Categories
बिखरे मोती

जरा दिल खुदा से लगाकै तो देखो

बिखरे मोती-भाग 206

गतांक से आगे….
परमपिता परमात्मा के नाम के जाप की महिमा के संदर्भ में कवि कितना सुंदर कहता है :-
जरा दिल खुदा से लगाकै तो देखो
वो करता सभी की, हिफाजत तो देखो।।
देने पै आये तो, दे दे वो कितना?
अमीरी की उसकी, ताकत तो देखो।।
जरा दिल खुदा से लगाकै तो देखो…
वो जहां भी रहेगा, उसी का रहेगा।
मोहब्बत की उसकी, ये रियासत तो देखो।।
जरा दिल खुदा से लगाकै तो देखो…
जो देखे है उसको, उसी का हो जाता।
है आंखों में कितनी, कयामत तो देखो।।
जरा दिल खुदा से लगाकै तो देखो…
सभी को वो बिल्कुल अपना सा लगता।
है उसमें ये कितनी, मोहब्बत तो देखो।।
जरा दिल खुदा से लगाकै तो देखो…
प्रार्थना वह सीढ़ी (निसैनी=नि:स्रेणी) है जो मनुष्य को सफलता के शिखर पर पहुंचाती है। प्रार्थना आपके हृदय की भाव-तरंगों को पवित्र, प्रभावी, सुकोमल और संवेदनशील बनाती है। प्रार्थना वह सशक्त माध्यम है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है, उसमें दिव्य तेज भरता है, परमात्मा का साक्षात्कार कराता है। इसीलिए प्रार्थना को आत्मा का भोजन माना गया है। प्रार्थना आत्मबल का मूल स्रोत है। प्रार्थना तभी तक सार्थक सिद्घ होती है जब तक व्यक्ति धर्म का पालन करता है, जैसे ही व्यक्ति धर्म (सत्कर्म) छोड़ देता है तो धर्म उसका साथ छोड़ देता है। धर्म जैसे ही व्यक्ति का साथ छोड़ता है तो प्रभु भी उस व्यक्ति का हाथ छोड़ देते हैं। इसलिए धर्म (चित्त की निर्मलता) पर आरूढ़ रहना नितांत आवश्यक है। प्रार्थना के महत्व पर प्रकाश डालते हुए यहां इतना कहना प्रासंगिक होगा-ही भोजन से शरीर को रस मिलता है, जबकि प्रार्थना से आत्मा को रस मिलता है। अर्थात आत्मबल मिलता है। इसलिए मनुष्य को प्रभु-प्रार्थना करने में कोताही अथवा प्रमाद नहीं करना चाहिए। यह मूल की भूल भविष्य में महंगी पड़ती है। अत: प्रभु प्रार्थना अर्थात संध्या सुबह-शाम अवश्य करनी चाहिए। प्रार्थना से मनुष्य के मन, वचन और कर्म में एकरूपता आती है, अंत:करण पवित्रता होता है तथा व्यक्ति का मन शुभसंकल्प और दृढ़ संकल्प शक्ति से ओत-प्रोत होता है। जीवन का उत्कर्ष होता है। व्यक्ति मनुष्यत्व से देवत्व को प्राप्त होता है क्योंकि प्रार्थना से दिव्यगुण (ईश्वरीय गुण) उसके व्यवहार में भासने लगते हैं। इतना ही नहीं-व्यक्ति का जीवन प्राणीमात्र के लिए इतना कल्याणकारी सिद्घ होता है कि वह मानवता का मसीहा (फरिश्ता) और धरती की धरोहर कहलाने लगता है आने वाली पीढिय़ां उस पर गर्व करती हैं, जैसे महर्षि कपिल, कणाद, याज्ञवल्क्य, मैत्रेयी, मदालसा, अनुसूया, मीराबाई, महात्मा गांधी, गुरूनानकदेव, देव दयानंद आदि। प्रार्थना के संदर्भ में यूरोप के महान विचारकों का दृष्टिकोण देखिये-”हे प्रभु! मुझे अंधकार से अर्थात अज्ञान से प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले चलो। मुझे अपनी अंगुली सर्वदा पकड़ाये रखना, कहीं कभी मेरा पदस्खलन न हो जाए। मैं तेरी कृपा का पात्र सर्वदा बना रहूं।” क्रमश:

Comment:Cancel reply

Exit mobile version