गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म =एक विस्तृत अध्ययन* पार्ट 4
Dr DK Garg
Note -यह आलेख महात्मा बुद्ध के प्रारम्भिक उपदेशों पर आधारित है। ।और विभिन्न विद्वानों के विचार उपरांत है। ये 9 भाग में है।
इसको पढ़कर वे पाठक विस्मय का अनुभव कर सकते हैं जिन्होंने केवल परवर्ती बौद्ध मतानुयायी लेखकों की रचनाओं पर आधारित बौद्ध मत के विवरण को पढ़ा है ।
कृपया अपने विचार अवश्य बताए।
बौद्ध पंथ का उदय और विस्तार
बौद्ध धर्म केवल बौद्ध को प्रचारित करने के लिए हुआ ?
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुम्बिनी (वर्तमान नेपाल में) में हुआ, उन्हें बोध गया में ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसके बाद सारनाथ में प्रथम उपदेश दिया।
बुद्ध पूरी उम्र भगवा कपड़े पहने रहे बौद्ध अनुयायी आज भी भगवा गमछा डालते है।
बुद्ध धर्म का उदय समझने के लिए आप इस्कॉन का उदहारण ले। इस्कॉन श्रीकृष्ण भक्ति के प्रचार की संस्था है। और इस्कॉन के सदस्य सिर्फ श्रीकृष्ण को ही ईश्वर मानते हैं और वे किसी अन्य हिन्दू देवी देवता की पूजा नहीं करते। वे शिव, दुर्गा, गणेश, काली, हनुमान को नहीं पूजते। इसका अर्थ ये नहीं निकलना चाहिए कि वे बाकी हिन्दू देवी देवताओं के विरोध में हैं। प्राथमिक तौर पर उनके इष्टदेव श्रीकृष्ण ही हैं।
दुनियाँ में इस्कॉन के सैकड़ों मंदिर है और हजारों यूरोपीय ईसाई अब श्रीकृष्ण भक्त, यानी हिन्दू हैं। यही इस्कॉन अगर 200 साल पुराना बना होता तो शायद आज सारे यूरोपीय लोग हिन्दू यानी श्रीकृष्ण भक्त होते जो सिर्फ श्रीकृष्ण को ही मानते किसी दूसरे हिन्दू देवी देवता नहीं और सिर्फ श्रीकृष्ण को मानने वाली आध्यात्मिक विचारधारा को शायद आज कृष्णाइज़्म कहते।
बुद्ध ने कोई बुद्ध धर्म शुरू नहीं किया। बुद्ध, खुद बौद्ध नहीं थे। बुद्ध धर्म की सारी किताबें बुद्ध के निर्वाण के बाद लिखी गईं।
बुद्ध धर्म का प्रचार इसी प्रकार से हुआ कि बुद्ध के अनुयायी अशोक ने केवल बुद्ध को अपना इष्टदेव माना और इसका प्रचार किया परन्तु इसका अर्थ ये नहीं की अशोक बाकी हिन्दू देवी देवताओं के खिलाफ था।जैसे की वर्तमान में इस्कॉन का है की ये सिर्फ अपना प्रचार करते हैं और किसी को खिलाफत नही करते।
अशोक के इस प्रचार के परिणाम स्वरूप कई हिन्दू देशों श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड, कंबोडिया, जापान ,तिब्बत ने बुद्ध को अपना इष्टदेव मान लिया और सिर्फ बुद्ध को मानने की प्रैक्टिस ही बुद्ध धर्म के रूप में अब हमारे सामने है।
इसका एक दूसरा परिणाम भी ये सामने आया की वे बौद्ध तो बने लेकिन अपनी मांसाहार की आदत आदि के साथ और बाकी ईसाई,मुस्लिम आदि भी वहा फल रहे है,जिनका बौद्ध विद्वान किसी तर्क से विरोध नही कर पाते है।
भारत में बौद्ध धर्म:
भारत मे बुद्ध को आज से 60 साल पहले तक महात्मा बुद्ध कहा जाता था क्योंकि हिंदुओं के लिए वे एक संत या महात्मा जैसे थे। आज भी हम उन्हे महात्मा बुद्ध ही कहते हैं।
भारत मे इसीलिए कभी बुद्ध धर्म के नाम जैसी चीज नहीं रही। बुद्ध धर्म भारत मे राजनैतिक आंदोलनों ने शुरू किया जैसे कि अम्बेडकर का आडम्बर भरा दलित आंदोलन।
आजादी के बाद अंबेडकर और उसके बाद देश में दलित राजनीती ने अपना स्थान बनाना सुरु कर दिया,दलित वोट बैंक और मिलने वाली सुविधाओं के कारण एकत्र होने सुरु हो गए और एक वर्ग ने महात्मा बौद्ध को भगवान् बौद्ध बना दिया जिसका ध्येय हिन्दू धर्म का विरोध मुख्य रहा है।
भारत के अंदर तथाकथित बौद्ध, वास्तव में बौद्ध नहीं हैं। इसका सबूत है कि जब-जब बुद्ध का अपमान हुआ तब-तब इन्होंने रत्ती भर भी विरोध भी नहीं किया चाहे मुसलमानों द्वारा लखनऊ में बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ी जाए या बामियान में 2000 साल पुरानी बुद्ध की मूर्ति तोड़ी जाय या इंडियन मुजाहिदीन द्वारा बोध गया में हमला हो।
बौद्ध धर्म की स्थापना
बुद्ध के समय किसी भी प्रकार का कोई पंथ या सम्प्रदाय नहीं था किंतु बुद्ध के निर्वाण के बाद द्वितीय बौद्ध संगति में भिक्षुओं में मतभेद के चलते कई भाग हो गए।
हीनयान, थेरवाद, महायान और वज्रयान बौद्ध धर्म में प्रमुख सम्प्रदाय हैं। मुख्यतः दो ही शाखाएं ही ज्यादा प्रचलित हैं जिन्हें अलग-अलग नामो से अलग-अलग जगहों पर जाना जाता है।
1- हीनयान– ये वो लोग हैं जिनका मानना है कि भगवान बुद्ध के बाद अब कोई और गुरु की आवयश्कता नहीं है ये लोग अब और किसी को नहीं मानते सिर्फ भगवान बुद्ध को।
2- महायान– ये लोग जीवित गुरु की परंपरा में विश्वास करते हैं जैसे तिब्बती लामा परम्परा या जापान की झेन परम्परा इसमे ज्ञान एक गुरु से दूसरे तक स्थानांतरित किया जाता है महायान परम्परा ज्यादातर भारत से बाहर है इसीलिए भारत से बाहर बौद्ध धर्म ज्यादा सजीव है।
मुख्य सिद्धांत
देखा जाए तो बौद्ध धर्म नास्तिकों का धर्म है इनके अनुसार कर्म ही जीवन में सुख और दुख लाता है। सभी कर्म चक्रों से मुक्त हो जाना ही मोक्ष है।
कहते है कि जब बुध को बोध की प्राप्ति हुई उन्होंने सबसे पहला धर्मोपदेश दिया, जिसमें उन्होंने लोगों से मध्यम मार्ग अपनाने के लिए कहा। चार आर्य सत्य अर्थात दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया। अहिंसा पर जोर दिया। यज्ञ, कर्मकांड और पशु-बलि की निंदा की।
सिद्धान्तः– बौद्ध धर्म मूलतः अनीश्वरवादी अनात्मवादी है अर्थात इसमें ईश्वर और आत्मा की सत्ता को स्वीकार नहीं किया गया है, किन्तु इसमें पुनर्जन्म और मोक्ष को मान्यता दी गयी है।
बुद्ध ने सांसारिक दुःखों के सम्बन्ध में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया। ये आर्य सत्य बौद्ध धर्म का मूल आधार हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. दुःखः- संसार में सर्वत्र दुःख है। जीवन दुःखों व कष्टों से भरा है। संसार को दुःख मय देखकर ही बुद्ध ने कहा था- सब्बम् दुःखम्।
