अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का भारत के प्रति दृष्टिकोण प्रारम्भ से ही लचीला रहा है। इसका अभिप्राय यह कतई नहीं है कि अमेरिका अपने राष्ट्रीय हितों को भुलाकर भारत के सामने आरती का थाल लेकर आ खड़ा हुआ हो। अमेरिका के लिए अपना व्यापार पहले है। इसलिए वह अपने राष्ट्रीय हितों के प्रति पहले सावधान रहता है। आज का अमेरिका भारत को वैश्विक शक्ति के रूप में मान्यता दे रहा है। अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की घोषणा करते हुए स्पष्ट किया है कि उसके लिए चीन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी है। जिससे उसे निपटना होगा। डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने भारत को अपना एक अहम रक्षा और रणनीतिक सहयोगी माना है। इससे साफ होता है कि अमेरिका का भारत के प्रति अब परम्परागत दृष्टिकोण परिवर्तित हो रहा है।
अमेरिका का भारत के प्रति बदलता दृष्टिकोण कई बातों को इंगित करता है। इनमें सबसे प्रमुख है अमेरिका का चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना मुख्य प्रतिद्वन्द्वी मानना। चीन और अमेरिका की राजनीतिक सोच में भारी अंतर है। चीन एक कम्युनिस्ट देश है और वह अपनी कम्युनिस्ट विचारधारा से सारे संसार को ही रंग देना चाहता है। जबकि अमेरिका एक लोकतांत्रिक देश है और वह कभी भी कम्युनिस्ट चीन को विश्व की चौधराहट न करने देने के लिए प्रतिबद्घ है। यदि चीन विश्व की निर्विवादशक्ति बनता है तो कितने ही देशों के अस्तित्व के लिए संकट उठ खड़ा होगा, और उनका अस्तित्व बचा नहीं रहेगा। तब संसार में ईसाइयत के लिए भी खतरा पैदा होगा। ऐसे में अमेरिका ही नहीं अपितु अन्य ईसाई देश भी चीन को उठने देने से रोकने की युक्तियों में लगे रहते हैं। यद्यपि वह चीन से अपने विरोध को इस प्रकार स्पष्ट नहीं करते हैं कि चीन के आने से उनके धार्मिक मामलों का पूर्णत: सफाया हो जाएगा पर वह चीन को घेरने के लिए सक्रिय अवश्य रहते हैं।
जहां तक भारत की बात है तो भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां ईसाइयत स्वतन्त्रता से फूल फल रही है। ऐसे में अमेरिका के लिए भारत कहीं अधिक निकट है। अमेरिका चाहेगा कि भारत को अधिक प्राथमिकता देकर वह इसके धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का और भी अधिक लाभ उठा सकता है। इसी कारण चीन की अपेक्षा अमेरिका भारत को अधिक प्राथमिकता दे रहा है। चीन धर्म या सम्प्रदाय को अफीम कहकर पुकारता रहा है। वह यही चाहेगा कि इस अफीम को उसके देश से दूर ही रखा जाए तो ठीक है। चीन को अपनी अफीम के सामने किसी अन्य अफीम का नशा अच्छा नहीं लगता है। वह अमेरिका को विश्व की प्रथम शक्ति के स्थान से धकेलकर अपना वर्चस्व संसार पर स्थापित करने तक का ही इच्छुक नहीं है अपितु वह संसार का राजनैतिक नेतृत्व भी करना चाहता है और इसके लिए वह चाहता है कि उसकी कम्युनिस्ट विचारधारा को सारा संसार अपना ले। लुकाछिपी के उपरोक्त खेल में चीन को परास्त करने के लिए अमेरिका को इस समय कुछ विश्वस्त साथियों की आवश्यकता है। इधर चीन भारत से प्रारम्भ से ही ईष्र्या मानता आया है। वह नहीं चाहता कि उसके पड़ोस में एक सशक्त भारत विश्वशक्ति के रूप में उभरे। अत: उसका प्रयास रहता है कि जैसे भी हो भारत को पीछे धकेला जाए। भारत इस बात को समझ रहा है मोदीजी निश्चय ही चीन की नीतियों को भली प्रकार समझ रहे हैं। तभी तो उनकी सरकार इस बात के लिए सजग है कि चीन को 1962 को दोहराने न दिया जाए। फिर भी यदि उसे 1962 को दोहराने की जिद है और वह कोई भी कड़ा कदम भारत के खिलाफ उठाता है तो उसे यह बता दिया जाए कि 2017 का भारत एक सशक्त और समृद्घ भारत है जो अपने पुराने हिसाब को भी पाक साफ करने के लिए तैयार बैठा है। ऐसे मजबूत भारत की और चीन की पटनी असम्भव है। यही कारण है कि अमेरिका भारत की जागरूक नीतियों से परिचित है और वह ये भली प्रकार जानता है कि आज का भारत अपनी बात को ढुलमुल ढंग से न करके स्पष्टत: और गम्भीरता से करता है, जिसका हाथ पकडऩा और साथ लेना इस समय अपमान की बात न होकर गर्व की बात होगी। ऐसे सशक्त और सुदृढ़ भारत के राजनैतिक नेतृत्व के प्रति अमेरिका का दृष्टिकोण बदल रहा है तो समझ लेना चाहिए कि अमेरिका इस समय भी अपने राष्ट्रीय हितों के दृष्टिगत ही भारत को अपना मित्र मान रहा है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अमेरिका ने पाकिस्तान के आतंकवाद को समाप्त करने के लिए जितने अरबों की रकम दी है उसे पाकिस्तान ने आतंकवादियों पर ही व्यय कर दिया है और उसने विश्व को समाप्त करने की आतंकवादी सोच को और भी बढ़ावा देने का काम किया है। जबकि भारत पाकिस्तान की ऐसी गतिविधियों का प्रारम्भ से ही विरोधी रहा है। फलस्वरूप अमेरिका को अब लगने लगा है कि पाकिस्तान जैसे छली और धोखेबाज मित्र की अपेक्षा भारत कहीं अधिक विश्वसनीय हो सकता है। भारत की सोच ही आतंकवादी नहीं है, जबकि पाकिस्तान की तो सोच ही आतंकवादी है। जिससे बचने के लिए अमेरिका का ट्रम्प प्रशासन भारत की ओर मित्रता का हाथ बढ़ा रहा है।
सुरक्षा पर ट्रम्प प्रशासन की ओर से पहली बार जारी की गयी इस नीति में अमेरिका ने निकट भविष्य में अपने हितों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों और उनके खिलाफ भावी रणनीति को पेश किया। इसमें चीन के कई कदमों की आलोचना की गयी है। इसमें विश्व के कई हिस्सों में चलाये जा रहे चीन की वन बेल्ट, वन रोड परियोजना का जिक्र कर कहा गया है कि उनकी वजह से कई देशों की सम्प्रभुता का हनन हो रहा है। कुल मिलाकर अमेरिका चीन के विश्व मामलों में बढ़ते हस्तक्षेप को सहन नहीं कर सकता। इसी राष्ट्र हित को साधने के लिए उसे भारत जैसे मित्र की आवश्यकता है जो कि चीन को अपना शत्रु मानता है। कूटनीति कहती है कि शत्रु का शत्रु अपना मित्र होता है। कूटनीति के इस सूत्र को आधार मानकर अमेरिका भारत की ओर मित्रता का हाथ आगे बढ़ा रहा है तो इसे हमें इसी रूप में देखना चाहिए।
मुख्य संपादक, उगता भारत