राम मंदिर निर्माण में नेपाल का सहयोग और भारत नेपाल संबंध
अशोक मधुप
अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के मुख्य गर्भगृह में नेपाल की पवित्र नदी काली गण्डकी में मिली शिलाओं से भगवान राम की बाल स्वरूप और माता सीता की मूर्तियों का निर्माण किया जाएगा। इन शिलाओं से मूर्ति बनने में नौ माह का समय लगेगा।
चीन या अन्य कोई देश कितनी भी कोशिश करे, भारत-नेपाल के सदियों से चले आ रहे रोटी−बेटी और श्रद्धा−आस्था के रिश्ते कभी कम नहीं होंगे। रिश्ते खराब करने की चीन की कोशिश जारी है, इसके बीच नेपाल ने अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के रामलला के बाल स्वरूप और सीतामाता की मूर्ति बनाने के लिए पवित्र काली गंडकी नदी से निकलने वाले शालीग्राम की बड़ी शिलाएं भेजी हैं। नेपाल के जानकी मंदिर के निवासियों ने इस राम मंदिर में लगने वाली भगवान राम की मूर्ति के लिए धनुष भी भेजा है। नेपालवासियों के राम मंदिर के लिए दिये जा रहे इस सहयोग से भारत और नेपाल के प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक रिश्ते और मजबूत होंगे और सुदृढ़ होंगे। किसी दूसरी शक्ति के हथकंड़े आस्था के इन रिश्तों को कमजोर नही कर सकते।
अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बन रहा है। इस मंदिर के निर्माण के कार्य जारी हैं। मंदिर के लिए देश के अंदर ही धन संग्रह का बड़ा अभियान चला। देशवासियों ने दोनों हाथों की अंजुरी भरकर मंदिर के लिए दान दिया। देश से ही इतना धन और सोना−चांदी एकत्र हो गया कि बाहरी सहयोग की जरूरत ही नहीं पड़ी। धीरे-धीरे मंदिर अपना स्वरूप लेने लगा है। दुनिया भर के हिंदू धर्मावलंबी भव्य मंदिर को बनता देख कर गौरव महसूस कर रहे हैं। सबकी इससे आस्थाएं जुड़ी हैं। वे इसमें सहयोग करना चाहते हैं।
ऐसा ही बड़ा प्रयास नेपाल में हुआ। करीब सात महीने पहले नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बिमलेन्द्र निधि ने राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के समक्ष प्रस्ताव रखा कि अयोध्या धाम में भगवान श्रीराम के इतने भव्य मंदिर का निर्माण हो ही रहा है तो जनकपुर और नेपाल की तरफ से इसमें कुछ ना कुछ योगदान होना चाहिए। बिमलेन्द्र निधि जानकी यानी सीता की नगरी जनकपुरधाम के सांसद भी हैं। मिथिला में बेटियों की शादी में ही कुछ न कुछ देने की परम्परा रही है। बल्कि शादी के बाद भी अगर बेटी के घर में कोई शुभ कार्य हो रहा हो या कोई त्यौहार मनाया जा रहा हो तो आज भी मायके से कुछ ना कुछ संदेश किसी ना किसी रूप में दिया जाता है। इसी परंपरा के तहत बिमलेन्द्र निधि ने ट्रस्ट और उत्तर प्रदेश सरकार के साथ ही भारत सरकार के समक्ष भी ये इच्छा जताई कि अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर में जनकपुर का और नेपाल का कोई अंश रहे। भारत सरकार और राम मंदिर ट्रस्ट की तरफ से हरी झंडी मिलते ही हिन्दू स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद ने नेपाल के साथ समन्वय करते हुए ये तय किया कि चूंकि अयोध्या में मंदिर का निर्माण दो हजार वर्षों के लिए किया जा रहा है, इसलिए इसमें लगने वाली मूर्ति में उस तरह का पत्थर लगाया जाए जो इतने समय तक चल सके। इसके लिए नेपाल सरकार ने कैबिनेट की बैठक में पवित्र काली गंडकी नदी के किनारे निकलने वाले शालीग्राम के पत्थरों को अयोध्या भेजने के लिए अपनी सहमति दे दी। सहमति के बाद इस तरह के पत्थर को ढूंढ़ने के लिए नेपाल सरकार ने जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल समेत वाटर कल्चर को जानने, समझने वाले विशेषज्ञों की एक टीम बनाई और गंडकी नदी क्षेत्र में भेजी। इस टीम ने अयोध्या भेजने के लिए जिन दो पत्थर का चयन किया वह साढ़े छह करोड़ साल पुराने हैं। इसकी आयु अभी भी एक लाख वर्ष तक रहने की बात बताई गई है।
जिस काली गंडकी नदी के किनारे से ये पत्थर लिये गए हैं, वो नेपाल की पवित्र नदी है। ये दामोदर कुंड से निकल कर भारत में गंगा नदी में मिलती है। दुनिया की ये अकेली ऐसी नदी है, जिसमें शालीग्राम के पत्थर पाए जाते हैं। इन शालिग्राम की आयु करोड़ों साल की होती है। इतना ही नहीं भगवान विष्णु के रूप में शालीग्राम पत्थरों की पूजा की जाती है। इस कारण से इन पत्थरों को देवशिला भी कहा जाता है। इन पत्थरों को यहां से उठाने से पहले विधि−विधान के हिसाब से क्षमा पूजा की गई। फिर क्रेन के सहारे पत्थरों को ट्रक पर लादा गया। एक पत्थर का वजन 27 टन जबकि दूसरे पत्थर का वजन 14 टन बताया गया है। यह शिलाएं जहां−जहां से गुजर रही हैं, वहां पूरे रास्ते भर में भक्तजन और श्रद्धालु इसके दर्शन और पूजन कर रहे हैं। शिलाओं को देखकर लगता है कि वह शिला नहीं अपितु भगवान राम और माता सीता की मूर्ति हों। इन शिलाओं को अच्छी तरह सजाया गया है।