2. दुःख समुदायः- दुःख समुदाय अर्थात दुःख उत्पन्न होने के कारण अविद्या तथा तृष्णा है।
3. दुःख निरोधः- अविद्या तथा तृष्णा का नाश करके दुःख का अन्त किया जा सकता है।
4. दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा-अष्टांगिक मार्ग ही दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा हैं।
दस शीलों के पालन
बौद्ध धर्म में निर्वाण प्राप्ति के लिए दस शीलों के पालन सदाचार तथा नैतिक जीवन पर अधिक बल दिया गया।
इन शीलों को शिक्षापाद भी कहा जाता है।
1- अहिंसा 2- सत्य 3- अस्तेय (चोरी न करना) 4- समय से भोजन ग्रहण करना 5- मद्य का सेवन न करना 6- ब्रह्मचर्य का पालन करन 7- अपरिग्रह (धन संचय न करना) 8- आराम दायक शैय्या का त्याग करना 9- व्यभिचार न करना 10- आभूषणों का त्याग करना
गृहस्थ बौद्ध अनुयायियों को केवल प्रथम पाँच शीलों का अनुशीलन आवश्यक था। गृहस्थों के लिए बुद्ध ने जिस धर्म का उपदेश दिया, उसे ‘उपासक धर्म‘ कहा गया।
अष्टांगिक मार्ग
सांसारिक दुःखों से मुक्ति हेतु बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग पर चलने की बात कही है। अष्टांगिक मार्ग के अनुशीलन से मनुष्य की भव तृष्णा नष्ट होने लगती है और वह निर्वाण की ओर अग्रसर हो जाता है। अष्टांगिक मार्ग के साधन हैं-
1. सम्यक दृष्टि – वस्तुओं के वास्तविक रूप का ध्यान करना सम्यक दृष्टि है।
2. सम्यक संकल्प – आशक्ति, द्वारा तथा हिंसा से मुक्त विचार रखना।
3. सम्यक वाक – अप्रिय वचनों का परित्याग।
4. सम्यक कर्मान्त – दान, दया, सत्य, अहिंसा आदि सत्कर्मों का अनुसरण करना।
5. सम्यक आजीव – सदाचार के नियमों के अनुकूल जीवन व्यतीत करना।
6. सम्यक व्यायाम – विवेकपूर्ण प्रयत्न करना।
7. सम्यक स्मृति – सभी प्रकार की मिथ्या धारणाओं का परित्याग करना।
8. सम्यक समाधि – चित्त की एकाग्रता
एक विष्लेषण
1.महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन – काल में स्वयं कुछ नहीं लिखा । उन्होंने उपदेश दिये जिनको शिष्यों ने अपने अनुसार संकलित किया ।
2.बुद्ध के जीवन – काल में उन संकलनों के आधार पर बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार – प्रसार एवं विस्तार होता रहा
3. लेकिन बुद्ध के निर्वाण के पश्चात् उनकी शिक्षाओं , सिद्धान्तों और नियमों को लेकर उनके अनुयायियों में मतभेद और विवाद उभरने लगे । उनको दूर करने के लिए भारत में समय – समय पर चार बौद्ध शासकों के प्रबन्धन में चार संगोष्ठियाँ आयोजित की गईं । बौद्ध मत के प्रामाणिक आधार ग्रन्थ के रूप में पहले ‘ विनय पिटक ‘ और ‘ सुत्तपिटक ‘ के स्वरूप का निर्धारण हुआ । कुछ वर्षों के पश्चात् ‘ अभिधम्म पिटक ‘ का । इन