मैहर धाम से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह झरना काफी ज्यादा खूबसूरत है यदि आप इस झरने को घूमने जाते है । एक और प्रमुख पर्यटन स्थल इक्षा पूर्ति मंदिर मैहर माता दुर्गा को समर्पित इस टेम्पल की नक्काशीदार बनावट और चारो तरफ प्राकृतिक हरियाली के सुंदरता का यह एक नमूना है ।इनके अलाबा मैहर देवी धाम में और भी पर्यटक स्थल है गोल मैथ मंदिर मैहर
नीलकंठ मंदिर और बड़ी खेरमाई मंदिर आदि।
रामसखा का बड़ा अखाड़ा :-
आज हम राम सखा संप्रदाय के बड़ा अखाडा जहा विशालकाय मंदिर के शिखर पर विराजमान शिव और मन्दिर के गर्भ गृह में 108 शिवलिंग विराजित किये हुए मंदिर का विस्तार से दर्शन कराएंगे। सखी या सखा भाव वाला सम्प्रदाय’ ‘निम्बार्क मत’ की एक शाखा होती है। जिसमें भगवान श्रीकृष्ण या राम की उपासना सखी- सखा भाव से की जाती है। इसमें माधुर्य और प्रेम भक्ति का समावेश होता है । वृन्दावन, अयोध्या और अन्यान्य स्थानों पर प्रेमलक्षणा और राधासीता भाव का इतना व्यापक प्रभाव पहुँचा कि राम और सीता को राधा-कृष्ण की छाया में ज्यों का त्यों ग्रहण कर लिया गया और उसी शैली में काव्य-रचना होने लगा।
श्रीमद् सखेंद्र जी निध्याचार्य:-
राम जी के अभिन्न सहचर सखाओं ने भी राम सखा संप्रदाय की स्थापना करके अपने प्रभु से जुड़ने और उनकी भक्ति को और गहरी बनाने का उपक्रम किया है। स्वामी रामानन्द जी, गोस्वामी तुलसी दास जी, कवि नाभादास जी और कवि अग्रदास जी इस कड़ी को आगे बढ़ाए हैं। माधुर्य उपासना में सखी भाव प्रिया – प्रियतम के प्रेम मिलन के भाव से पूजा और आराधना की जाती है।
पृथक राम सखा सम्प्रदाय का उद्भव ;-
राम सखा संप्रदाय के प्रणेता श्रीमद् सखेंद्र जी निध्याचार्य जी महराज का जन्म अठारहवीं विक्रम संवत के आखिरी चरण चैत्र शुक्ल रामनवमी को जयपुर में एक सुसंस्कृत गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। राम सखेंद्र जी महाराज राम लीला में भाग ले – ले कर अपने को राम के छोटे भाई के रूप में मानने लगे थे । महाराज जी ने जन्मस्थली होने के कारण जयपुर छोड़ कर अयोध्या पुरी चले आए और राम सखा सम्प्रदाय की स्थापना की थी। राम सखा जी सरयू नदी के तट पर एक पर्णकुटी में भगवान को याद करते- करते अपना जीवन बिताया। वे प्रभु के दर्शन के लिए सरयू तट पर साधना करने लगे।
अयोध्या में प्रभु के मिलन न होने से बेचैनी पूर्ण समय बिताने के बाद, महाराज जी वहां से चित्रकूट चले गए और वहां कामद वन गिरी पर प्रमोदवन में अपनी प्रार्थना जारी रखी। सरयू तट की भांति एक बार फिर यहां राम ने अपने जुगुल किशोर स्वरूप का दर्शन दिया। इसके संबंध में कुछ लाइनें राम सखे इस प्रकार लिखी है –
“अवध पुरी से आइके चित्रकूट की ओर।
राम सखे मन हर लियो सुन्दर युगुल किशोर।”
मैहर अखाड़े में तपोसाधना :-
श्री राम सखा जू महाराज, जो हिंदू धर्म के माधव संप्रदाय के प्रतिपादक और अनुयायी थे, लगभग दो सौ साल पहले जयपुर से मैहर आए और जहां एक मठ की स्थापना की, जिसे “श्री राम सखेंद्र जू का अखाड़ा” कहा जाता है।
