अमृत महोत्सव के उषाकाल में बसंत और गणतंत्र का पर्व
देश के लिए सचमुच वह ऐतिहासिक पल थे जब हमने पहली बार 26 जनवरी 1950 को एक गणतंत्र के रूप में आगे बढ़ने का निर्णय लिया था। उस दिन सारे देश में खुशी का एक अलग ही मंजर था। हम सबने एक साथ, एक दिशा में, एक सोच के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया था। तब देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भारत की संस्कृति की शाश्वत और सनातन परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हुए भारत के राष्ट्रपति भवन में पहले राष्ट्रपति के रूप में पहली बार प्रवेश किया था। अब हमारे इस गणतंत्र के 73 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। हमारे लिए यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि जिस समय हमने अपने संविधान को अपनाकर गणतंत्र के कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया था उस समय देश के पास ऐसा कुछ भी नहीं था जिस पर वह गर्व और गौरव की अनुभूति कर सके। उसके पास था तो केवल एक संकल्प था कि वह अपनी आत्मिक शक्ति के आधार पर आगे बढ़ेगा और विश्व गुरु के खोए हुए अपने गौरव को फिर से प्राप्त करेगा । बस इसी संकल्प के साथ देश की बड़ी जनशक्ति ने आगे बढ़ने का निर्णय लिया और हम कई उतार-चढ़ावों को देखने के उपरांत भी अपने गौरवपूर्ण गणतंत्र के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहे।
देश ने पिछले 8 वर्ष में विशेष रूप से कई ऐसे कीर्तिमान स्थापित किए जिनके कारण विश्व पटल पर अपने आप को एक सबल, सशक्त और समर्थ भारत के रूप में स्थापित कर सकने में सफल हुआ है। हम यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि इससे पूर्व के किसी भी प्रधानमंत्री के काल में इस दिशा में जितने भी कार्य किए गए वह भी सब अभिनंदन के योग्य हैं। इस साल का गणतंत्र दिवस समारोह देश के सैन्य कौशल, सांस्कृतिक विविधता और कई अन्य अनूठी पहलों का साक्षी बना। यह देश की सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक विविधता के एक अद्भुत मिश्रण के रूप में दिखाई दिया जिससे यह स्पष्ट हुआ कि देश में बढ़ती स्वदेशी क्षमताओं, नारी शक्ति और न्यू इंडिया के उद्भव को प्रकट करने की अद्भुत क्षमता है।
अपनी सादगी और गौरवपूर्ण विशिष्ट शैली की प्रतीक बनी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कर्तव्य पथ से 74वें गणतंत्र दिवस समारोह में देश का नेतृत्व किया। मैंने बहुत ही विनम्रता और गौरवपूर्ण ढंग से सारे विश्व को दिखाया कि भारत किस प्रकार एक महिला के नेतृत्व में आगे बढ़ने में गौरव की अनुभूति करता है। यहां पर हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने प्रत्येक वर्ष के गणतंत्र दिवस पर किसी न किसी देश के राष्ट्रपति या राष्ट्राध्यक्ष को अपने मुख्य अतिथि के रुप में आमंत्रित करते हैं। इस बार यह सम्मान मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी को मिला । इस दिन अपने देश के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हम युद्ध के क्षेत्र में देश के लिए कार्य करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए अपने सभी दिवंगत बलिदानियों को भी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जिसके लिए देश के प्रधानमंत्री युद्ध स्मारक पर जाकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। इस बार भी यही हुआ। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने यदि स्मारक पर जाकर सभी शहीदों को कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की।
इसके बाद प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्ति परेड देखने के लिए कर्तव्य पथ पर सलामी मंच पर पहुंचे। परेड का शुभारंभ राष्ट्रपति के सलामी लेने के साथ हुई। परेड की कमान परेड कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल धीरज सेठ, अति विशिष्ट सेवा मेडल, दूसरी पीढ़ी के सेना अधिकारी ने संभाली। मुख्यालय दिल्ली क्षेत्र के चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल भवनीश कुमार परेड सेकेंड-इन-कमांड रहे।
