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विष्णु आख्यान.
पार्ट/ 1
Dr D K Garg

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विष्णू को लेकर पुराणों और पोराणिको में बहुत भ्रांति है , तरह तरह की कथाएं प्रचलित है,अच्छी खासी तुकबंदी है,कही विष्णु को सर्वुव्यापी ईश्वर बताया गया है तो इन्ही कथायो में विष्णू को शरीरधारी मानव के रूप में भी वर्णित किया गया है जिसकी पत्नी का नाम लक्ष्मी है,निवास क्षीरसागर में है आदि।
कुछ मुख्य लोक मान्यताओं पर विचार करते हैं।
1. भगवान विष्णु जल में स्थित है?

पौराणिक कथा :
शिव और शिवा की नगरी काशी है। एक बार शिव और शिवा के मन में विचार आया कि सृजन पालन और संहार का कार्य हमारे मन को चिंतित करता है। इसलिए अच्छा यही होगा कि हम एक दिव्य पुरुष का निर्माण करें जिसे हम अपना कार्यभार देकर निश्चिंत हो सकते हैं। इसके बाद हम दोनों चिंताविहीन होकर इस काशी नगर में सुख पूर्वक निवास करें।

ऐसा विचार करके शक्ति सहित शिव ने अपने वाम भाग के दसवें अंग पर अमृत मल दिया, जिससे एक पुरुष उत्पन्न हुआ, जो तीनों लोकों में सबसे अधिक सुन्दर था। उस शान्त, सत्व गुण से परिपूर्ण पुरुष गंभीरता का अथाह सागर थे।क्षमा के गुण से ओत-प्रोत उस पुरुष की कान्ति इन्द्रनील मणि के समान श्याम थी। वह वीर पुरुष किसी से भी पराजित होने वाला नहीं था और उन्होंने पीताम्बर धारण किया हुआ था।उस पुरुष ने शिव को प्रणाम किया और उनसे निवेदन किया, ‘‘मेरा नाम और मेरा काम सुनिश्‍चित कीजिए।’’

शिव ने कहा, ‘‘व्यापक होने के कारण तुम्हारा नाम विष्णु होगा। इसके अलावा भी भक्त अपने के श्रद्धा अनुरूप आपके अनेक नाम रखेंगे।’’

इसके बाद शिव ने कहा, “अब रहा काम की बात तो तुम सबसे पहले सुस्थिर होकर उत्तम तप करो, क्योंकि वही समस्त कार्यों का साधन है।” ऐसा कहकर शिव ने विष्णु भगवान को वेदों का ज्ञान प्रदान किया इसके बाद भगवान विष्णु शिवाज्ञा का पालन करके घनघोर तप करने लगे।

शिव पुराण में आगे वर्णन है कि घनघोर तपस्या के प्रभाववश भगवान विष्णु के श्रीअंगों से अनेक प्रकार की जल धाराएं निकलने लगी। उस जल से सारा आकाश व्याप्त हो गया फिर भगवान विष्णु स्वयं उस जल में शयन करने लगें। जिस कारण वे नारायण कहे जाते हैं।
नारायण के अलावा उस समय और कोई नहीं था । उसके बाद भगवान नारायण से चैबीस तत्व उत्पन्न हुए जिन्हें मिलाजुला कर प्रकृति कहा गया है जिससे रचना होती है । उन चैबीस तत्वों को ग्रहण करके परम पुरुष नारायण भगवान शिव की इच्छा से ब्रह्म रूप जल में सो गए।
पुराण में यह भी माना गया है कि जगत को रचने की इच्छा से भगवान विष्णु ने जल की रचना की और उसमें उन्होंने अपने अंश का बीज डाला। एक हजार साल बीतने पर वह बीज एक स्वर्णमय अण्ड के रूप में परिणत हो गया। फिर भगवान विष्णु स्वयं उस अण्ड में प्रविष्ट हो गए। इसके बाद उस अण्ड से सूर्य, धरती, स्वर्गलोक, ब्रह्मा, सातों पर्वत, सातों समुद्र सब निकले।
विष्लेषण
इस कथानक में कई विशेष शब्दावली का प्रयोग हुआ है। जैसे जल, शिव ,विष्णु आदि सबसे पहले इन शब्दों का भावार्थ समझते है ।
स ब्रह्मा स विष्णुः
शिव : सब जगत् के बनाने से ‘ब्रह्मा’, सर्वत्र व्यापक होने से ‘विष्णु’, दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से ‘रुद्र’, मंगलमय और सब का कल्याणकर्त्ता होने से ‘शिव’, ‘यः सर्वमश्नुते न क्षरति न विनश्यति तदक्षरम्’
विष्णु: विष्लृ व्याप्तौ) इस धातु से ‘नु’ प्रत्यय होकर ‘विष्णु’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘वेवेष्टि व्याप्नोति चराऽचरं जगत् स विष्णुः’ चर और अचररूप जगत् में व्यापक होने से परमात्मा का नाम ‘विष्णु’है।
नारायण : – आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नरसूनवः।
ता यदस्यायनं पूर्वं तेन नारायणः स्मृतः।। -मनुन अ० १। श्लोक १०।।
जल : जल और जीवों का नाम नारा है, वे अयन अर्थात् निवासस्थान हैं, जिसका इसलिए सब जीवों में व्यापक परमात्मा का नाम ‘नारायण’है।
(जल घातने) इस धातु से ‘जल’शब्द सिद्ध होता है, ‘जलति घातयति दुष्टान् सघांतयति अव्यक्तपरमाण्वादीन् तद् ब्रह्म जलम्’ जो दुष्टों का ताड़न और अव्यक्त तथा परमाणुओं का अन्योऽन्य संयोग वा वियोग करता है, वह परमात्मा ‘जल’संज्ञक कहाता है।

