गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म =एक विस्तृत अध्ययन* भाग 1
Dr DK Garg
Note -यह आलेख महात्मा बुद्ध के प्रारम्भिक उपदेशों पर आधारित है। ।और विभिन्न विद्वानों के विचार उपरांत है। ये 6 भाग में है।
इसको पढ़कर वे पाठक विस्मय का अनुभव कर सकते हैं जिन्होंने केवल परवर्ती बौद्ध मतानुयायी लेखकों की रचनाओं पर आधारित बौद्ध मत के विवरण को पढ़ा है ।
कृपया अपने विचार बताए।
क्या बुद्ध ने कभी ये कहा की वह भगवान् है ?
बुद्ध ने कभी ये नहीं कहा कि वे भगवान है, और ना ही कभी सीधे सीधे ये कहा कि भगवान नहीं है। वे नहीं चाहते थे कि इस सवाल के चक्कर में पड़ा जाए। बुद्ध का दर्शन आस्तिकों और नास्तिकों, दोनों के लिए है। लेकिन उनके दर्शन में से ज्ञान के मोती लेने के बजाए स्वयं को आस्तिक कहने वालो ने उन्हें खुद भगवान बना दिया गया और बाकि महापुरुषों और अन्य ईश्वर के अस्तित्व को भुलाने पर तुले हैं।
यह ज़िद केवल आज नहीं, यह बुद्ध के वक़्त पर भी थी।
मालुंकयपुत्त भिक्षु बुद्ध के पास पहुँचे और कहा कि जो चौदह बिना जवाब के प्रश्न हैं, उनका उत्तर दें, नहीं तो मैं आपकी सीख को ही छोड़ दूँगा। ये चौदह प्रश्न संसार के अनादि होने या ना होने (Eternal or not), अनंत होने या ना होने (infinite or not), इंसान के शरीर और आत्मा के अलग होने ना होने, और मृत्यु के पश्चात जीवन की आशंका से संबंधित हैं। बुद्ध ने इसके जवाब में एक उदाहरण दिया कि –
किसी आदमी को एक ज़हरीला तीर लगा। उसके परिजन उसे वैद्य के पास लेकर गए ताकि तीर निकाला जाए और उसके दर्द को ख़त्म किया जाए। लेकिन वह इंसान इस बात पर अड़ गया कि मैं तीर तब नहीं निकलवाऊँगा जब तक मुझे यह ना बताया जाए कि तीर किसने चलाया? क्या वह ब्राह्मण था, क्षत्रिय था या व्यापारी? उसका रंग कैसा था? उसका कद कितना था – लंबा था या छोटा? वह तीर सीधा था या मुड़ा हुआ था? जिस धनुष से तीर चला, वह धनुष किस चीज़ से बना था? उसकी प्रत्यंचा कौनसे पदार्थ से बनी थी? और इस तरह वह आदमी तीर के ज़ख्म और दर्द के साथ ही मर जाता है। और इन सवालों का जवाब उस वक़्त भी उसके पास नहीं होता।
सारांश=यदि बुद्ध के साथ हुए वार्तालाप पर ध्यान दे तो उन्होंने बहुत से प्रश्नों के उत्तर टाल दीए जिनको वो अनावश्यक समझते थे। कालांतर में उनके शिष्यों ने गलत अर्थ अपना लिया जैसा की आज भी है की देश में हजारों की संख्या में धर्म गुरु है और उनके शिष्य उन्हें भगवान मानकर उनकी तस्वीर पर माला चढ़ाते है,पूजा करते है,गले में ताबीज डालते है, क्योंकि वे धर्म गुरु इस विषय पर शांत है।इसके दोनो मतलब निकाल सकते है। बुद्ध को संशयवादी या अज्ञेयवादी (agnostic) कह सकते हैं।गौतम बुद्ध चाहते हैं कि आप इन प्रश्नों को छोड़कर पहले अपना तीर निकालें, अपने दुःख का अंत करें।
एक और बात , बुद्ध समाज सुधार के लिए महात्मा बने और अपनी योग्यता से ये कार्य किया,राज पाठ भी छोड़ा ,लेकिन इसका गलत अर्थ नही निकालना चाहिए की वे भगवान थे,भगवान होते तो बिना जंगलों मे गए और बिना राज पाठ छोड़े स्वत ये कार्य कर सकते थे, जिस ईश्वर ने अग्नि ,जल ,वायु ,सूर्य ,समुंद्र ,प्रथ्वी ,जीव जंतु आदि बनाए है उसके लिए ये सब संभव है,जन्म लेने की आवश्यकता नहीं।