मुरली मनोहर जोशी ब्राम्हण व जातिवादी हैं* *इन्हें जातिवाद का अधिकार है पर कमजोर वर्ग को नहीं*
जातिवाद हिन्दुत्व-सनातन संहार की कील है
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आचार्य श्री विष्णुगुप्त
आज मुझे पहली बार मालूम हुआ कि महान विज्ञान शास्त्री और राजनीतिज्ञ तथा भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्टीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी जी ब्राम्हण हैं और उनकी पहचान एक जातिवादी नेता की है। इसके पूर्व मैं मुराली मनोहर जोशी को सिर्फ और सिर्फ एक विज्ञान के महान जानकार और हिन्दू धर्म के महान संरक्षक के तौर पर जानता था। मैं यह नहीं जानता था कि सही में मुरली मनोहर जोशी के अंदर भी जातिवाद के किटाणु हैं और उनके आसपास जातिवादी लोगों का जमावड़ा है, वे जातिवादी लोगों से घिरे रहते हैं, उनके आसपास समर्पित कार्यकर्ता कम और जातिवादी लोग ज्यादा होते हैं। कहीं न कहीं धूंए का अस्तित्व जरूर होता है फिर आग धधकती है। अगर जोशी के अंदर जातिवाद के किटाणु होंगे तभी तो उनके चेले-समर्थक उनके लिए ब्राम्हण शब्द का प्रयोग करते हैं और ब्राम्हण शब्द के प्रयोग से जोशी खुद मुस्कुराते हैं, यानी कि अप्रत्यक्ष ही नहीं बल्कि प्रत्यक्ष समर्थन हैं, हां मुझे जातिवाद पंसद है, जैसी स्वीकृति जोशी की मुस्कान में भी होती है।
अभी-अभी आंखों देखा हाल बताता हूं। स्थान है दिल्ली के काॅंसट्यिूशन क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम का। कार्यक्रम का आयोजन भाजपा के वरिष्ठ नेता कहे जाने वाले और नगर निगम के पूर्व पार्षद जगदीश ममगाई ने किया था। जगदीश ममगाई के पुस्तक का विमोचन था। मुख्य अतिथि मुरली मनोहर जोशी थे। मंच पर सभी एक ही जाति के लोग बैठे थे जो जोशी और ममगाई की जाति यानी ब्राम्हण जाति से संबंध रखते थे। श्रोता में अन्य लोगों की उपस्थिति जरूर थी। पर अधिकतर ब्राम्हणवाद से ग्रसित और प्रेरित जरूर थे।
मेरे जैसे लोग तब आश्चर्यचकित हो गये जब मुरली मनोहर जोशी का परिचय कराया जाना लगा। कार्यक्रम के आयोजक और भाजपा के बड़े नेता जगदीश ममगाई ने परिचय देतेेेे हुए कहा कि मुरली मनोहर जोशी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये ब्राम्हण हैं। ब्राम्हण शब्द सुनते ही कार्यक्रम मंें उपस्थित ब्राम्हणों की मुस्कान बढ गयी, ब्राम्हण शब्द का जादू ऐसा चला कि लोग तालियां बजाने लगे, कहा जाने लगा कि अपने-अपने सीटों से उठकर जोशी जी सम्मान में जोरदार तालियां बजायें। ब्राम्हणवाद से प्रेरित लोग जोरदार तालियां बजा रहे थे। कार्यक्रम में उपस्थित अन्य लोग भी तालियां बजाने और ब्राहम्णवाद का गुनगान करने के लिए विवश थे। हिन्दुत्व के लिए काम करने वाले हमारे जैसे लोगों के लिए ऐसी स्थिति एक ब्रजपात की तरह थी।
