साबरमती के लाल तूने कर दिया कमाल।
दिला दी आजादी तूने बिना खड़ग और ढाल।।
परंतु सच्चाई कुछ और कहती है कि मांगे से मिलते नहीं तख्तो ताज और राज। इतिहास इस बात का साक्षी है कि मांगने पर तो न तो रावण ने सीता को वापस किया और ना श्री कृष्ण जैसे महान नीतिज्ञ के कहने से दुर्योधन ने पांडवों को 5 गांव दिए थे। फिर क्या अंग्रेज इतने भोले या मूर्ख थे कि गांधी जी के कहने मात्र से अंग्रेज भारत जैसी सोने की खान को स्वत: छोड़ कर चले गए ?
सन 1965 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली भारत आए थे। जस्टिस पी0 वी0 चक्रवर्ती तत्कालीन राज्यपाल पश्चिमी बंगाल उनसे मिले थे। उन्होंने एटली से पूछा था कि क्या बात थी कि अंग्रेज इतनी जल्दबाजी में भारत को छोड़कर चले गए ?
एटली अपने जमाने के अत्यंत ही स्पष्टवादी नेता थे। उन्होंने कहा कि यह सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद सेना के कारण हुआ था। राज्यपाल ने यह भी पूछा कि आपके इस निर्णय को प्रमाणित करने में महात्मा गांधी के अहिंसक संघर्ष की क्या भूमिका थी? एटली ने व्यंगात्मक मुस्कुराहट के साथ एक ही शब्द कहा”न्यूनतम। सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई अभय बोस 1976 में लॉर्ड माउंटबेटन से मिले। उन्होंने भी सिर्फ एक सवाल पूछा! आप ने भारत को क्यों छोड़ा? उन्होंने कारण बताते हुए कहा :-
नंबर 1, सुभाष चंद्र बोस
नंबर दो ,आजाद हिंद सेना
नंबर 3, आजाद हिंद सेना के तीन अफसरों को फांसी की सजा। परंतु तत्कालीन सरकार ने इस सच्चाई को बड़ी ही घिनौनी चतुराई के साथ अब तक छुपाए रखा।
आज हम स्वतंत्र भारत का 74 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ था। जिसके बनाने में 2 वर्ष 11 माह और 16 दिन का समय तथा उस समय का 64 लाख रुपया व्यय हुआ था। आजादी की जंग लड़ने वालों में से जंग लड़ते समय किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि स्वतंत्रता के बाद हम राज किस तरह से चलाएंगे? स्वतंत्र भारत के समक्ष अनेक प्रश्न खड़े होंगे, उन प्रश्नों का समाधान क्या होगा? उनके पास भारत के नव निर्माण का कोई नक्शा या कार्यक्रम नहीं था। परंतु आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद ने स्वतंत्रता प्राप्त होने से पूर्व ही भारत की राज्य व्यवस्था क्या होगी ? यह सभी अपने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में लिख दिया था। जिसमें दिशा और दशा को पूर्ण रूप से बताया गया।
परंतु खेद है कि भारत के संविधान को बनाते समय संविधान निर्माताओं ने इस ओर किंचित मात्र भी ध्यान नहीं दिया। इसलिए भारत का संविधान भारत की मूल भावना से हटकर मात्र विदेशी संविधानों की नकल मात्र बनकर रह गया। इसमें भारत की आत्मा का अभाव है। इसका बहुत बड़ा भाग तो 1935 के भारत अधिनियम का है। जिसे अंग्रेजों ने अपनी व्यवस्था थोपने के लिए बनाया था, जिसका उस समय कांग्रेस घोर विरोध कर रही थी।
भारत में जर्मन देश के एक महान विद्वान थियोडर रो नाम के विद्वान आए थे। उन्होंने “लोकमान्य तिलक की विरासत” नाम से एक पुस्तक लिखी । उसमें भी लिखते हैं कि भारत के नेताओं को भारत के नव निर्माण के लिए एक अवसर मिला, परंतु उन्होंने अपनी नासमझी में अपने संविधान की रचना करते समय उस पर ध्यान ही नहीं दिया। इस देश के महत्वपूर्ण विषय ईश्वर, धर्म, गुरुकुल यह शिक्षा प्रणाली जैसे विषयों को छोड़कर संविधान बनाया। इस तरह भारत अपनी प्रगति का रास्ता ही भूल गया।
देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद जी को संविधान सभा का निर्वाचन स्थाई अध्यक्ष बनाया गया। संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए 15 समितियां बनाई गई। इन समितियों के दायित्व थे कि वे 1935 के भारत अधिनियम ब्रिटिश अमेरिकी आईरिस, ऑस्ट्रेलियन, कनाडाई, जापानी तथा दक्षिण अफ्रीकी देशीय संविधान ओ उनके कानूनों के स्रोतों की समीक्षा करें।
