बिखरे मोती-भाग 186
गद्दारी महामारी एक,
किन्तु रूप अनेक।
संत गृहस्थी राजा भी,
जमीर रहे हैं बेक ।। 1116 ।।
व्याख्या :-
गद्दारी से अभिप्राय विश्वासघात से है अर्थात विश्वास में धोखा करने से है। आज समाज अथवा राष्ट्र में, यहां तक कि परिजनों, मित्र, बंधु बांधवों में सबसे अधिक अवमूल्यन हुआ है तो वह विश्वास का हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से आशंकित है क्योंकि सुरसा के मुंह की तरह भ्रष्टाचार, छल, झूठ, कपट, चालाकी, बेईमानी, धोखाधड़ी, चोरी, डकैती, राहजनी, हिंसा, क्रूरता, काला धन का संग्रह, रिश्वतखोरी, चोर बजारी, बलात्कार एवं वेश्यावृति इत्यादि बढ़ता ही जा रहा है। वफादारी का स्थान गद्दारी ने ले लिया है, जो समाज में संक्रामक रोग की तरह फैलता जा रहा है। सच पूछो, तो बहुत भयावह स्थिति है क्योंकि समाज में विश्वास का संकट उत्पन्न हो गया है-छोटे से लेकर बड़े तक सभी अपने हमाम में सभी नंगे खड़े हैं। संतरी से मंत्री तक मौका मिलते ही गद्दारी करने से चूकते नहीं हैं। देश भगवान भरोसे है, किससे फरियाद करें, जायें तो जायें कहां? राजा से अभिप्राय राजनेताओं से है जो दिखाने को तो पद और गोपनीयता की शपथ लेते हैं किंतु संविधान की कसम खाकर सबसे पहले संविधान का ही खून करते हैं, उसकी धज्जियां उड़ाते हैं और घोटाले पर घोटाले करते जा रहे हैं, जिनकी राशि हजारों करोड़ में नहीं अपितु लाखों करोड़ों में होती है जैसा कि कोल घोटाले में हुआ। ऐसे एक नहीं अनेक घोटाले हैं। नौकरशाही क्चह्वह्म्द्गड्डष्ह्म्ड्डष्4 को देखो, तो कमीशन खोरी व रिश्वतखोरी तथा झूठे बिल बनाने का बाजार गर्म है, व्यापारी को देखो, तो खाद्य पदार्थों में मिलावट तथा जीवन रक्षक दवाईयों में मिलावट घी, दूध व पूजा की सामग्री में भी मिलावट करते हैं। ये भगवान से भी नहीं डरते हैं। किसान को देखिये, शाक सब्जी, फल इत्यादि में जहरीले इंजैक्शन लगाकर उन्हें जहरीला बना रहे हैं। सिंथैटिक दूध से नकली मावा बनाकर हलवाई जहरीली मिठाई बना कर बेच रहे हैं।
सरकारी भवन, पुल, सडक़ों को देखिये तो ठेकेदार उच्चाधिकारियों की जेब गरम करके घटिया दर्जे का निर्माण कर रहा है। बेशक किसी की जान जाये तो जाये, उन्हें क्या? हद तो तब हो गयी जब न्याय के मंदिर कहलाने वाले कोर्ट कचहरी में भी न्याय रिश्वतखोरों के हाथ नीलाम होता है। जज-न्यायमूर्ति कहलाते हैं, किंतु वे भी प्राय: रिश्वत लेते पकड़े जाते हैं, कई वकील ऐसे हैं जो वकालत के नाम पर रिश्वत देकर वकालत करते हैं। यह जलालत नहीं तो और क्या है? शिक्षा के व्यवसाय को देखिये, अध्यापक कक्षाकक्ष में कम ट्यूशन कक्ष में ज्यादा अच्छा पढ़ाते हैं। संत महात्मा तो समाज और राष्ट्र को दिशा देते हैं। इनका जीवन राष्ट्र और समाज के लिए समर्पित होता है। ये आदर्श की पराकाष्ठा होते हैं, किंतु इस चोले की आड़े में जो कुकृत्य सामने आये हैं, उन्हें देखकर हृदय सिहर जाता है, रोंगटे खड़े हो जाते हैं। डाक्टरों को देखिये, इन्हें कभी दूसरा भगवान कहते थे किंतु आज लोग इन्हें जल्लाद कहने लगे हैं, क्योंकि बेहोश मरीज के अंग निकाल कर बेचने के केस सामने आये हैं। पुलिस को देखिये, चोरों से बदमाशों से मिलकर काली कमाई करती है, वे इनके कमाऊ पूत होते हैं।