तीनों को ‘ त्रिपिटक ‘ कहा जाता है । जिस प्रकार सनातन जगत् में महाभारत का एक अंश ‘ भगवद् गीता ‘ मान्य एवं प्रतिष्ठित है . वही प्रतिष्ठा ‘ धम्मपद ‘ की है जो ‘ सुत्तपिटक ‘ का एक अंश है । इसमें महात्मा बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है । यह प्रारम्भिक उपदेशों का प्रामाणिक संग्रह माना जाता है । प्रस्तुत लेख में मुख्यतः उसी के आधार पर बुद्ध के मन्तव्यों को प्रदर्शित किया है।
4.महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन में कोई नया मत नहीं चलाया था । उस समय समाज में रूढ़िवादी,पाखंड और वेद , यज्ञ और धर्म के नाम जो विकृतियाँ , कुरीतियाँ , पाखण्ड , अन्धविश्वास , क्रूर और जटिल कर्मकाण्ड एवं जातिवादीय अन्याय पनपे हुए थे उनको मिटाने के लिए उनका सुधार आन्दोलन था ।
5.प्रारम्भ में बौद्ध विचार एक समाजसुधारक के रूप में प्रस्तुत किए गए थे ।
बाद में , उनके अनुयायियों ने उनकी विचारधारा को एक मत का रूप दे दिया और दर्शन के नाम पर एक नया बौद्ध – दर्शन गढ़ दिया।
6. इस बौद्ध दर्शन में अनेकों सिद्धान्त बुद्ध के विरुद्ध या बुद्ध द्वारा अप्रस्तुत भी थे और बौद्धों में परस्पर असहमति वाले थे । उनके कारण बौद्ध मत में ही अनेक सम्प्रदाय – उपसम्प्रदाय विकसित हो गये ।
इन सम्प्रदाय और विभिन्न उपसंप्रदाओ के परस्पर वैमनस्य और प्रतिस्पर्धा के कारण इनका आचरण भी बुद्ध की शिक्षाओं के विपरीत और विकृत हो गया ।
परिणामस्वरूप सम्प्रदायों द्वारा ही बुद्ध के उद्देश्यों को ही नष्ट – भ्रष्ट कर दिया और बौद्ध मत को नास्तिक मत के रूप ‘ में स्थापित कर दिया । जैसे महीधर , उव्वट आदि ने अनर्थ करके वेदों के अभिप्राय को बदल दिया , ऐसे ही बौद्ध विद्वानों ने बुद्ध की शिक्षाओं की मनचाही व्याख्या करके उनके अभिप्राय को या तो बदल दिया अथवा उसको संकुचित कर दिया ।
7.बौद्ध ग्रन्थों में श्लोक या गाथाएँ होती हैं , मन्त्र नहीं । होते । अत : यह कथन वेदमन्त्रों के लिए ही है । मनुस्मृति , महाभारत , उपनिषद् आदि शास्त्रों के अनेक उद्धरण बुद्ध . के प्रवचनों में मिलते हैं जिनका पालि भाषा में रूपान्तरण किया हुआ है । इस प्रकार बुद्ध के अनेक प्रवचन वैदिक शास्त्रों पर आधारित हैं ।
8.उन्होंने अपने उपदेशों में वैदिक धर्मशास्त्रों , उपनिषदों और योगदर्शन के सदाचारों का ही प्रस्तुतीकरण किया है ।
9. बौद्ध धर्म के जिन 10 शीलो का अवलोकन करे तो मनुस्मृति में दिए गए धर्म के 10 लक्षण से मिलते हुऐ है जिनमे बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने अनुचित बदलाव किया है।
10. बौद्ध धर्म में मोक्ष की प्राप्ति के लिए जिस अष्टांगिक मार्ग की बात कही जाती है वह भीं पतंजलि के अष्टांग योग का विकृत रूप है,वास्त्विक अष्टांगिक मार्ग को समझने के लिए अष्टांग योग को जानना और उस पर अमल करना जरूरी है।