जोशी की जातिवाद पर स्वीकृति कैसे थी? यह भी जान लीजिये। जैसे ही जगदीश ममगाई ने उन्हें ब्राम्हण शब्द से विभूषित किया वैसे ही जोशी के मुंह पर खुशी और गर्व की अनुभूति हुई थी, मुस्कान खिल उठी। जब तक किसी की शख्सियत में जातिवाद नहीं होगा तब तक जाति की उपाधि से विभूषित किये जाने के बाद मुस्कान नहीं आयेगी और न ही वह व्यक्ति गर्व की अनुभूति करेगा, न ही अपने चेहरे में वीरता का भाव रखेगा।
अगर जोशी जातिवादी नहीं होते तो फिर उनकी प्रतिक्रिया क्या होती? उनकी तुरंत प्रतिक्रिया होती कि मैं जातिवादी नहीं हूं, सनातनी हूं और हिन्दू हूं, इस प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का संरक्षक हूं। भाजपा और संघ यह कभी नहीं कहा कि मैं ब्राम्हण या फिर किसी अन्य जाति की बात करता हूं और जाति अनिवार्य है। मुरली मनोहर जोशी खुद भी ब्राम्हण होने के कारण नहीं बल्कि हिन्दू और सनातनी समझे जाने के कारण भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचे थे। पर अब उनका यह रूप वैसे लोगों के लिए अभिशाप जैसा है जो उन्हें जातिवादी के तौर पर नहीं बल्कि एक सनातनी और हिन्दुत्व के संरक्षक के तौर पर समझते थे, वंदन करते थे।
जगदीश ममगाई जैसे लोग मुरली मनोहर जोशी जैसे लोगों के प्रिय जातिवाद की ही कसौटी पर बनते हैं। जगदीश ममगाई कभी दिल्ली भाजपा के बड़े नेताओं में शामिल थे। भाजपा ने उन्हें आवश्यकता और कद से ज्यादा सम्मान दिया और पुरस्कार दिया। पार्षद भी बनाया, कई सरकारी कमिटियों की सदस्यता भी दिलायी। पार्षद के रूप में औसत से कमजोर प्रदर्शन के कारण नापंसद बन गये। फिर जगदीश ममगाई बगावती बन गये। भाजपा से अलग हो गये। जब कोई करिशमा नहीं कर सके तो फिर भाजपा के नजदीक आ गये। फिर इनकी जातिवादी और हिन्दुत्व विरोधी भावनाएं हमेशा झलकती है, प्रदर्शित होती है।
जब मुझे जोशी के जातिवादी चरित्र के बारे में खबरें मिलती थी तो मैं विश्वास ही नहीं करता था। जब जोशी भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष थे तब एक वरिष्ठ और चरित्रवान प्रचारक की ब्राम्हणवाद की कसौटी पर बलि चढायी थी। हरियाणा में भाजपा के एक संगठन महामंत्री हुआ करते थे। उस संगठन महामंत्री के खिलाफ ब्राम्हणों का आरोप था कि वह ब्राम्हणों की उपेक्षा करते हैं। हरियाणा भाजपा के नेता रामबिलास शर्मा ( बदला हुआ नाम ) की शिकायत पर उस संगठन मंत्री के पेशी उस समय के राष्टीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के पास होती है। मुरली मनोहर जोशी ने उस संगठन मंत्री को कुते की तरह बेइज्जती की थी और कहा था कि तुम ब्राम्हणों के विरोधी हो, हरियाणा में ब्राम्हणों को तुम आगे बढने नहीं दे रहे हो, तुम्हें संगठन मंत्री रहना है या नहीं। जबकि वह संगठन महा मंत्री हरियाणा में जान पर खेल कर संगठन मजबूत करने का काम किया था। संघ का प्रचारक ऐसी जातिवादी स्थिति का कभी सामना नहीं किया था। संघ में उसकी शिक्षा सनातन संस्कृति की हुई थी। वह संघ का प्रचारक अवसादग्रसित हो गया। वह भाजपा छोड़कर संघ में वापस आ गया। वह प्रचारक आज गुमनामी के जीवन व्यतित कर रहा है। जोशी के संसदीय क्षेत्र के कमजोर वर्ग के लोग उनसे मिल नहीं सकते थे। आखिर क्यों? उपर्युक्त मानिकसता ही खलनायक होती थी।