नीलमती गंगा के तट पर उन्होंने एक पर्णकुटी में गणेश जी के सामने भजन किया था । महाराज जी की तपोभूमि बड़ा अखाड़े के रूप में मैहर में बहुत लोकप्रिय है जिसमें मंदिर और आश्रम दोनो है। कई व्यक्तियों ने अखाड़े को संपत्तियां दीं थी मैहर के तत्कालीन शासक ने भी अखाड़े के रखरखाव और देवता की पूजा के लिए एक गांव दिया था। इस अखाड़े के महंत राम रंगीले की मृत्यु के बाद, प्रमोधन बिहारी सरन महंत बनाए गए। श्री सरन के महंत बनने के तुरंत बाद, विंध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें अखाड़े और उससे जुड़ी संपत्तियों के उचित प्रबंधन के लिए एक ट्रस्ट कमेटी बनाने की सलाह दी। परिणाम स्वरूप “बडा अखाड़ा” ट्रस्ट का गठन कर सोसायटी के रूप में इसे पंजीकृत किया गया था। सितंबर 1955 में मैहर के तहसीलदार ने अखाड़े के प्रबंधन में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था और अंततः 30 अक्टूबर 1956 को विंध्य प्रदेश सरकार ने अखाड़े के प्रभावी प्रबंधन के लिए एक समिति का गठन किया था। श्री शरण जी महराज को प्रबंधन सौंपने के लिए कहा था जो 1860 के अधिनियम के तहत पंजीकृत सोसायटी के ज्ञापन के अनुसार गठित समिति के अध्यक्ष थे। यहां राम जानकी मंदिर में आज भी इस पंथ की पुजा पद्वति प्रचलित है। यह तपोभूमि (मैहर देवी रोड पर) बहुत ही सिद्ध पीठ है। इस समय श्री श्री1008 श्री सीता शरण जी महाराज इस पीठ के स्वामी हैं। महाराज जी के शिष्य श्री रामनाथ शरण जी मोहित महाराज के मार्गदर्शन में इस आश्रम में विविध आयोजन आयोजित होते रहते हैं।
खूबसूरत प्रवेश द्वार:-
आश्रम का जो प्रवेश द्वार है। वह बहुत ही खूबसूरत है। आश्रम के प्रवेश द्वार में एक तरफ हनुमान जी की प्रतिमा देखने के लिए मिलती है और दूसरी तरफ शंकर जी की प्रतिमा देखने के लिए मिलती है, जो बहुत ही खूबसूरत है।
श्रीसिद्ध विनायक मंदिर:-
इस 6 फीट का मंदिर पर महज 4 फीट का द्वार है। मैहर के राम जानकी बड़ा अखाड़ा के इसी श्रीसिद्ध मंदिर में 175 वर्ष से वाममुखी विनायक विराजे हैं। अखाड़ा के महंत सीता वल्लभ शरण बताते हैं, पुरातात्विक परीक्षण में यह पाषाण प्रतिमा छठवीं शताब्दी की बताई गई है। जन विश्वास में स्वयं सिद्ध वाममुखी विनायक की प्रतिमा की स्थापना का श्रेय आचार्य संत श्रीराम सुखेन्द्र निध्याचार्य
जी को है। महंतश्री ने बताया कि वर्षों पूर्व यह प्रतिमा गौसेवा के निमित्त निर्माणाधीन एक तालाब की खुदाई के दौरान मिली थी।
जैसे-जैसे आकार बढ़ा,वैसे-वैसे बढ़ी आस्था :-
