भारत भूषण
नई दिल्ली। संजय जोशी भाजपा के एक प्रमुख चेहरे के रूप में जाने जाते रहे हैं, वह गुजरात से हैं और राजनीति में रहकर शालीनता और मर्यादा को उनके चरित्र से भली प्रकार सीखा जा सकता है। अपने निवास के सामने पार्क में घूमते-घूमते वह लोगों से बात करते हैं और जो लोग अपनी बात को कहने में या समझाने में संकोच करते हैं वह उनके साथ भी घुल मिल जाते हैं और उनकी बात को सुनने के लिए स्वयं उनके पास जाकर खड़े हो जाते हैं। राजनीति में ऐसा गुण बहुत कम राजनीतिज्ञों के भीतर देखने में आता है। पर श्री जोशी इस गुण के कारण ही अपनी राजनीति को अपने बल पर चलाने वाले व्यक्तित्व हैं। यही कारण है उनके आवास पर लोगों की अच्छी खासी भीड़ लगती है। जिनका वह समाधान देने का भी प्रयास करते हैं। लोगों की अपनी समस्याओं का समाधान मिलता है, इसीलिए लोग दोबारा भी अपने जनप्रिय नेता के पास अपनी कोई अन्य समस्या लेकर जाना चाहते हैं।
श्री जोशी सहज रूप में भीड़ के बीच पड़ी आम कुर्सी पर भी बैठ जाते हैं। पिछले दिनों ‘उगता भारत’ की टीम पत्र के मुख्य संपादक श्री राकेश कुमार आर्य के साथ श्री जोशी से मिली तो वे जनता के बीच पड़ी कुर्सियों को खींचकर ही उसी पर बैठ जाते हैं और अपनी बात करने लगते हैं।
6 अप्रैल 1962 को नागपुर में जन्म श्री जोशी मैकेनिकल इंजीनियर रहे हैं वह एक इंजीनियरिंग कॉलेज में लैक्चरर के पद पर भी रहे हैं। उन्होंने आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में महाराष्ट्र में कार्य किया है। 1988 से वह भाजपा के साथ जुड़े। उस समय भाजपा वहां कमजोर स्थिति में थी। परंतु श्री जोशी जैसे कर्मठ नेता के साथ आने से पार्टी में जान पड़ी। क्योंकि श्री जोशी धरती से जुड़े हुए राजनीतिज्ञ हैं, और वह कर्म करने में विश्वास रखते हैं। 1998 में श्री जोशी को गुजरात भाजपा का जनरल सैक्रेटरी बनाया गया। जिसका दायित्व उन्होंने बहुत ही अच्छे ढंग से निभाया। मई 2012 में श्री जोशी व श्री मोदी के बीच संबंधों की कड़वाहट की चर्चाएं जोरों पर चली। परंतु श्री जोशी उन सारी विषम परिस्थितियों का सामना करने में सफल रहे और उन्होंने यह सिद्घ कर दिया कि वह अपने सिद्घांतों से हटने वाले या डिगने वाले व्यक्ति नहीं हैं, परिणाम चाहे जो हो। यही कारण रहा कि उनका सम्मान करने के लिए भाजपा के नेताओं को विवश होना पड़ा। ऐसी विषम परिस्थितियों के बीच अपना राजनैतिक कैरियर बेदाग बनाकर चलना और लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहना सचमुच एक बड़ी चुनौती है। जिस श्री जोशी बखूबीपूर्ण करने में सफल रहे हैं।
श्री जोशी अपनी बातचीत के क्रम में कहते हैं कि उन्हें राजनीति को जनसेवा का एक माध्यम मानकर चलने में मजा आता है। वह कहते हैं कि राजनीति को राष्ट्रनीति के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है, जिसमें भारतीयता के वे सभी गुण और संस्कार समाविष्ट और समाहित होने अपेक्षित हैं जो मानवता के कल्याण के लिए भारतीय राजधर्म में आवश्यक माने गये हैं। श्री जोशी का मानना है कि राजनीति में विचारधारा प्रमुख होती है और विचारधारा को अपनी प्रमुखता को सिद्घ करने के लिए समान आचार संहिता का पालन करना चाहिए, जिसके अनुसार राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दलों के लिए सभी लोग समान होने चाहिए। सभी को अपनी समस्याओं का उचित समाधान मिलना चाहिए और हर व्यक्ति को अपने शारीरिक और आत्मिक विकास के सभी अवसर उपलब्ध होने चाहिए। यही लोकतंत्र की पहचान है।