कर्नल महमूद मोहम्मद अब्देल फत्ताह एल खारासावी के नेतृत्व में पहली बार कर्तव्य पथ पर मार्च करते हुए मिस्र के सशस्त्र बलों का संयुक्त बैंड और मार्चिंग दल भी गणतंत्र दिवस समारोह का हिस्सा बना। दल में 144 सैनिक शामिल हुए, जो मिस्र के सशस्त्र बलों की मुख्य शाखाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व 61 कैवेलरी के एक माउंटेड कॉलम, नौ मैकेनाइज्ड कॉलम, छह मार्चिंग टुकड़ियों और आर्मी एविएशन कॉर्प्स के एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) द्वारा एक फ्लाई पास्ट द्वारा किया गया। मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन, नाग मिसाइल सिस्टम (एनएएमआईएस), बीएमपी-2 एसएआरएटीएच का इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल, क्विक रिएक्शन फाइटिंग व्हीकल, के-9 वज्र-ट्रैक्ड सेल्फ-प्रोपेल्ड होवित्जर गन, ब्रह्मोस मिसाइल, 10 मीटर शॉर्ट स्पैन ब्रिज, मोबाइल माइक्रोवेव नोड और मैकेनाइज्ड कॉलम में मोबाइल नेटवर्क सेंटर और आकाश (नई पीढ़ी के उपकरण) मुख्य आकर्षण बने।
61 कैवलरी की वर्दी में पहली टुकड़ी का नेतृत्व कैप्टन रायजादा शौर्य बाली ने किया। 61 कैवलरी दुनिया में एकमात्र सेवारत सक्रिय घुड़सवार कैवेलरी रेजिमेंट है, जिसमें सभी ‘स्टेट हॉर्स यूनिट्स’ का संयोजन है। भारतीय नौसेना दल में 144 युवा नाविक शामिल होंगे, जिसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट कमांडर दिशा अमृत कंटिजेंट कमांडर ने किया। मार्च करने वाली टुकड़ी में पहली बार तीन महिलाएं और छह अग्निवीर शामिल हुए। इसके बाद नौसेना की झांकी होगी, जिसे ‘इंडियन नेवी-कॉम्बैट रेडी, क्रेडिबल, कोहेसिव एंड फ्यूचर प्रूफ’ थीम पर डिजाइन किया गया है। यह भारतीय नौसेना की बहु-आयामी क्षमताओं, नारी शक्ति और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के अंतर्गत स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित संपत्तियों को प्रदर्शित किया गया।
झांकी के आगे के हिस्से में डोर्नियर विमान के महिला चालक दल को दिखाया गया, जिसने पिछले वर्ष किए गए सभी महिला चालक दल की निगरानी को उजागर किया। झांकी में मुख्य भाग नौसेना की ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी प्रदर्शित किया गया। समुद्री कमांडो तैनात ध्रुव हेलीकॉप्टर के साथ नए स्वदेशी नीलगिरी वर्ग के जहाज का एक मॉडल बना। किनारों पर स्वदेशी कलवारी श्रेणी की पनडुब्बियों के मॉडल दर्शाए गए। स्वदेशी रूप से विकसित व्हील्ड आर्मर्ड प्लेटफॉर्म (डबल्यूएचएपी), एक मॉड्यूलर 8 बाई 8 पहिए वाला कॉम्बैट प्लेटफॉर्म 70 टन के ट्रेलर पर ले जाया जा रहा है, जिसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा उपकरण के रूप में प्रदर्शित किया गया।
26 जनवरी 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी देकर झंडा फहराया था। हम सभी यह जानते हैं कि गणतंत्र दिवस के दिन देश के राष्ट्रपति इंडिया गेट के राजपथ पर तिरंगा झंडा फहराते हैं। इस खास मौके पर भव्य परेड का आयोजन किया जाता है। साथ ही परेड राजपथ से शुरू होकर लाल किले तक जाती है। भारत 26 जनवरी 1950 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर एक गणतंत्र राष्ट्र बना। उसके ठीक 6 मिनट बाद 10 बजकर 24 मिनट पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। तब से ही यह परंपरा देश में पड़ गई थी कि गणतंत्र दिवस के मौके पर हर साल इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक राजपथ पर भव्य परेड भी होती है। इस परेड में भारतीय सेना, वायुसेना, नौसेना आदि की विभिन्न हिस्सा लेती हैं।
आजाद भारत में पहली बार 26 जनवरी 1950 को पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया था। इस दिन देश का संविधान लागू हुआ था। पहली बार पुराना किला के सामने स्थित इरविन स्टेडियम में गणतंत्र दिवस की परेड आयोजित की गई थी। वर्तमान में इस जगह पर दिल्ली का चिड़ियाघर है और इरविन स्टेडियम को बाद में नेशनल स्टेडियम और अब मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम के नाम से जाना जाता है। 26 जनवरी 1950 को भारत को अपना पहला राष्ट्रपति भी मिला था। इस दिन सुबह 10:18 पर देश का संविधान लागू होने के 6 मिनट बाद यानी 10:24 पर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति पद के लिए शपथ ली थी और प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इरविन स्टेडियम में देश का तिरंगा फहराया था। इसके बाद उन्होंने 26 जनवरी को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में भी घोषित किया था।
यहां पर हम यह भी स्पष्ट करना चाहेंगे कि जब 1930 की 26 जनवरी को रावी नदी के तट पर पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने पहली बार पूर्ण स्वाधीनता दिवस मनाया था तो उस वर्ष भी बसंत पंचमी का दिन था। यह अद्भुत संयोग है कि 1930 के बाद इस बार भी बसंत पंचमी के दिन ही ने अपने इस राष्ट्रीय पर्व को मनाया है। संकेत स्पष्ट है कि अमृत महोत्सव के इस उषा काल में देश अब अपने “बसंत” को मनाने की ओर तेजी से आगे बढ़ चुका है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत