Dr DK Garg
Note -यह आलेख महात्मा बुद्ध के प्रारम्भिक उपदेशों पर आधारित है। ।और विभिन्न विद्वानों के विचार उपरांत है। ये 9 भाग में है।
इसको पढ़कर वे पाठक विस्मय का अनुभव कर सकते हैं जिन्होंने केवल परवर्ती बौद्ध मतानुयायी लेखकों की रचनाओं पर आधारित बौद्ध मत के विवरण को पढ़ा है ।
कृपया अपने विचार अवश्य बताए।
बुद्ध मत में अन्धविश्वास
बौद्ध मत स्पष्टत नहीं है जिसमे मुनष्य के कर्म,उसका चरित्र, संस्कार, खानपान आदि के विषय में विस्तार से नहीं लिखा गया है केवल सलाह दी है ,मानो या ना मानो। सिवाय बौध की तसवीर या मूर्ति के आगे कैंडल,अगरबत्ती जलाने के । कर्म करने को तो लिखा है,लेकिन कर्म भोग पर कुछ नही कहा। इस कारण बौध देश में शराब,मांस, नशा,और अन्य कुकर्म खूब दिखाई देंगे।
इनका एक मात्र लक्षय बौद्ध लोगो का विस्तार है ।
यहाँ हम बुद्ध मत में वर्णित विभिन्न तरह के अंधविश्वास, काल्पनिक बातें और आडम्बर के बारे में बतायेंगे, बुद्धो में हीनयान, महायान, सिध्यान, वज्रयान नाम के कई सम्प्रदाय है इन सभी में प्रचुर अंधविश्वास आपको मिल जायेगा
(१) प्रार्थना चक्रः- चित्र में बुद्ध भिक्षुओ के पास एक प्रार्थना चक्र है जिसे ये घुमाते रहते है, आइये जानते है प्रार्थना चक्र के बारे में ये हाथ में पकड़ कर घुमाने की साइज से लेकर १०० फिट का होता है, जिसे गूगल पर बुद्ध प्रेयर व्हील नाम से खोज कर देख सकते है। इस पर संस्कृत में कुछ लिखा होता है, ॐ मणि पद्मे हुम् इनका मानना है कि चक्र को घुमाने से मन पवित्र होता है और पुण्य प्राप्त होता है ,भूत प्रेत आदि नकाराताम्क उर्जाये दूर होती है।इस चक्र को घडी की दिशा में घुमाने से ध्यान अच्छे से लगता है और विपरीत दिशा में घुमाने से तंत्र में सफलता मिलती है। यदि कोई जानवर भी इसकी छाया से गुजरे तो उसे भी अध्यात्म की प्राप्ति होती है। अब ये बात लोग खुद सोचे क्या चक्र से भूत भाग सकते है? क्या चक्र से अध्यात्मिक सुख की अनुभूति हो सकती है।
(2) बुद्धो द्वारा दांत की पूजा करने (ज्मउचसम व िजीम ज्ववजी) से पता चलता है कि बुद्धो में कितना पाखंड भरा है।इसी तरह ये लोग बुद्ध के भिक्षा पात्र की भी पूजा करते है। विमानवत्थु सूक्त के अनुसार स्तूप (मठो आदि ) पर माला अर्पण करने से शांति और अध्यात्म, सुख की प्राप्ति होती है अब अन्धविश्वासी बुद्धो से कोई पूछे की अच्छे कर्मो से सुख, अध्यात्म आएगा या माला आदि ढोंगो से।
