उगता भारत ब्यूरो
*अश्मक अथवा अस्सक महाजनपद पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था।
*नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच अवस्थित इस प्रदेश की राजधानी ‘पाटन’ थी।
*आधुनिक काल में इस प्रदेश को महाराष्ट्र कहते हैं।
*दक्षिण भारत में स्थित यह एकमात्र जनपद था।
*पुराणों के अनुसार इस महाजनपद के शासक इक्ष्वाकु वंश के थे।
*अवंति ने बाद में अश्मक को जीत लिया था।
*बौद्ध साहित्य में इस प्रदेश का उल्लेख मिलता है, जो गोदावरी के तट पर स्थित था।
स्थिति-
*’महागोविन्दसूत्तन्त’ के अनुसार यह प्रदेश रेणु और धृतराष्ट्र के समय में विद्यमान था। इस ग्रन्थ में अस्सक के राजा ब्रह्मदत्त का उल्लेख है।
*सुत्तनिपात में अस्सक को गोदावरी तट पर स्थित बताया गया है।
*इसकी राजधानी पोतन, पौदन्य या पैठान में थी।
*पाणिनि ने अष्टाध्यायी में भी अश्मकों का उल्लेख किया है।
*सोननंदजातक में अस्सक को अवंती से सम्बंधित कहा गया है।
*अश्मक नामक राजा का उल्लेख वायु पुराण और महाभारत में है–‘अश्मकों नाम राजर्षि: पौदन्यं योन्यवेशयत्’। सम्भवत: इसी राजा के नाम से यह जनपद अश्मक कहलाया।
*ग्रीक लेखकों ने अस्सकेनोई लोगों का उत्तर-पश्चिमी भारत में उल्लेख किया है। इनका दक्षिणी अश्वकों से ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा होगा या यह अश्वकों का रूपान्तर हो सकता है।
पौराणिक वर्णन-
*कूर्मपुराण तथा बृहत्संहिता में अश्मक उत्तर भारत का अंग माना गया है। इन ग्रंथों के अनुसार पंजाब के समीप अश्मक प्रदेश की स्थिति थी।
*परन्तु राजशेखर ने अपनी ‘काव्य-मीमांसा’ में इसकी स्थिति दक्षिण भारत के प्रदेशों में मानी है। राजशेखर के अनुसार माहिष्मती से आगे दक्षिण की ओर ‘दक्षिणापथ’ का आरम्भ होता है, जिसमें महाराष्ट्र, विदर्भ, कुंतल, क्रथैशिक, सूर्पारक, कांची, केरल, चोल, पांड्य, कोंकण आदि जनपदों का समावेश बतलाया गया है। राजशेखर अश्मक जनपद को इसी दक्षिणापथ का अंग मानते हैं। ब्रह्मांडपुराण में यही स्थिति अंगीकृत की गई है।
विद्वान् विचार-
*’दश-कुमारचरित’ में दंडी ने, ‘हर्षचरित’ में बाणभट्ट ने तथा ‘अर्थशास्त्र’ की टीका में भट्टस्वामी ने भी इसे महाराष्ट्र प्रान्त के अंतर्गत माना है।
*’दशकुमार चरित’ के अष्टम उच्छ्वास के अनुसार अश्मक के राजा ने कुंतल, कोंकण, वनवासि, मुरल, ऋचिक तथा नासिक के राजाओं को विदर्भ नरेश से युद्ध करने के लिए भड़काया, जिससे उन लोगों ने विदर्भ नरेश पर एक साथ ही आक्रमण कर दिया। इससे स्पष्ट है कि अश्मक महाराष्ट्र का ही कोई अंग या समग्र महाराष्ट्र का सूचक था, विदर्भ प्रान्त का किसी प्रकार अंग नहीं हो सकता, जैसा काव्यमीमांसा पर अंग्रेज़ी टिप्पणी में निर्दिष्ट किया गया है।
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