अटल बिहारी वाजपेयी इस देश के उन राजनेताओं में से रहे हैं, जिन्होंने अपनी अटल संकल्प शक्ति से इस देश के भविष्य को संवारने का अथक परिश्रम किया। उनके एक बहुचर्चित भाषण का वाक्यांश है कि-”भारत जमीन का टुकड़ा नहीं है, जीता जागता राष्ट्रपुरूष है। हिमालय इसका मस्तक है, गौरीशंकर शिखा है। कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं। विंध्याचल कटि है, नर्मदा करधनी है। पूर्वी और पश्चिमी घाट दो जंघाएं हैं। कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है। पावस के काले-काले मेघ इसके कुंतल केश हैं। चांद और सूरज इसकी आरती उतारते हैं। यह वंदन की भूमि है। अभिनंदन की भूमि है। यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है। इसका कंकर-कंकर शंकर है। इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है। हम जियेंगे तो इसके लिए, मरेंगे तो इसके लिए।”
देश का यह सौभाग्य है कि अटल जी ने जिस राष्ट्रपुरूष या राष्ट्रदेव का मानवीयकरण उक्त वाक्यांश में किया है-उसके मंदिर का सबसे बड़ा पुजारी आज अटलजी का ही मानस पुत्र नरेन्द्र मोदी के नाम से देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा है।
अपना प्यारा भारत वह भारत है-जिसने इस सारे संसार को लोकतंत्र का पाठ उस समय पढ़ाया था, जब संसार चलना भी नहीं सीखा था। लोकतंत्र का क, ख, ग भी नही जानता था और इसकी वाणी से कोई शब्द नहीं निकलता था। समय परिवर्तनशील है और यह सदा घड़ी की टक-टक करने के साथ हर-क्षण, हर-पल निरंतर आगे बढ़ता रहता है। अत: समय बदला और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का अपहरण कर लिया गया। विदेशियों की शासन सत्ता ने इस देश के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और नैतिक मूल्यों की चूलें हिला दीं। उन्हें घातक रूप से मिटाने का प्रयास किया और उनके स्थान पर अपनी मूर्खतापूर्ण और अज्ञानाधारित मान्यताओं का और मूल्यों का प्रत्यारोपण किया। इसी प्रकार के मूर्खतापूर्ण प्रत्यारोपण को हमें ‘भारत पर विदेशियों के प्रभाव’ के रूप में बताया व पढ़ाया जाता है। मुगलों का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव, तुर्कों का प्रभाव, यूरोपीयन लोगों का प्रभाव आदि इसी प्रकार के प्रत्यारोपण के उदाहरण हैं। लोगों का गला सूख गया विदेशियों के भारत की संस्कृति पर सकारात्मक प्रभाव को बताते-बताते। जिन लोगों ने भारत की संस्कृति को नष्ट किया और उस पर अपनी अपसंस्कृति की कलम चढ़ायी उन्हें ही इस देश का महान सम्राट कहा गया, जिन्होंने इस देश के मर्म को कभी नही जाना और जाना तो माना नहीं-वे ही विद्वान हो गये। ऐसी ‘कलमों’ के विषय में ही किसी कवि ने कहा है-
”है रखैलें तख्त की ये कीमती कलमें,
इनके कण्ठ में स्वयं का स्वर नहीं होता।
ये सियासत की तवायफ का दुपट्टा है,
जो किसी के आंसुओं से तर नही होता।।”
सियासत की तवायफ दरबारों में नाचती रही और उसका दुपट्टा जितना फिसलता गया सियासतदां उतने ही इस रंग में डूबते चले गये।
देश ने आजादी के बाद आंखें खोली तो सियासत की तवायफ के फिसलते दुपट्टे पर झूमते ‘रंगीले बादशाह’ देश के मालिक बन गये। कोई देश का ‘बापू’ बन गया तो कोई ‘चाचा’ बन गया। संरक्षक कोई नहीं बना-संस्कृति का पोषक, धर्म का रक्षक और देश के मूल्यों का व्याख्याकार भी कोई नहीं बना। फलस्वरूप देश का लोकतंत्र दिग्भ्रमित हो गया। जिस समय ऐसे लोगों की तूती बोल रही थी-उसी समय हिंदू महासभा, आर्य समाज, आरएसएस अपने-अपने ढंग से देश की संस्कृति के पोषण की, धर्म की और राजनीतिक मूल्यों की रक्षा की अपने-अपने ढंग से चेष्टा कर रहे थे। इस ‘भागीरथ प्रयास’ ने कई दशक संघर्ष किया और उसी प्रयास की फलश्रुति के रूप में हमें पहले अटल जी तो अब मोदी जी देश के प्रधानमंत्री के रूप में मिले हैं।