गंडकी प्रदेश के संस्कृति मंत्री पंचराम तमु ने कहा कि पोखरा में गंडकी प्रदेश सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री खगराज अधिकारी ने इसे जनकपुरधाम के जानकी मंदिर के महंत को विधिपूर्वक हस्तांतरित किया है। हस्तांतरण करने से पहले मुख्यमंत्री और प्रदेश के अन्य मंत्रियों ने इस शालीग्राम पत्थर का जलाभिषेक किया। गंडकी प्रदेश के संस्कृति मंत्री पंचराम तमु ने कहा कि भारत और नेपाल हिन्दुत्व के नाते से आपस में भी जुड़े हैं। ये भगवान के नाते से भी जुड़े हैं। हम ये शिलाएं ये समझकर भेज रहे हैं कि भारत के साथ हमारा जो आत्मीय संबंध है, भगवान राम के साथ जो आत्मीय संबंध है वो कभी नहीं टूटे।
अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के मुख्य गर्भगृह में नेपाल की पवित्र नदी काली गण्डकी में मिली शिलाओं से भगवान राम की बाल स्वरूप और माता सीता की मूर्तियों का निर्माण किया जाएगा। इन शिलाओं से मूर्ति बनने में नौ माह का समय लगेगा। उधर रामजन्म भूमि तीर्थक्षेत्र के सदस्य कामेशवर चौपाल के अनुसार, नेपाल से आने वाली शिलाओं के मूर्ति निर्माण से बचे छोटे-छोटे कणों को भी आवश्यकता के अनुसार प्रयोग किया जाएगा। इन शिलाओं का प्रत्येक कण कीमती है, इन कणों को राम दरबार में भी लगाया जा सकता है। सनातन परंपरा के अनुसार शालिग्राम को विष्णु के स्वरूप में पूजते हैं। इसलिए ट्रस्ट का प्रयास होगा कि इन शालिग्राम शिलाओं का कोई कण भी व्यर्थ न जाए।
नेपाल के जानकीपुर में सीता माता का विवाह स्थल है। मान्यता है कि यहीं राम ने धनुष तोड़कर सीता माता का वरण किया था। यह मंदिर राम मंदिर से ही नेपाल को नहीं जोड़ता। नेपाल−भारत का सदियों से रोटी−बेटी का संबंध है। आपस में विवाह शादी होते रहते हैं। पूजन पद्यति भी एक है। धार्मिक आस्थाएं काफी समान हैं। दोनों देशों को यहां की संस्कृति, आस्थाएं, पूजा पद्धति और विश्वास आपस में जोड़ता है। पिछले लगभग दस साल में मेरा तीन बार नेपाल जाना हुआ। मैं नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित था। मैंने काठमांडू में भारत के कई व्यापारियों से विस्तृत बात की। व्यापारी लंबे समय से काठमांडू में रहते हैं। उनका कहना था कि चीन को नेपाल से भारत का प्रभाव खत्म करने में बहुत समय लगेगा। भारत के नेपाल से रोटी−बेटी के तो संबध हैं हीं, दोनों देशवासी एक दूसरे की बोलचाल काफी समझते हैं। खानपान काफी मिलता है। पूजा पद्धति भी एक-सी ही है। लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष नेपाल आते हैं। वे पशुपति नाथ तथा अन्य मंदिरों में पूजा पाठ करते हैं। तो लाखों नेपालवासी भारत जाकर राम मंदिर सहित अन्य धार्मिक यात्राएं करते हैं। भारतीयों की तरह वाराणसी, हरिद्वार, उज्जैन आदि तीर्थ उनकी आस्था के बड़े केंद्र हैं। चीन की भाषा और खान−पान नेपालवासी नहीं जानते। उसे गांव के स्तर पर समझने में अभी दशकों का समय चाहिए। भारतीय नेपाल में बेधड़क व्यवसाय करते हैं, तो नेपाली भारतीय सेना में जाना अपना सम्मान समझते हैं। सेना भी नेपाली विशेषकर गुरखाओं की बहादुरी की कायल है। भारत और नेपाल में रोटी−बेटी के रिश्ते अनवरत जारी हैं। बडी तादाद में भारतीय नेपाल में बसते हैं और नेपालवासी भारत में। ये रिश्ते श्रद्धा और विश्वास के हैं। चीन से नेपाल के ये रिश्ते बनना आसान ही नहीं बहुत कठिन है।
राजनेता अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए कुछ भी करते रहें। आम नेपालवासी इससे वास्ता नहीं रखते। बल्कि राजनैतिक हथकंडों के शिकार नेपाली नेतागण अपना फरारी का समय भारत में ही बिताते हैं। इतने अच्छे और मजबूत रिश्तों के बीच नेपालवासियों का राम मंदिर के लिए ये उपहार भारत नेपाल के धार्मिक और श्रद्धा के रिश्ते और मजबूत ही करेगा। माता सीता के विवाह स्थल जानकीपुर और भारत के राम मंदिर के बीच आस्था व विश्वास और बढ़ेगा।