मैहर बड़ा अखाड़ा के महंत सीता वल्लभ शरण ने जनश्रुतियों के हवाले से बताया कि 175 वर्ष पहले जब खुदाई के दौरान यह प्रतिमा मिली थी तब इसकी ऊंचाई महज एक फीट थी। एक फीट की मूर्ति की स्थापना के 4 फीट के द्वार का मंदिर बनाया गया,लेकिन धीरे-धीरे जब वाममुखी श्रीसिद्ध विनायक की प्रतिमा बढऩे लगी वैसे-वैसे जनआस्था बढ़ी और कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। जब प्रतिमा की ऊंचाई 5 फुट सात इंच की हो गई तो स्वप्न में मिली प्रेरणा के कारण आचार्य संत श्रीराम सुखेन्द्र निध्याचार्य जी ने एक दिन अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से प्रतिमा के दाहिने पैर के अंगूठे से दबा दिया। मूर्ति का विस्तार रुक गया। कालांतर में मंदिर की ऊंचाई तो बढ़ाकर 6 फीट कर दी गई लेकिन मंदिर के 4 फीट के द्वार से छेडख़ानी नहीं की गई।
वाममुखी का धार्मिक महत्व :-
धर्मशास्त्रों के अनुसार जिस श्रीगणेश की प्रतिमा की सूंड का अग्रभाव बाईं ओर मुड़ा होता वह मूर्ति वाममुखी कहलाती है। वाम यानी उत्तर दिशा। बाईं तरफ चंद्र नाड़ी होती है जो शीतलता प्रदान करती है। उत्तर दिशा अध्यात्म की कारक एवं आनंददायक मानी जाती है। वाममुखी गणपति के पूजन की विशेष विधि विधान की जरुरत नहीं होती। वाममुखी विनायक का पूजन गृहस्थ जीवन के लिए शुभ माना गया है। यह शीघ्र प्रसन्न होते हैं। थोड़े में संतुष्ट होते हैं और त्रुटियों को क्षमा करते हैं। मैहर का स्टेट का राजघराना वाममुखी श्रीसिद्ध विनायक का पीढ़ी दर पीढ़ी अनुयायी है।
राम-जानकी मंदिर:-
यह मंदिर शारदा देवी मार्ग पर स्थित प्राचीन दर्शनीय भगवान राम जानकी का मंदिर है जो बड़ा अखाड़ा के नाम से जाना जाता है । यहां अष्टधातु से बनी भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियां है, जिसकी पूजा संप्रदाय के अनुयायी करते थे। जनश्रुति के अनुसार मैहर के जंगल में एक प्राचीन शिव मंदिर था। यहाँ श्री राम ने पूजा की थी। यह प्राचीन मंदिर मैहर देवी मन्दिर के निकट ही है, जिसकी श्रीराम सखेन्द्र दास जी द्वारा स्थापना की गई है।
(टिप्पणी: वाल्मीकि रामायण और श्री रामचरित मानस के अनुसार सिद्वा पर्वत से सुतीक्षण आश्रम तक कोई संदर्भ नहीं मिलता। प्राप्त स्थल जन श्रुतियों और परिस्थितियों जन्य दृष्टिकोण के आधार पर ही मिलते हैं।)
सर्वदेव रामेश्वरम मंदिर :-
जनश्रुति के अनुसार मैहर के जंगल में एक प्राचीन शिव मंदिर थायहाँ श्री राम ने पूजा की थी। यहां पर शिव भगवान जी की बहुत बड़ा शिवलिंग मंदिर के छत पर बना हुआ है, जो बहुत ही सुंदर है। इस मंदिर को श्री सर्वदेव रामेश्वरम मंदिर कहा जाता है।
शिवलिंग उद्यान कूप और अन्य मंदिर :-
अखाड़े में राम सीता मंदिर के अलावा अन्य कई मंदिर भी बने हुए हैं। इसमें 108 शिवलिंग विराजमान है। उनके दर्शन भी यहां पर आकर किया जा सकता है। यहां पर एक प्राचीन कुआं भी देखने के लिए मिल जाएगा। कहा जाता है, कि यह प्राचीन कुआं है और इस कुआ में का निर्माण यहां के राजा ने करवाया था। इस आश्रम के अंदर सुन्दर बगीचा भी है। इस आश्रम में गौशाला भी है ।यहां गुरुकुल परम्परा में स्थापित संस्कृत विद्यालय संचालित है। यहां पर बहुत सारे ब्राह्मण विद्यार्थी रहते हैं, जिन्हें यहां पर शिक्षा दीक्षा दी जाती है। यहां पर राम जी का मंदिर, गणेश जी का मंदिर और हनुमान जी का मंदिर भी है। ये सभी दिव्य स्थान दर्शनीय और मन वांछित फल देने वाले हैं।