(3) बुद्ध द्वारा काल्पनिक चीजों का निर्माणः- अशोकवंदन अनुसार उसने पिछले जन्म में 500 हिरनों की ऑंखें फोड़ दी थी फलस्वरूप वह पैदा तो आँखों के साथ हुआ पर उसके आँखों की रौशनी चली गई बाद में कैसे गई इस पर कई कहानी है बाद में एक अरहंत या एक सिद्ध बोध भिक्षु ने अपनी शक्तियों से कुनाल की आंखे ठीक कर दी। बौद्ध वंस के रतनचंगमनण्ड के अनुसार धम्मप्रवर्तक चक्र चलाने से पहले बुद्ध जादू से रत्नों और मणियो से सुसज्जित रत्न खचित चक्रमण भूमि का निर्माण करते है।
(4) भविष्यवाणी ओर भाग्यवाद सम्बंधित पाखंडः– बुद्ध लोग ये मानते है कि घर में लाफिंग बुद्ध रखने से सुख समृद्धि और शांति प्राप्त होती है. अब भला बिना पुरुषार्थ के एक जड़ से सुख शांति कैसे मिल सकती है ये बात तो यही बुद्ध जानते होंगे।
(5) बुद्धपकिण्णक कण्ड के अनुसार गौतम बुद्ध आने वाले बुद्ध मेतेर्य बुद्ध की भविष्यवाणी करते है।
(१) सरुची नाम के तपस्वी के लिए पनोमदस्सी भगवान ने भविष्य वाणी की कि यह अपने अंतिम जीवन में सारिया नाम की ब्राह्मणी की कोख से पैदा होकर सारीपुत्त नाम वाला होकर पेनी प्रज्ञा वाला होगा यह उस समय धर्मचक्र अनुप्रवर्तक बनेगा (सारीपुत्तत्थेर अपदान)।
(२) कोसिय नाम के जटाधारी के लिए पुदुमुतर भगवान ने भविष्यवाणी की कि यह इश्वाकू वंश के कुले गौतम शाशककाल में प्रव्रज्या प्राप्त कर उनका सुभूति नाम का श्रावक होगा। (सूभूतित्थेर अपदान)
(३) अनोम नाम के तापस के लिए पियदस्सी भगवान ने भविष्यवाणी की कि चक्षुमान गौतम बुद्ध के शासक काल में यह अभिरमण करता हुआ, उनके धर्म को सुन कर, अपने दुखो का विनाश करेगा और सारे आसन्वो का परिज्ञान कर अनानसव होकर निर्वान प्राप्त करेगा (हेमकत्थेर अपादान) अब पता चलता है कि बुद्ध मत भी पाखंडियो की तरह कर्म को महत्व न दे भाग्यवाद और भविष्यवाणी में विश्वास करता है।
(4) संभोग योगाः- बुद्ध मत में वज्रयान नाम की एक शाखा है. जिसमे तरह-तरह के तंत्र मन्त्र होते है, ये तरह-तरह के देवी देवताओ विशेष कर तारा देवी को पूजते है। ये लोग वाम्मार्गियो की तरह ही बलि और टोटके करते है। इन्ही में भेरवी चक्र होता है, जिसमे ये लोग शराब और स्त्री भोग करते है जिसे ये सम्भोग योग कहते है। इनका मानना है की विशेष तरह से स्त्री के साथ योन सम्बन्ध बनाने से समाधी की प्राप्ति होती है। इस तरह का पाखंड इन बुद्धो में भरा है, एक महान बौद्ध राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार भारत में बुद्ध मत का नाश इसी वज्रयान के कारण हुआ था आज भी थाईलैंड, चाइना आदि वज्रयान बुद्ध विहारों पर कई नाबालिक लडकियों का कौमार्य इन दुष्ट भिक्षुओ द्वारा तोडा जाता है।
(5) बौद्ध मत में स्त्री – पुरुष भेद भाव (स्त्री महा ब्रह्मान हीं हो सकती) क्यों?
