डॉ. नीरज भारद्वाज
भारतवर्ष की महानता और इसमें रहने वाले महान व्यक्तित्वों के बारे में जितना लिखा जाए उतना ही कम लगता है। भारतवर्ष की स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के साथ ही तिरंगे से जुड़ी कितनी ही साहसिक कहानियां उन सभी देशभक्तों, क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिला देती है, जिन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया और हमें आजादी दिला दी।
दो अगस्त 1907 को स्टेटगार्ट, जर्मनी में भीका जी कामा ने अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस के अधिवेशन में देश का प्रतिनिधित्व किया। इस अधिवेशन में भाषण से पहले अपने देश का झंडा फहराना जरुरी था। उस समय भारतवर्ष स्वतंत्र नहीं था, तो देश का कोई अपना झंडा भी नहीं था। लेकिन भीका जी कामा ने तुरंत एक झंडे को बनाया। उन्होंने तीन पट्टी अर्थात् धारी का एक झंडा तैयार किया। उसमें हरि धारी पर आठ कमल के फूल आंके, जो देश के प्रांतों के प्रतीक थे। गेरूए रंग की धारी पर वंदे मातरम लिखा, लाल धारी पर दाईं ओर उगता सुनहरा सूर्य तथा बाईं ओर अर्द्ध चंद्र आंक दिया। देखते ही देखते एक सुंदर झंडा बन गया। अपने भाषण से पहले झंडा फहराया और कहा- यह झंडा स्वतंत्र भारत का प्रतीक है, गौर से देखिए यह झंडा जन्म ले चुका है। आगे चलकर कुछ परिवर्तनों के साथ स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय ध्वज बनाया गया और यह राष्ट्रीय ध्वज हमारा प्यारा तिरंगा ही है।
तिरंगे की इस यात्रा में ऊषा मेहता का नाम भी याद आता है, जिनका बचपन गुजरात के भडोच नगर में बीता। 1942 में गांधीजी का- अंग्रेजों भारत छोड़ो, नारा और आंदोलन दोनों ही चल रहे थे। उसी की प्रेरणा से ऊषा मेहता अपनी सहेलियों के साथ विरोध जुलूस के लिए हाथों में तिरंगा झंडा उठाए निकली और वंदे मातरम का गान किया। पुलिस ने झंडे छीनकर उन्हें भगा दिया। ऊषा कहाँ रुकने वाली थी, उसने और उसकी सहेलियों ने एक दर्जी को ढूंढा और रात में तिरंगे की पोशाके सिलवाई। उसको पहन कर हर लड़की चलता फिरता तिरंगा झंडा नजर आ रही थी। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और विरोध जुलूस बंद करवा दिया। तिरंगे और स्वतंत्रता के प्रति यह राष्ट्रभक्ति किसी के अंदर भी नवप्राण भर सकती है।
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की कहानी में साइकिलिंग के खिलाड़ी और स्वतंत्रता सेनानी जानकीदास भी याद आते हैं। जानकीदास ने वर्ष 1946 में ज्यूरिक, स्विजरलैंड में होने वाले अंतरराष्ट्रीय खेलों में तिरंगा झंडा लहरा दिया था। जानकीदास अपनी कमीज के नीचे तिरंगे को छुपा कर ले गए, जैसे ही यूनियन जैक नीचे उतरा और उसी जगह तिरंगा हवा में लहराने लगा। विदेशी भूमि पर अपना तिरंगा लहराने वाला यह साहसी खिलाड़ी तिरंगे की इस यात्रा में अपनी अमर गाथा लिख गया है।
स्वतंत्रता से पूर्व जब हमारे स्वतंत्रता सैनानियों और देशभक्तों के बीच तिरंगे के प्रति इतना प्रेम रहा है, तो आज आजादी के बाद हमारे अंदर तिरंगे के प्रति प्रेम और सम्मान कई गुना बढ़ गया है। तिरंगे के प्रति हमारे भीतर सम्मान होना ही चाहिए। हर हाथ तिरंगा, हर घर तिरंगा, हर दिल तिरंगा होना ही चाहिए। तिरंगा झंडा राष्ट्र का प्रतीक है, हमारे गौरव और स्वतंत्रतात संग्राम की अमर गाथा का प्रतीक है। तिरंगा हमारी आन-बान-शान है। तिरंगे का सम्मान ही राष्ट्र का सच्चा सम्मान है।