आज अपने राष्ट्रपुरूष का प्रथम सेवक ऐसा व्यक्ति है जो इस देश के धर्म का रक्षक है, संस्कृति का पोषक है और राजनीतिक मूल्यों के प्रति पूर्णत: समर्पित है। इस सबके उपरान्त एक बात रह-रहकर उठ रही है कि वर्तमान भाजपा सरकार के मुखियाओं या चुनाव प्रबन्धकों ने ऐसी व्यवस्था कर दी है-जिससे ईवीएम में वोट डालते समय लोग चाहे हाथी का चिह्न दबायें, चाहे हाथ का पंजा वाला चिह्न दबायें पर वोट भाजपा को ही जाता है। विपक्ष के इस आरोप को प्रारम्भ में लोग उसके खीज मिटाने के एक ढंग के रूप में ले रहे थे, परन्तु अब बार-बार के परिक्षणों से जो स्थिति साफ होती आ रही है वह सचमुच बेचैन करने वाली है। अब पूर्णत: तटस्थ लोग भी इस प्रकार के आरोपों को दोहरा रहे हैं। यदि ऐसा है तो हमारा मानना है कि यह तो लोकतंत्र के साथ बहुत बड़ा अन्याय है।
इस देश की जनता क्रूर तानाशाही के विरूद्घ लडऩे वाली रही है। जिसके लिए उसने सदियों तक रक्त बहाया है। निश्चित रूप से अपने लोकतंत्र की रक्षा इसने रक्त बहाकर की है और रक्त बहाकर ही उसे पाया है, यह देश आजादी के लिए नहीं-लोकतंत्र के लिए लड़ा है, उसी के लिए इसने खून बहाया है। यह आजाद तो सदा रहा, बस समस्या ये थी कि इसके लोकतंत्र को कुछ ‘भेडिय़ों’ ने कब्जा लिया था। यह उनसे मुक्ति चाहता था-इसी को लोगों ने ‘स्वतंत्रता संग्राम’ का नाम दे दिया। व्याख्या को सही ढंग से समझने की आवश्यकता है।
नेहरू गांधी की कांग्रेस लोकतंत्र की हत्या करती रही, आजादी से पूर्व एक व्यक्ति की पसंद से कांग्रेस के अध्यक्ष बनते रहे। स्मरण रहे कि 1921 के कांग्रेस के ‘अहमदाबाद अधिवेशन’ में गांधीजी ने पार्टी के लोगों से यह शपथपत्र ले लिये थे कि भविष्य में वे जिसे चाहें अध्यक्ष बनायें और जिसे चाहें अपना उत्तराधिकारी बनायें-इस पर किसी को आपत्ति नहीं होगी। कांग्रेस का यह संस्कार बीज उसे खाद पानी देता रहा और उसके शासनकाल में देश के लोकतंत्र को ‘गन’बल, ‘जन’बल, और ‘धन’बल का दास बनाने का हरसम्भव प्रयास किया गया। आज जब कांग्रेस के पापों का पता लोगों को चलता जा रहा है कि उसने किस प्रकार देश के लोकतंत्र का अपहरण किया था?-वैसे-वैसे ही लोग उसके नायकों के प्रति घृणा से भरते जा रहे हैं। लोगों को लग रहा है कि हमने लोकतंत्र के लिए जो संघर्ष किया था वह सम्भवत: निरर्थक रहा।
लोगों ने अपने लोकतंत्र की रक्षा के लिए मोदी को देश की कमान सौंपी है। 2014 में लोगों ने ‘नई क्रान्ति’ की और मोदी जी को स्पष्ट कहा कि लोकतंत्र का पोषण इस देश में अनिवार्य है, एक साधारण सा व्यक्ति इस देश के लोकतंत्र के मंदिर अर्थात संसद में चुनकर जाये-यह स्थिति उत्पन्न होनी चाहिए। जिन लोगों ने ‘गन’बल से या ‘जन’बल से और ‘धन’ बल से अधिकनायक बनकर जनसाधारण का प्रवेश देश के लोकतंत्र के मंदिर में निषिद्घ कर दिया था-वह प्रवेश निषेध की पट्टिका अब हटनी चाहिए। लोगों ने मोदी से कहा कि ‘धन-गन-जन अधिनायक जय हो’-का समय अब बीतना चाहिए और ‘जन-गण-मन लोकनायक जय हो’-का दौर आना चाहिए।
यदि मोदी के रहते ई.वी.एम. में गड़बड़ी हो रही है तो यह सचमुच चिन्ता का विषय है। यह तो ‘धन-गन-जन अधिनायक जय हो’-के अमंगलकारी क्रूर इतिहास को दोहराने की ही प्रक्रिया है। अच्छा हो मोदीजी स्वयं हस्तक्षेप करें और लोगों को विश्वास दिलायें कि उनके रहते लोकतंत्र की हत्या असंभव है। स्मरण रहे कि उन्होंने लोगों का व्यवस्था पर बहुत कुछ विश्वास जमाया है।
हमें आशा करनी चाहिए कि लोकतंत्र के लिए इस देश का जनसाधारण पुन: किसी क्रान्ति को नहीं करेगा, उससे पूर्व पीएम मोदी स्वयं ही शंका समाधान देकर लोकतंत्र की रक्षा करेंगे। लोकतंत्र में हर बालिग व्यक्ति को मताधिकार प्राप्त है तो हर पार्टी को अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारने का भी अधिकार है, उसका हनन लोकतंत्र की हत्या है। जिसे यह देश स्वीकार नहीं कर सकता।
मुख्य संपादक, उगता भारत