प्राचीन भारत में राज व्यवस्था से किसानों के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए गांवों को मिलता था ,अनुग्रह व परिहार धन*
आर्य सागर खारी 🖋️
आचार्य कौटिल्य ने अर्थशास्त्र ग्रंथ के दूसरे अधिकरण अध्यक्ष प्रचार में…. भारतवर्ष के अन्नदाता किसान के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए लिए ग्राम स्तर पर दो व्यवस्थाएं स्थापित की थी आज से हजारों वर्ष पहले|
आचार्य चाणक्य की मान्यता यह थी राजा (प्रधानमंत्री) किसानों के कुशल क्षेम उनकी फसल की उपज के अलावा उनके स्वास्थ्य के लिए परिमित धन देता रहे स्वस्थ मजबूत किसान ही राजकोष को बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं अर्थात अर्थव्यवस्था की मजबूती का आधार बनता है स्वस्थ किसान ही स्वस्थ अर्थव्यवस्था का परिचायक है | हर गांव में अखाड़े गदका खेलकूद आदि राजा महाराजाओं द्वारा स्थापित कराए जाते थे इनके लिए धन जारी होता था जिसे अनुग्रह धन बोला जाता था… वहां विभिन्न व्यायाम खेल प्रतियोगिताएं दैनिक स्तर पर आयोजित होती थी.. आज तो उस श्रेष्ठ व्यवस्था की झलकियां भारत में कहीं दिखाई नहीं देती केवल ब्लॉक स्तर पर खानापूर्ति के लिए खेल प्रतियोगिताएं आयोजित होती है इस पर भी भ्रष्ट गबन करने वाली खेल संस्थाएं फेडरेशन| अब गांव की तो बात छोड़िए जिला स्तर पर अखाड़े स्टेडियम तो आज भी नहीं है|
इसी के साथ ही गांव-गांव औषधालय स्थापित करने के लिए धन व्यय किया जाता था जिसे परिहार धन बोला जाता था| स्वास्थ्य का यह मॉडल बहुत ही अनूठा था| चीन व वियतनाम थाईलैंड दक्षिण एशियाई देशों में तो आज भी काम कर रहा है|
सचमुच अतीत का वैदिक भारत श्रेष्ठ नहीं सर्वश्रेष्ठ था|
आर्य सागर खारी ✍✍✍