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चिंतित करता है गांवों से पलायन

घनश्याम सिंह
हिमाचल प्रदेश में यदि खेतीबाड़ी की दशा सुधारने के लिए प्रयास किए जाएं, तो यह क्षेत्र प्रदेश की तरक्की में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके विपरीत यदि समय रहते हमने इस पर उचित ध्यान न दिया, तो खाद्यान्न संकट के साथ-साथ कई और गंभीर समस्याएं देश-प्रदेश को सताना शुरू कर देंगी। जब किसान कई सालों तक अपनी उपजाऊ जमीन की अनदेखी करता है और उसे कई वर्षों तक बंजर छोड़ देता है, तो उस उपजाऊ जमीन में कई प्रकार की वनस्पतियां उग आती हैं। इनमें से अधिकतर कांटेदार झाडिय़ां होती हैं, जो कभी समाप्त नहीं होतीं। इनसे परेशान होकर किसान उस भूमि पर फसल कार्य को छोड़ देते हैं। उपजाऊ जमीन की इस कद्र अनदेखी के कारण बरसात में बहकर इन खेतों का नामोनिशान तक नहीं बचता। यह भू-क्षरण लगातार चिंता का विषय बनता जा रहा है, लेकिन हैरानी की बात यह कि न तो किसान और न ही सरकार इस पर ध्यान दे रही है। भारत में हिमाचल राज्य ऐसा है, जहां कई मौसमी विविधताएं पाई जाती हैं। विभिन्न जलवायु के कारण यहां कई प्रकार की खेती विभिन्न समय में की जाती है। अनाज में गेहूं, जौ, मक्की, ज्वार, बाजरा, कोदरा, काठू, ओखल, गांगड़ी, विथू, सरैरा, जीणों, काऊणी इत्यादि उगाई जाती है। कई प्रकार के मसाले यहां पैदा होते हैं। कई प्रकार की बेमौसमी सब्जियां तैयार करके किसान आर्थिक लाभ कमा रहे हैं। इस सब से बढक़र यहां बागबानी की बेशुमार संभावनाएं हैं। प्रदेश के बागबानों ने भी इस दिशा में उल्लेखनीय परिणाम हासिल किए हैं। यहां विभिन्न प्रकार की जलवायु के कारण असंख्य औषधीय जड़ी-बूटियों का उत्पादन भी होता है। हालांकि इस संदर्भ में एक समस्या भी चिंता पैदा करती है। आज का युवा फटाफट सफलता के मुकाम पर पहुंचना चाहता है। हिमाचल भी इस प्रभाव से अछूत नहीं है। देवभूमि की भावी पीढ़ी भी फटाफट जीवन जीने को मजबूर हो गई। युवा अब शहरों में जाकर कंपनियों या निजी क्षेत्रों में सेवाएं देने लगे हैं। जो कम पढ़े-लिखे थे, वे कई कामों में लगे हैं जैसे कि कारपेंटर, पेंटर, प्लंबर, इलेक्ट्रिशन, फिटर तथा कई मेहनत के कार्यों में जुट गए। यहां फटाफट काम करो और काम खत्म करने के बाद एक-दो घंटे अधिक काम करके युवा रोटी-पानी का अलग से कमा लेता है। ऐसे में कौन उठाए फलों और सब्जियों का किलटा? कौन गाय-बैल पाले, उनकी गवाली करे?
खेतीबाड़ी के लिए भी चौबीस घंटे तैनात रहना पड़ता है जैसे हमारे वीर जवान सीमाओं पर दिन-रात तैनात रहते हैं। खेती में तैनाती का मतलब खेतों में हल चलाना, बुआई, गुड़ाई, गहाई, नड़ाई, खरपतवार निकालना तथा जंगली जानवरों व लावारिस पशुओं से फसलों को बचाना। यह कार्य अति व्यस्त होने के साथ-साथ मेहनताना भी है। जब शहरों से आए अपने मित्रों को देखते हैं, तो उनकी पोशाक तथा शाना-ओ-शौकत देख आकर्षित होकर पहाड़ी मुंडू भी शहर का रुख करता है।
शहरों के प्रति पलते इस मायावी आकर्षण में गांव खाली होते जा रहे हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर रहना और अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करना ही पलायन कहलाता है। गांवों से शहरों की ओर पलायन का सिलसिला कोई नया मसला नहीं है। गांवों में कृषि भूमि के लगातार कम होते जाने, आबादी बढऩे और प्राकृतिक आपदाओं के चलते रोजी-रोटी की तलाश में ग्रामीणों को शहरों-कस्बों की ओर मुंह करना पड़ रहा है। गांवों में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी पलायन का एक दूसरा बड़ा कारण है। गांवों में रोजगार और शिक्षा के साथ-साथ बिजली, आवास, सडक़, संचार, स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं शहरों की तुलना में बेहद कम हैं। गांवों में शहरों की तुलना में पांच प्रतिशत आधारभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। बीते कुछ सालों में गांव छोडक़र शहरों की ओर पलायन करने वाले ग्रामीणजनों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी देखी जा रही है। इससे कई प्रकार के असंतुलन भी उत्पन्न हो रहे हैं।
शहरों पर आबादी का दबाव बुरी तरह बढ़ रहा है, वहीं गांवों में कामगारों की कमी का अनुभव किया जाने लगा है। आवारा पशु भी खेतीबाड़ी को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके अतिरिक्त बंदरों और अन्य जंगली जानवरों ने काफी आतंक मचाया है। इसके कारण कई किसानों ने खेतीबाड़ी से किनारा कर लिया है, जबकि सरकार कहती है कि बंदरों की नसबंदी की जा रही तथा विदेशों को भी बंदर भेजे जा रहे हैं। बंदर मारने का आदेश भी दिया है, लेकिन इसमें शर्तें यह है कि मादा बंदर व इनके बच्चों को न मारें। किसान अपनी खेती बचाए कि इनका लिंग जांच करे। न ही आज तक किसी बंदर मार को कोई पैसा मिला। ऐसे में इस प्रयास के परिणाम भी शून्य शून्य हैं। सरकार की ओर से किसान को उचित ऋण नहीं मिलना तथा इसकी प्रक्रिया सरल न होना भी खेती छूटने का एक कारण है। अगर किसानों की खेतीबाड़ी छूटने और गांवों से शहरों की ओर पलायन का सिलसिला यूं ही जारी रहा, तो इसके आने वाले समय में गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। ऐसे में सरकार को इस समस्या को हल्के में नहीं लेना चाहिए। इसके लिए सरकारों को ग्रामीण विकास और यहां रोजगार बढ़ाने के लिए प्रयास करने होंगे।

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