बौद्ध मत में जितने भी बुद्ध शाक्य गौतम पर्यन्त हुए हैं, उनमें से एक भी बुद्धस्त्री नहीं है। नही आगे कोई स्त्री बुद्ध होगी। क्योंकि प्रत्येक बुद्ध अपने जीवन काल में आने वाले बुद्ध की भविष्यवाणी अवश्य करते हैं और आगे मैत्रेयनामक बुद्ध होंगे, जो कि स्त्री नहीं है। इसी प्रकार एक और भेद भाव बौद्ध मत में है, जिसमें स्त्री पुरुषों की तुलना में है। वो है कि स्त्री कभी भी महाब्रह्मा नहीं बन सकती है जबकि पुरुष बन सकता है।
‘‘अट्ठकथाकार के अनुसार स्त्रियाँ आठ समापत्तियों का लाभ प्राप्त करके ब्रह्म भूमि में उत्पन्न हो सकती है। इस ब्रह्म भूमि के विभावनीकार ने 4 भेद बताये हैं- 1) ब्रह्मा 2) ब्रह्म परिषद ब्रह्मा 3) ब्रह्म पुरोहित ब्रह्मा 4) महाब्रह्मा।
साथ ही विभावनीकार लिखते हैं कि ‘‘स्त्री के छन्द, वीर्य, चित्त तथा मीमांसा स्वभाव से ही पुरुषों की तरह तीक्ष्ण न होने से स्त्री भव से च्युत होकर ब्रह्मभूमि में उत्पन्न होने पर भी वे महाब्रह्मा नहीं हो सकती है।‘‘ – विभावनी, पृष्ठ 140
विभावनी पृष्ठ 141 में अट्ठकथा ‘‘ब्रह्मतं ति महब्रह्मतं अधिप्पेतं‘‘ के प्रमाण से दर्शाया गया है कि स्त्री महाब्रह्मा नहीं हो सकती है।
बुद्ध दोनों को समान मानते थे। उन लोगों को लिए हम एक प्रमाण रखते हैं जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि बुद्ध पुरुष भिक्षु और स्त्री भिक्षु में भेद भाव करते थे तथा पुरुष भिक्षु को स्त्री भिक्षु की तुलना में अधिक उच्चता, वरीयता प्राप्त थी।
चुल्लवग्ग 4 (10ध्4ध्14) में बुद्ध भिक्षुणिओं को आदेश करते हैं- ‘‘अनुमति देता हूँ, भिक्षुणी को भिक्षु देख दूर हट उसे मार्ग देने की।‘‘
यदि हम बुद्ध के इस वचन की तुलना मनु से करें तो मनु ने कहा है- ‘‘स्त्रियाःपन्थादेय – मनु 2ध्113 अर्थात् स्त्रियों को पहले मार्ग देंवे।
इससे स्पष्ट है कि बौद्ध मत में स्त्रीया स्त्रीत्व को हीन दृष्टि से देखा गया है।
5- बौद्ध पाखंड या काल्पनिक बातेंः– मझिम निकाय के अनुसार बुद्ध लाखो में विभक्त होकर एक हो जाते थे. बुद्ध खुद को बहुत विशाल ओर खुद को चीटी जैसा छोटा भी कर लेते थे, शीलवती बौद्ध भिक्षुणी के पैर के अंगूठे को बुद्ध देव सपने में आकर छू देते है ओर वह गर्भवती हो जाती है
जापानी बुद्धो द्वारा एक लोक कथा प्रचलित है की एक भिक्षुणी की जिसे ८०० नन कहा जाता है जापान में एक मान्यता थी की यदि कोई जलपरी का मॉस खा ले तो अमर बन जाएगा, अब उस भिक्षुणी का नाम था याओ .याओ के पिता एक मछुवारे थे.. एक दिन उनके जाल में जल पारी फस गयी और याओ ने उसका मॉस खा लिया जिसके कारण वह अमर हो गयी तकरीबन ८०० साल बाद वह बुद्ध की शरण में गयी और मोक्ष को प्राप्त कर गयी