समितियों के संकलन और संपादन का दायित्व जिस समिति को दिया गया वह बाबा भीमराव अंबेडकर साहब की अध्यक्षता वाली संपादन समिति थी। समिति के सहयोगी सदस्य थे सर्व श्री एन गोपाल स्वामी आयंगर, के एम मुंशी, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, मुंशी सईदुल्लाह, सर बीएल मित्र और डॉक्टर पी खेतानी बाद में श्री खेतान के स्थान पर टीटी कृष्णमाचारी जी मनोनीत किया गया। 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम रूप पर डॉ राजेंद्र जी ने अपने हस्ताक्षर कर पारित कर घोषित किया। जिससे 26 जनवरी 1950 से भारत पर लागू किया गया।
संविधान की कुछ आधारभूत त्रुटियां इस प्रकार हैं :–
नंबर 1 – जिन कारणों से भारत हजारों वर्ष परतंत्र रहा। उन पर स्वतंत्र भारत में चिंतन नहीं किया गया, अपितु सत्ता में जमाए रखने के लिए उन्हें कमियों को संप्रदायवाद एवं जातिवाद के नाम पर अंधविश्वास को शस्त्र बनाकर बढ़ावा दिया गया है।
नंबर दो – कांग्रेस ने विधान निर्मात्री परिषद में योग्य व्यक्तियों का अभाव देखकर विभिन्न गैर कांग्रेसी विधिवेत्ताओं को भी लिया गया। ईसाई ,मुसलमान पारसी और सिख सबके प्रतिनिधि लिए. पर वे सब प्राय अंग्रेजी माध्यम से पश्चिमी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति थे। आर्य समाज जैसी विशुद्ध राष्ट्रवादी संस्थानों का कोई व्यक्ति नहीं लिया गया।
नंबर 3 – भारत में मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए जिस संघ व्यवस्था को 1935 में अंग्रेजों ने स्थापित किया । उन्हें प्रलोभन देने के लिए उसे विभाजन के बाद भी रखा रहने दिया।
नंबर 4 – अल्पसंख्यकों के प्रथम नागरिक कानून विभाजित भारत में भी जैसे के तैसे रहने दिए गए हैं। इनका उद्देश्य अल्पसंख्यक वोटों का एकाधिपत्य बनाए रखने के लिए था। परंतु वास्तविक रूप में इनके संरक्षण में अल्प मतों को राष्ट्र के अंदर नवीन राष्ट्र उत्पन्न करने के लिए रहने दिया।
नंबर 5 – भारत के संविधान में भारत का मौलिक चिंतन कहीं परिलक्षित नहीं होता। वह राष्ट्र संघ के चार्टर तथा अन्य यूरोपीय राज्यों के विधानों की नकल मात्र है। उसमें ईश्वर धर्म परिवार वर्णाश्रम गुरुकुल शिक्षा प्रणाली जैसी किसी भी संस्था का जिक्र तक नहीं है।
नंबर 6 : अंग्रेजी भाषा में होने से क्लिष्ट तथा दो अर्थ रखने वाले कानूनी शब्दों से भरा हुआ है। परिणाम स्वरूप भीषण मुकदमे बाजी का कारण सिद्ध हुआ है। तथा हिंदी स्वदेशी भाषा का अपमान हुआ है।
नंबर 7 : इसमें योग्य और त्यागी तपस्वी व्यक्तियों के अधिकारों की सतत उपेक्षा करके वयस्क मताधिकार एवं प्रत्यक्ष चुनाव का प्रावधान करके अल्प बुद्धि लोगों का मत लेकर तंत्र ठोक दिया गया है।
नंबर 8 :- इसमें वर्ग सहयोग न लाकर वर्ग विरोध का ग्राहीय किया गया है।
नंबर 9 : बिना मुकदमा चलाए नागरिकों को जेल में डालने का प्रावधान है।
नंबर 10 :- भारत के नागरिकों के अतिरिक्त भी अतिरिक्त व्यक्तियों को चाहे वह किसी अन्य देश के नागरिक हो, धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार दे दिया गया है।
नंबर 11 : एक राष्ट्रीय भाषा के प्रचलन के प्रावधान बहुत ही लचर हैं।
नंबर 12 : एक धारा का दूसरी धारा विरोध करती नजर आती है।
नंबर 13 : संविधान में देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित कर दिया गया। परंतु अल्पसंख्यक की परिभाषा न करते हुए उन्हें विशेष अधिकार दे दिए गए। जिसकी आड़ में वर्ग विशेष जनसंख्या बढ़ोतरी करने में सफल हुए हैं।
विशेष ___उपरोक्त कारणों को देखते हुए संविधान की पुनः समीक्षा होनी आवश्यक है।
आचार्य मोहन देव शास्त्री