आचार्य कौटिल्य (चाणक्य) की गोचर भूमि , खुले छूटे हुए पशुओं को लेकर व्यवस्था* _____________________

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आर्य सागर खारी🖋️

आज उत्तर प्रदेश सहित आसपास के राज्यों में खुला छुटे हुए पशु एक बड़ी समस्या बनकर उभरे हैं खेत खलियान से लेकर राजमार्गों तक स्वच्छंद घूमते पशुओं के समूह आपको दिख जाएंगे| गोवंश की बदहाली इसमें किसी से छुपी नहीं है गौमाता राजमार्गों पर चोटिल हो रही है तो कहीं ट्रेन की पटरी पर कट रही है| लघु मझोले से लेकर बड़े किसान नुकसान उठा रहे हैं खुले छूटे हुए पशु खड़ी फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं| अन्य समस्याओं की तरह इस समस्या के लिए भी हम मनुष्य ही जिम्मेदार है| सबसे बढ़कर जिम्मेदार हैं सरकारें.. जो चारागाह का संरक्षण ,उनका रखरखाव नहीं कर सकी.. कहीं चारागाह अतिक्रमण की शिकार है बिल्डर परियोजनाएं स्थापित कर दी गई तो कहीं उन पर उद्योग लगा दिए गए सरकारों को ढूंढने से भी समाधान नहीं दिखाई दे रहा है |

पशु आज भी है और कल भी थे कल से मतलब हजारों वर्ष पहले वैदिक भारत में… पशुधन की संख्या भी तब अधिक थी लेकिन समस्याएं नहीं थी| पशु तब भी समूह में खुले विचरण करते थे लेकिन किसानों राहगीरों को कोई समस्या नहीं होती थी..| इस सबके पीछे आचार्य चाणक्य की पशुओं को लेकर उत्तम व्यवस्था थी.. अर्थशास्त्र के दूसरे अध्याय में अध्यक्ष प्रचार प्रकरण में उन्होंने कृषि भूमि को अनेक भागों में विभाजित किया.. जिस भूमि में कृषि ना हो सके वहां पशुओं के लिए चारागाह आदि ग्राम स्तर पर बनवाई जाती थी… ऐसी भूमि को भूमिछीद्र कहा जाता था| ऐसी भूमि पर बनाई गई चारागाह की देखभाल अटवीपाल नामक राज् कर्मचारी करता था ग्राम स्तर पर| इसी के साथ ही गांव से 400 हाथ की दूरी पर हाथ माप की इकाई थी( 1 हाथ =18 इंच) पशुओं के लिए एक बड़ा बाड़ा बनाया जाता था जहां गांव के समस्त पशु बैठ सकें खंबे लगाकर इसे कवर किया जाता था|

जो बड़ी पशु ऊंट भैंस आदि चारागाह से चरकर घर जाते थे उनके मालिकों से एक चौथाई पण प्रति पशु के बदले मासिक कर लिया जाता था.. ग्राम देवता के नाम पर छुटे हुए हुए सांडो, 10 दिन की ब्याई हुई गाय गायों के बीच में रहने वाले बिजारो पर कोई कर नहीं लिया जाता था| बाकी अन्य गायों के लिए 1/ 8 पण लिया जाता था| छोटे पशु भेड़ बकरी के लिए 1/ 16 पण लिया जाता था|

पशुपालक की लापरवाही से उसका जानवर किसी खेत में खड़े अन्न को खा जाता तो उसके नुकसान की गणना करके उससे दुगना दाम फसल के मालिक को दिलाया जाता था| यदि कोई खेत के मालिक से छुपा कर अपने पशुओं को उसके खेत में चराता तो उसे तत्काल 12 पण दंड दिया जाता था| चरागाह प्रबंधन पर लापरवाही बरतने वाले राज कर्मचारी पर भी उतना ही दंड लगता था|

खेत में घुसे हुए पशु पर कोई भी क्रूरता नहीं बरत सकता था पशु को केवल रस्सी से ही हटाया जाना जरूरी था.. क्रूरता के मामले में पशुपालक को छोड़कर खेत के स्वामी पर ही दंड लगता था|

यह व्यवस्था इतनी सुसज्जित सुव्यवस्थित थी कोई इसका चाह कर भी उलघनं नहीं कर सकता था| भारत में यह व्यवस्था लगभग 18 वी शताब्दी तक रही कालांतर में अंग्रेजों ने इसे तहस-नहस कर दिया| राजस्व के अजीबोगरीब कानून लाए वन भूमि गोचर चारागाह भूमि को संरक्षित घोषित कर दिया| ऐसा केवल भारत में ही किया अपने देशों में इसी व्यवस्था को अर्थात आचार्य चाणक्य की व्यवस्था को लागू किया आज यूरोप के देशों व संयुक्त राज्य अमेरिका में प्राचीन भारत की यही व्यवस्था है वहां बड़े-बड़े फार्म के मालिकों से सरकार टैक्स लेती हैं उन्हें चारागाह बना कर देती हैं पशुपालकों के पशु हाईवे पर आते हैं तो उन पर जुर्माना लगाया जाता है| हमारी राज्य सरकार यदि आचार्य चाणक्य की व्यवस्था को फुलप्रूफ प्लान बनाकर लागू करें तो इसमें कम खर्च में अधिक सफलता मिलेगी गायों के लिए पक्के आश्रय स्थल बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी प्रशासनिक अधिकारी गौशाला निर्माण में भी अनियमितता बरतते हैं बेईमान भ्रष्टाचार करते हैं कामचलाऊ इन आश्रय स्थलों को शासकीय वधस्थल कहना ही उचित रहेगा पशुओं की बदहाली उपेक्षा की खबरें आए दिन इनसे आती रहती है |

गायों के लिए सबसे सुरक्षित आश्रय चारागाह ही है गायों के लिए गो अभ्यारण बनने चाहिए | ऐसी चारागाह या अभ्यारण में तालाब खुदाये जाएं जिससे वर्षा जल का भी संरक्षण हो ,भूजल भी रिचार्ज हो-|

आर्य सागर खारी ✍✍✍

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