जोशी के घर में बातचीत की एक खबर उड़ी थी। जोशी के घर में जोशी के सामने ब्राम्हणों की टोली ने यह रोया रोया था कि ब्राम्हणों के इतने दिन गिर गये कि अब उन्हें सुबह-सुबह एक तेली यानी कि नरेन्द्र मोदी की तस्वीर टीवी पर देखने को मिलेगी। नरेन्द्र मोदी की जाति तेली है। सुबह-सुबह या फिर किसी यात्रा पर जाने के समय तेली जाति के व्यक्ति का चेहरा देखना अशुभ माना जाता है, ऐसी अफवाह सदियों से फैली हुई है।
इतिहास जो बनाते हैं वे जातिवाद और अन्य विसंगतियों और व्यक्तिवाद-परिवारवाद से भी अलग-दूर रहते हैं। एक बार नरेन्द्र मोदी के पास तेली जाति के लोग गये थे और तेली सम्मेलन में मुख्य अतिथि बनने का आमंत्रण दिया था। आमंत्रण स्वीकार करने के लिए तीन-तीन बार तेली जाति के लोग मोदी से मिले थे। मोदी हर बार तेली जाति के लोगों से कहा था कि मैं किसी जाति का नहीं बल्कि हिन्दू का नेता हूं , हर बार मेरा यही उत्तर होगा। मैं कदापि आपकी जाति सम्मेलन का हिस्सा नहीं बनूंगा। अगर मोदी भी जोशी की तरह जातिवादी होते और सिर्फ अपनी जाति की बात करते तो फिर इस महान देश और संस्कृति के प्रेरक पुरूष कभी नहीं बनते।
हिन्दू धर्म की विंडबना भी यही है कि हिन्दू धर्म की बात करने वाली बडी हस्तियां ही जातिवादी निकलती हैं। जोशी की ही बात नहीं है बल्कि शंकराचार्य भी अपनी ब्राम्हण जाति की बात करते हैं। हमनें कई शंकराचार्यो को ब्राम्हण जाति सम्मेलन करते हुए देखा है, सुना है और साक्षात बातचीत में ब्राम्हणवाद के उनके चरित्र से परिचित हुआ है। यही कारण है कि जब शंकराचार्य बोलते हैं तो कुता तक नहीं सुनता है।
हम सिर्फ कमजोर वर्ग के लोगों के ही जातिवाद पर टिप्पणियां करते हैं, आलोचना करते हैं। लालू, अखिलेश, मायावती को जातिवाद की कसौटी पर हम हिंसक और अपमानजनक टिप्पणियां जरूर करते हैं। पर जब शंकराचार्यो और मुरली मनोहर जोशी जैसे लोग सरेआम जातिवाद करते हैं तब हम चुप रहते हैं और यह मान लेते हैं कि ये बड़े लोग हैं, बडी जाति के हैं, इसलिए इन्हें जातिवाद का अधिकार है।
जातिवाद ही हिन्दुत्व के विनाश का कारण है। हम जाति को सिर्फ शादी-विवाह तक सीमित रखें तो अच्छा रहेगा। हमें ब्राम्हण से नहीं बल्कि ब्राम्हणवाद के घिनौने चेहरे से नफरत है। मैं एक सनातन का संघर्षी शख्सियत हूं, इसीलिए मुरली मनोहर जोशी जैसी शख्सियत से सरेआम जातिवाद के खेल खेलने से और जगदीश ममगाई जैसे जातिवादी लोगों से परहेज रखने की अपेक्षा करता हूं।
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आचार्य श्री विष्णुगुप्त
नई दिल्ली
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