साभार….
“भारत में हिन्दुत्व एक बाजार का रूप ग्रहण कर चुका है”
भारत की अस्सी प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू है। विगत तीन दशकों में यह समाज हिन्दुत्व को लेकर जागृत हुआ है, लेकिन समस्या यह है कि वह हिन्दू आदर्श, विचार और व्यवहार को उतना ही समझ पाता है जो उसके आस-पास के परिवेश में दिखाई देता है। उसमें बहुत से श्रेष्ठ तत्व भी दिखाई देते हैं, लेकिन अनेक रूढ़ियां और आडम्बर भी हिन्दुत्व के नाम पर फलते-फूलते दिखाई पड़ते हैं।
वह अपने अतीत को जानना चाहता है, उन श्रेष्ठ तत्वों को जानना चाहता है जिसने इस संस्कृति को अमर बना दिया। वह शास्त्रबोध चाहता है, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि हमारे समाज में शास्त्रों के अध्येता बहुत कम हैं और उससे भी कम साधनाबोध से युक्त शास्त्र अध्येता हैं।
शास्त्र और साधना दोनों के समन्वय से ही तत्वबोध संभव होता है और वैसा ही व्यक्ति शास्त्र प्रवचन का अधिकारी होता है।
इस परिस्थिति का लाभ उठाकर एक हाई-टेक वर्ग खड़ हो गया जो साधना के स्थान पर अभिनय और शास्त्र के स्थान पर बाजार की मांग के हिसाब से लिखी गई पटकथा को तैयार कर बाजार में कूद पड़ा है।
जो दीवाना और पागल बनकर प्रेमिकाओं को रिझाने की कला सिखाया करते थे वे भी आज शबरी और राम के भक्ति तत्व का विवेचन करने लगे, जो फिल्मों पटकथा लिखा करते थे वे भी तत्व चिन्तक बन गये। बाकी अभिनय और पटकथा पर आधारित कथावाचकों का एक बड़ा समूह तो खड़ा ही है, जो धर्म के नाम पर सत्ता के गलियारे में भी आस्था को आधार बनाकर भक्तों के सुविधानुसार मध्यस्थता भी कर लेता है।
हिन्दुत्व रूपी हंस मूलाधार में जागृत तो हो चुका है, लेकिन उसे अब हंस की तरह नीर-क्षीर (पानी और दूध) का विवेक भी सीखना पड़ेगा। इसके लिए आवश्यक है कि लोग अधिक से अधिक अपने शास्त्रों का अध्ययन करें वरना यह बाजार हिन्दुत्व के लिए घातक सिद्ध होगा।
अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश,9451221253