विष्णु और जल का सम्बन्ध : यदि ईश्वर के विभिन्न नामो की व्याख्या का अवलोकन किया जाये तो ये ईश्वर को विभिन्न नामो से उसके कार्यो के अनुसार जाना गया है। विष्णु का एक शाब्दिक अर्थ सृष्टि को चलाने वाले ईश्वर से है और जल का दूसरा अर्थ ५ तत्वों से है जिनको प्रकृति का नाम दिया है -जिनमे अग्नि ,जल ,वायु आदि है और सभी अपने आप में महत्वपूर्ण है।
हम सब जानते हैं जल है तो कल है। जहां जल नहीं है वहां जीवन नहीं है। इसलिए वैज्ञानिक यह खोजने में लगे हुए हैं कि पृथ्वी के अतिरिक्त और किन ग्रहों पर जल है जिससे वहां जीवन की संभावना खोजी जा सके। पुराणों के अनुसार इस संसार का निर्माण जल के बिना नहीं हो सकता है और प्रलय काल में सब कुछ जल में ही विलीन हो जाता है, इस जल को एकार्णव कहा गया है।
यदि हम यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे के सिद्धांत पर ध्यान दें हमें अपने शरीर और ब्रह्मांड में जल की मात्रा का साम्य दिखाई देगा. हमारी पृथ्वी का तीन चैथाई हिस्सा जल से ढका हुआ है और मनुष्य के शरीर का तीन चैथाई भाग पानी से बना हुआ है।इसके अलावा इस संसार के पालनहार भगवान विष्णु भी जल में स्थित है ।आदि पुरूष विष्णु का निवास ‘आयन’ नार यानी ‘जल’ है इसलिए भगवान विष्णु को नारायण नाम से संबोधित किया जाता हैं। एवं, हर बच्चा मां के गर्भ में जल में अवस्थित होता है।
उपमा के रूप में इन्ही कथानक में जल को भगवान विष्णु के घोर तपस्या से उत्पन्न पसीने की बूंद कह गया है।उत्पत्ति और विनाश दोनों में जल उपस्थित है। पुराणों में बार-बार उल्लैख आया है कि जब प्रलय काल आता है उस समय सारा जगत अंधकार में खो गया था। ऐसा अंधकार कि ना तो उसके विषय में कोई कल्पना की जा सकती थी ना कोई वस्तु जाना जा सकता था। सारा ज्ञान खो गया था, किसी वस्तु का अवशेष नहीं रहा था। तब भगवान विष्णु प्रलय के अंधकार को चीर कर उत्पन्न होते हैं।
शास्त्र में कहा गया है कि सृष्टि के अंत के समय सिर्फ जल शेष बच जाता है जिसमें भगवान विष्णु शयन करते हैं । फिर कुछ काल बीतने के बाद भगवान विष्णु उसी जल से सृजन का काम आरंभ करते हैं ।निर्माण और अंत के समय जल की उपस्थिति इस बात को दर्शाता है कि बिना जल के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है।

संदेश ये हैं कि भगवान विष्णु की तरह हर व्यक्ति के लिए क्रियाशील रहना अनिवार्य है और उन्हीं के समान हर व्यक्ति एक अदृश्य कुरुक्षेत्र में खड़ा है। समझने की बात है कि कुरुक्षेत्र सिर्फ एक स्थान नहीं है जहां कौरव-पाण्डव का आपस में युद्ध हुआ था, बल्कि कुरुक्षेत्र मनुष्य का मन है जहां पर पंच तत्व से बने शरीर ( पांडव) में अवस्थित धर्म भावना का सौ प्रकार की र्दुभावनाओं की सेना (कौरव) के साथ धीर गंभीर मन से युद्धरत होना है अर्थात् क्रियाशील होना है अपने लिए सौभाग्य लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए। आज का मनुष्य भी भावनाओं के समुद्र में तैर रहा है, अर्थात भगवान विष्णु की तरह जल में अवस्थित है।

क्षीर सागर:,पांच फन वाला शेषनाग ,लक्ष्मी जी पैर दबाती हुई

पार्ट 2 का इंतजार करें 🙏

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