भारत में अहिंसा की आधुनिक अवधारणा और हिंदू समाज
अहिंसा और हिन्दू
मुस्लिम नेताओं तथा भारतीय मुसलमानों को खुश करने के लिए गाँधी जी ने मोतीलाल नेहरु के सुझाव पर कांग्रेस की ओर से खिलाफत आन्दोलन के समर्थन की घोषणा की।
श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़ अन्द्रूज आदि नेताओं ने कांग्रेस की बैठक में खिलाफत के समर्थन का विरोध किया,किन्तु इस प्रश्न पर हुए मतदान में गाँधी जीत गए। गाँधी जी खिलाफत आन्दोलन के खलीफा ही बन गए।
गांधी जी के नेतृत्व में हिन्दू समाज समझ रहा था कि हम “राष्ट्रीय एकता और स्वराज्य” की दिशा में बढ़ रहे हैं और मुस्लिम समाज की सोच थी कि खिलाफत की रक्षा का अर्थ है इस्लाम के वर्चस्व की वापसी।
गाँधी ने 1919 ई. में “अखिल भारतीय ख़िलाफ़त समिति” का अधिवेशन “अपनी अध्यक्षता” में किया।
खिलाफत के प्रश्न को भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनाकर गांधी जी ने उलेमा वर्ग को प्रतिष्ठा प्रदान की और विशाल मुस्लिम समाज की मजहबी कट्टरता को संगठित होकर आंदोलन के रास्ते पर बढ़ने का अवसर प्रदान किया।
अगर खिलाफत आन्दोलन नहीं होता तो मुस्लिम लीग का वजूद एक क्षेत्रिय्र दल जैसा ही रहता और कभी बटवारा न हुआ होता,हम कह सकते हैं की “मोपला काण्ड और खिलाफत आन्दोलन” के कारण ही मुस्लिम नेताओं को आधार मिला देश के बटवारे का हिन्दुओं के कत्लेआम का।
“खिलाफत आंदोलन” ने आम मुस्लिम समाज में “राजनीतिक जागृति” पैदा की और अपनी शक्ति का अहसास कराया।
मुसलमानों व कांग्रेस ने जगह जगह प्रदर्शन किये। ‘अल्लाह हो अकबर’ जैसे नारे लगाकर मुस्लिमो की भावनाएं भड़काई गयी।
महामना मदनमोहन मालवीय जी तहत कुछ नेताओं ने चेतावनी दी की खिलाफत आन्दोलन की आड़ मैं मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है किन्तु गांधीजी ने कहा :—“मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को “स्वराज” से भी ज्यादा महत्व देता हूँ l”
भले ही भारतीय मुसलमान खिलाफत आन्दोलन करने के वावजूद अंगेजों का बाल बांका नहीं कर पाए किन्तु उन्होंने पुरे भारत में “मृतप्राय मुस्लिम कट्टरपंथ” को जहरीले सर्प की तरह जिन्दा कर डाला।
यह सोच खिलाफत आंदोलन के प्रारंभ होने के कुछ ही महीनों के भीतर अगस्त 1921 में केरल के मलाबार क्षेत्र में वहां के हिन्दुओं पर मोपला मुसलमानों के आक्रमण के रूप में सामने आयी। हिन्दुओं के सामने “इस्लाम या मौत” का विकल्प प्रस्तुत किया गया।
एक लाख हिन्दुओं को (मारा गया , बलात धर्मान्तरित किया गया , हिन्दू औरतों के बलात्कार हुए) सैकड़ों मंदिर तोड़े गए तथा तीन करोड़ से अधिक हिन्दुओं की संपत्ति लूट ली गई। पूरे घटनाक्रम में महिलाओं को सबसे ज्यादा उत्पीड़ित होना पड़ा। यहां तक कि गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया।
मोपलाओं की वहशियत चरम पर थी। इस सम्बन्ध में 7 सितम्बर, 1921 में “टाइम्स आफ इंडिया” में जो खबर छपी वह इस प्रकार है:—-
“विद्रोहियों ने सुन्दर हिन्दू महिलाओं को पकड़ कर जबरदस्ती मुसलमान बनाया। उन्हें अल्पकालिक पत्नी के रूप में इस्तेमाल किया। हिन्दू महिलाओं को डराकर उनके साथ बलात्कार किया। हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया।”
जबकि मौलाना हसरत मोहानी ने कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में मोपला अत्याचारों पर लाए गए निन्दा प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा:—
“मोपला प्रदेश दारुल अमन नहीं रह गया था, वह दारुल हरब में तब्दील हो गया था। मोपलाओं को संदेह था कि हिन्दू अंग्रेजों से मिले हुए हैं, जबकि अंग्रेज मुसलमानों के दुश्मन थे। मोपलाओं ने ठीक किया कि हिन्दुओं के सामने कुरान और तलवार का विकल्प रखा और यदि हिन्दू अपनी जान बचाने के लिए मुसलमान हो गए तो यह स्वैच्छिक मतान्तरण है, इसे जबरन नहीं कहा जा सकता।”
(राम गोपाल-इंडियन मुस्लिम-ए पालिटिकल हिस्ट्री, पृष्ठ-157)
स्वामी श्रद्धानन्द जी की इस निर्मम हत्या ने सारे देश को व्यथित कर डाला परन्तु गाँधी जी ने यंग इंडिया मैं लिखा:—–
” मैं भाई अब्दुल रशीद नामक मुसलमान, जिसने श्रद्धानन्द जी की हत्या की है , के पक्ष में कहना चाहता हूँ , की इस हत्या का दोष हमारा है। अब्दुल रशीद जिस धर्मोन्माद से पीड़ित था, उसका उत्तरदायित्व हम लोगों पर है। द्वेष भड़काने के लिए केवल मुसलमान ही नहीं, हिन्दू भी दोषी हैं। ”
स्वातंत्रवीर सावरकर जी ने उन्हीं दिनों 20 जनवरी 1927 के ‘श्रद्धानन्द’ के अंक मैं अपने लेख में गाँधी जी द्वारा हत्यारे अब्दुल रशीद की तरफदारी की कड़ी आलोचना करते हुए लिखा :––
” गाँधी जी ने अपने को शुद्ध हृदय , महात्मा’ तथा निष्पक्ष सिद्ध करने के लिए एक मजहवी उन्मादी हत्यारे के प्रति सुहानुभूति व्यक्त की है | मालाबार के मोपला हत्यारों के प्रति वे पहले ही ऐसी सुहानुभूति दिखा चुके हैं।”
गाँधी जी ने स्वयं ‘हरिजन’ तथा अन्य पत्रों मैं लेख लिखकर स्वामी श्रद्धानन्द जी तथा आर्य समाज के “शुधि आन्दोलन” की कड़ी निंदा की।
दूसरी ओर जगह जगह हिन्दुओं के बलात धरमांतरण के विरुद्ध उन्होंने एक भी शब्द कहने का साहस नहीं दिखाया।
मोपला कांड के चश्मदीद गवाह रहे “केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी” के “पहले अध्यक्ष और स्वतंत्रता सेनानी माधवन नॉयर” अपनी किताब “मालाबार कलपम” में लिखते हैं कि :—- मोपलाकांड में हिन्दुओं का सिर कलम कर कुओं में फेंक दिया गया।
क्या ऊपर की लाइन पढ़ के थोड़ी तकलीफ हुई तो एक बात याद रखो “मुस्लिम करें तो अल्लाह अल्लाह हिन्दू करें तो बहुत बुरा बहुत बुरा” ये गांधी का सिद्धांत था।