गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म =एक विस्तृत अध्ययन* पार्ट ६
Dr DK Garg
Note -यह आलेख महात्मा बुद्ध के प्रारम्भिक उपदेशों पर आधारित है। ।और विभिन्न विद्वानों के विचार उपरांत है। ये 9 भाग में है।
इसको पढ़कर वे पाठक विस्मय का अनुभव कर सकते हैं जिन्होंने केवल परवर्ती बौद्ध मतानुयायी लेखकों की रचनाओं पर आधारित बौद्ध मत के विवरण को पढ़ा है ।
कृपया अपने विचार अवश्य बताए।
क्या भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे?
कहते है की ऐसा कथा ये कथा श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण आदि में वर्णित है की भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से 23वां अवतार बुद्ध का था।
विष्लेषण
गौतम बौद्ध का जन्म हिन्दू क्षत्रिय परिवार में हुआ और बाद में कर्म आधारित ब्राह्मण बने। उन्होंने ब्राह्मणों की तरह भिक्षा ले कर जीवन यापन किया और अहिंसा की शिक्षाएं दी।
बुद्ध कोई नाम नहीं है, एक पदवी है जिसका अर्थ है ज्ञान से परिपूर्ण। बुद्ध से पहले भी 27 बुद्ध हुए हैं और वे सभी बुद्ध ब्राह्मण या क्षत्रिय थे। अगर आप इंडोनेशिया की सैकड़ों साल पुरानी बुद्ध की मूर्तियां देखें तो पाएंगे कि बुद्ध हर मूर्ति में ब्राह्मणों की तरह जनेऊ पहने हैं और माथे पर तिलक लगाएं हैं। इसे आप google भी कर सकतें हैं। बुद्ध का क्षत्रिय वर्ण से ब्राह्मण वर्ण में प्रवेश करना मनुस्मृति ने वर्णित की वर्ण व्यवस्था की स्वीकृति है जिसका आंबेडकरवादी विरोध करते आए हैं।
बुद्ध के अवतारवाद के संदर्भ में डा, सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के विचार अवलोकनीय हैः ‘‘ईश्वर कभी सामान्य रूप में जन्म (अवतार) नहीं लेता। अवतार केवल मानव की आध्यात्मिक एवं दैवी शक्तियों की अभिव्यक्ति है। अवतार दिव्य शक्ति का मानव शरीर में सिकुड़ कर व्यक्त होना नहीं, बल्कि मानव- प्रकृति का ऊर्ध्वारोहण है जिसका दिव्य शक्ति से मिलन होता है।“
वे आगे लिखते हैं, जब कोई व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को विकसित कर लेता है, दूरदर्शिता व उदारता दिखाता है, सामयिक समस्याओं पर विचार व्यक्त करता है एवं नैतिक और सामाजिक हलचल मचा देता है, हम कहते हैं कि अधर्म के नाश एवं धर्म की स्थापना के लिये ईश्वर ने जन्म लिया है।
इस परिप्रेक्ष्य में कुछ स्वार्थी तत्वों ने महात्मा बुद्ध को अवतार घोषित कर दिया और प्रमाण के लिए महात्मा बुध का नाम पुराणों से जोड़ दिया उनको मालूम है की श्रद्धालु के घर पे ना तो पुराण मिलेंगे और ना ही वह पुराणों से सत्यापन करेगा ।इसलिए झूट चलने दो।
क्योंकि अवतारवाद पुराणों की परिकल्पना है। कहते है की कई पुराणों में महात्मा बुद्ध का विष्णु के नवम अवतार के रूप में वर्णन है। वास्तविकता ये है कि न तो महात्मा बुद्ध ने अपने आप को अवतार माना है, न ही बौद्ध मत के अनुयायी उन्हें अवतार मानते हैं।
आपको जान कर हैरानी होगी कि जो व्यक्ति संघ शरण में जाता है या बौद्ध धर्म ग्रहण करता है, उसे एक प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है। उस प्रतिज्ञा की पांचवी धारा इस प्रकार हैः
“मैं बुद्ध को विष्णु का पाँचवी अवतार नहीं मानूंगा“ इसे केवल पागलपन और झूठा प्रचार मानता हूँ।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि बुद्ध एक तत्कालीन समाज सुधारक थे जिसने राजपाठ छोड़कर ब्राह्मण वर्ण में प्रवेश किया और भगवा धारण करके समाज सुधारक बने रहे, श्रद्धाभाव के कारण किसी महापुरूष को इस प्रकार से उपाधि देना इसका उपहास कहा जाएगा।