- ललित विस्तर सूत्र के अनुसार बुद्ध पैदा होते ही चलने लगे थे और जहा जहा वे चलते वहा वहा कमल खिलने लगते. इस तरह की कई अवैज्ञानिक, स्रष्टि नियम विरुद्ध बातें बुद्ध मत में आपको मिलेगी
-
भूत,पिशाच के बारे में अंध विश्वासः- एक समय की बात है कि मुर्रा नाम की एक भूतनी ने भेष बदल कर बुद्ध से प्रेम का इकरार किया लेकिन बुद्ध ने मना कर दिया,, उसने नृत्य, श्रृंगार, रूप आदि से बुद्ध को लुभाने की खूब कोशिश की लेकिन बुद्ध ने उसकी एक न मानी तब क्रोधित मुर्रा भूतनी ने बुद्ध पर आक्रमण किया लेकिन उसके सारे हमले निष्फल हो जाते है फिर वो भूतनी अपने भूत प्रेतों के टोले के साथ आक्रमण करती है लेकिन बुद्ध पर इन सबका कोई प्रभाव नही होता है और फिर सभी भूत और भूतनिया बुद्ध के आगे झुक जाती है और बुद्ध इन्हें मोक्ष प्रदान करते है
अब इस काल्पनिक कहानी से निम्न प्रश्न उठते हैः- क्या बुद्ध मत भूत, प्रेत को मानता है क्या कोई आत्मा किसी के प्रति आकर्षित हो सकती है? क्या आत्मा भूत आदि सम्भोग की इच्छा कर सकते है?
इसी तरह प्रेतवत्तु सूक्त के अनुसार जब कोई व्यक्ति तपस्या करते भिक्षु को कंकड़ मारता है तो वो प्रेत बन जाता है. इसी सूक्त में एक और प्रेतनी का वर्णन है जो कि गंगा के पास पानी पीने जाती है और उसे नदी का पानी लहू दिखने लगता है. इस तरह की अनेक भूत पिशाचो की बातें बुद्ध मत में मिलेगी.
8.बौद्ध मत में 500 पुत्रों का चमत्कार!
इंडोनेशिया के उमदकनज ग्राम में एक 9वीं शताब्दी का बौद्ध मंदिर है। इस बौद्ध मंदिर में एक नक्काशी है। जिस पर बौद्ध यक्ष राज कुबेर और उनकी पत्नि हारीति का चित्रण है। इस चित्र में बौद्ध यक्ष और यक्षिणी को उनके बच्चों के साथ दर्शाया गया है। यहां आश्चर्य जनक बात यह है कि यक्षिणी के 10,20 बच्चे नहीं है अपितु 500 बच्चे हैं। इनमें कुछ बच्चे हारीति के साथ खेल रहे हैं और कुछ बच्चे बौद्ध कुबेर के साथ खेल रहे हैं।
9 क्या बौद्ध धर्म के लोग शराब पीते है ?मांस खाते है,तो इस धर्म की आवश्यकता ही क्यो?
10. महात्मा बुध ने आर्य संस्कृति को। स्वीकार किया और उसी के अनुसार सुधार कार्य और कर्म काण्ड आगे बढ़ाए तो यज्ञ आदि का विरोध नही होना चाहिए ।
बौध धर्म में फैले आडंबर के विरूद्ध धर्मगुरु आवाज क्यों नहीं उठाते,क्यो नही रोकते,?ऐसा भी देखा है की थाईलैंड में शराब की बोतल में पाइप लगाकर गौतम बौद्ध की मूर्ति के आगे रख देते है, जो शर्म की बात है। लेकिन धर्म गुरु शांत है।
बहुत से लेख हमको ऐसे प्राप्त होते हैं जिनके लेखक का नाम परिचय लेख के साथ नहीं होता है, ऐसे लेखों को ब्यूरो के नाम से प्रकाशित किया जाता है। यदि आपका लेख हमारी वैबसाइट पर आपने नाम के बिना प्रकाशित किया गया है तो आप हमे लेख पर कमेंट के माध्यम से सूचित कर लेख में अपना नाम लिखवा सकते हैं।