भारत का संविधान, संविधान सभा और गणतंत्र
डॉक्टर अंबेडकर के बारे में यह बात बड़ी प्रमुखता से स्थापित की गई है कि उन्होंने भारत का संविधान बनाया था। जबकि यह बात सिरे से ही गलत है ।जिसे उन्होंने स्वयं ने ही अपने जीवन काल में भरी पार्लियामेंट के भीतर खारिज कर दिया था। वे नहीं चाहते थे कि देश में बाबा छाप संविधान के नाम से किसी पुस्तक को पुकारा जाए और उसके आधार पर शासन चले। एक बार उन्होंने संसद में ही यह भी कह दिया था कि यदि उनका बस चले तो वह इस संविधान को जलाने वाले पहले व्यक्ति होंगे। इसका कारण केवल एक था कि वह इस संविधान के अनेक प्रावधानों से सहमत और संतुष्ट नहीं थे । उनका चिंतन निश्चित रूप से बहुत उत्कृष्ट था।
इसके उपरांत भी उन्होंने भारत की संविधान सभा में रहकर और प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। बाबा साहब किसी भी प्रकार के धार्मिक तुष्टीकरण के खिलाफ थे। उन्होंने देश में सांप्रदायिक एकता, सद्भाव और शांति स्थापित करने के लिए यह भी लिखा है कि देश के मदरसों को यदि बंद कर दिया जाए तो देश में शांति स्थापित हो जाएगी, पर आज मीम और भीम के नाम पर जो लोग देश विरोधी आंदोलन को खड़ा करने की सोच रहे हैं, वे इस तर्कपूर्ण तथ्य को पचा नहीं पाते हैं।
प्रत्येक गणतंत्र दिवस प्रतिवर्ष हमें अपने संविधान , अपनी संविधान सभा और संविधान सभा के सम्मानित सदस्यों के बारे में कुछ सोचने व समझने की प्रेरणा देता है । 1946 में भारत की संविधान सभा का गठन भारतीय संविधान के निर्माण के लिए किया गया था। ग्रेट ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के पश्चात भारत की संविधान सभा के सदस्य ही प्रथम संसद के सदस्य बने , अर्थात 1952 की 13 मई तक संविधान सभा के सदस्यों के माध्यम से ही देश का शासन चलता रहा ।
1952 में देश के संविधान के प्रावधानों के अनुसार देश में पहले आम चुनाव आयोजित किए गए थे। यदि हम भारतीय संविधान सभा के गठन और उसकी कार्यप्रणाली से संबंधित तथ्यों का अवलोकन करें तो पता चलता है कि कैबिनेट मिशन की संस्तुतियों के आधार पर भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 ई० में किया गया ।संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे।
मिशन योजना के अनुसार जुलाई, 1946 ई० में संविधान सभा का चुनाव हुआ ।कुल 389 सदस्यों में से प्रांतों के लिए निर्धारित 296 सदस्यों के लिये चुनाव हुए । इसमें कांग्रेस को 208, मुस्लिम लीग को 73 स्थान एवं 15 अन्य दलों के तथा स्वतंत्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए । 9 दिसंबर, 1946 ई० को संविधान सभा की प्रथम बैठक नई दिल्ली स्थित काउंसिल चैम्बर के पुस्तकालय भवन में हुई ।सभा के सबसे वरिष्ठ और वयोवृद्ध सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया । अंग्रेजों के संकेत पर देश विभाजन के लिए काम कर रही मुस्लिम लीग ने बैठक का बहिष्कार किया और पाकिस्तान के लिए सर्वथा अलग संविधान सभा की मांग प्रारम्भ कर दी । मुस्लिम लीग का ही अनुकरण कर रहे हैदराबाद के निजाम ने संविधान सभा का बहिष्कार करने का निर्णय लिया था ।
यही कारण रहा कि हैदराबाद रियासत के प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित नहीं हुए थे । प्रांतों या देसी रियासतों को उनकी जनसंख्या के आधार पर संविधान सभा में प्रतिनिधित्व दिया गया था ।साधारणतः 10 लाख की जनसंख्या पर एक स्थान का आवंटन किया गया था । अंग्रेजों ने भारतवासियों के मध्य विभाजन की रेखा को और थोड़ा सा स्पष्ट करने के लिए यह व्यवस्था की थी कि प्रांतों का प्रतिनिधित्व मुख्यतः तीन समुदायों – मुस्लिम सिख तथा साधारण – की जनसंख्या के आधार पर विभाजित किया जाए। संविधान सभा में ब्रिटिश प्रान्तों के 296 प्रतिनिधियों का विभाजन सांप्रदायिक आधार पर किया गया- 213 सामान्य, 79 मुसलमान तथा 4 सिख ।संविधान सभा के सदस्यों में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की संख्या 33 थी । महिलाओं को समानता की दृष्टि से देखने का ढिंढोरा पीटने वाले अंग्रेजों ने संविधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या 12 नियत की थी ।11 दिसंबर, 1946 ई. को डॉ सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में संपन्न हुई संविधानसभा की बैठक में डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष निर्वाचित हुए ।
संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसंबर, 1946 ई. को जवाहर लाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत किए गए उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारम्भ हुई । उद्देश्य प्रस्तावों में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने स्वतंत्र देश के स्वतंत्र संविधान के उद्देश्यों को स्पष्ट किया था ।22 जनवरी, 1947 ई. को उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के पश्चात संविधान सभा ने संविधान निर्माण हेतु अनेक समितियां नियुक्त कीं । इनमें प्रमुख थीं – वार्ता समिति, संघ संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, संघ शक्ति समिति, प्रारूप समिति । बी. एन. राव द्वारा प्रस्तुत किए गए संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के लिए संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त, 1947 को एक संकल्प पारित करके प्रारूप समिति का गठन किया गया तथा इसके अध्यक्ष के रूप में डॉ भीमराव अम्बेडकर को चुना गया ।
इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान के मूल स्वरूप की संरचना श्री बी0 एन0 राव के मस्तिष्क की उपज थी । उसी मूलभूत ढांचे पर आगे का भवन तैयार करने का काम इस प्रारूप समिति ने संभाला । इसके उपरांत भी जो लोग यह भ्रम पाले हुए हैं कि भारतीय संविधान की रचना डॉ आंबेडकर ने की थी , वह स्वयं तो भ्रांति का शिकार हैं ही साथ ही देश की युवा पीढ़ी को भी भ्रांति का शिकार बना रहे हैं । संविधान की इस प्रारूप समिति के सदस्यों की संख्या सात थी, जो इस प्रकार है: 1.डॉ. भीमराव अम्बेडकर (अध्यक्ष) 2. एन. गोपाल स्वामी आयंगर 3. अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर 4 . कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी 5 . सैय्यद मोहम्मद सादुल्ला 6 . एन. माधव राव (बी.एल. मित्र के स्थान पर) 7. डी. पी. खेतान (1948 ई. में इनकी मृत्यु के बाद टी. टी. कृष्माचारी को सदस्य बनाया गया). संविधान सभा में अम्बेडकर का निर्वाचन पश्चिम बंगाल से हुआ था ।
अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग को देश के बंटवारे के लिए पहले दिन से ही तैयार करना आरंभ कर दिया था , अब उन्होंने कांग्रेस को भी देश के बंटवारे के लिए तैयार कर लिया था । 3 जून, 1947 ई. की योजना के अनुसार देश का बंटवारा हो जाने पर भारतीय संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 324 नियत की गई, जिसमें 235 स्थान प्रांतों के लिय और 89 स्थान देसी राज्यों के लिए थे । देश-विभाजन के पश्चात संविधान सभा का पुनर्गठन 31 अक्टूबर, 1947 ई. को किया गया और 31 दिसंबर 1947 ई. को संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 289 थीं, जिसमें प्रांतीय सदस्यों की संख्या एवं देसी रियासतों के सदस्यों की संख्या 70 थी ।
प्रारूप समिति ने संविधान के प्रारूप पर विचार- विमर्श करने के बाद 21 फरवरी, 1948 ई. को संविधान सभा को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया । संविधान सभा में संविधान का प्रथम वाचन 4 नवंबर से 9 नवंबर, 1948 ई. तक चला । संविधान का दूसरा वाचन 15 नवंबर 1948 ई० को प्रारम्भ हुआ, जो 17 अक्टूबर, 1949 ई० तक चला । संविधान सभा में संविधान का तीसरा वाचन 14 नवंबर, 1949 ई० को प्रारम्भ हुआ जो 26 नवंबर 1949 ई० तक चला और संविधान सभा द्वारा संविधान को पारित कर दिया गया । इस समय संविधान सभा के 284 सदस्य उपस्थित थे । 26 नवंबर 1949 की यह तिथि ही भारतीय संविधान के पूर्ण हो जाने की तिथि है । संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष, 11 महीना और 18 दिन लगे ।इस कार्य पर लगभग 6.4 करोड़ रुपये खर्च हुए । संविधान के प्रारूप पर कुल 114 दिन बहस हुई । जिस में अनेक सदस्यों ने अपने अपने बहुमूल्य विचार देकर संविधान को भारतीय जनता की अपेक्षाओं के अनुकूल और अनुरूप बनाने के लिए प्रयास किया । संविधान को जब 26 नवंबर, 1949 ई० को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया, तब इसमें कुल 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं । वर्तमान समय में संविधान में 25 भाग, 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियां हैं । संविधान के कुछ अनुच्छेदों में से 15 अर्थात 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 372, 380, 388, 391, 392 तथा 393 अनुच्छेदों को 26 नवंबर, 1949 ई० को ही परिवर्तित कर दिया गया; जबकि शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी, 1950 ई० को लागू किया गया ।
संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी, 1950 ई० को हुई और उसी दिन संविधान सभा के द्वारा डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया ।कैबिनेट मिशन के सदस्य सर स्टेफोर्ड क्रिप्स, लार्ड पेंथिक लारेंस तथा ए० बी० एलेक्ज़ेंडर थे । 26 जुलाई, 1947 ई० को गवर्नर जनरल ने पाकिस्तान के लिए पृथक संविधान सभा की स्थापना की घोषणा की ।हमारे देश के संविधान की प्रस्तावना बहुत महत्वपूर्ण है। जिसमें लिखा है कि- ‘ हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न , समाजवादी ,पंथनिरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार , अभिव्यक्ति , विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता , प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाली बंधुता को बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 /11/ 1949 ई0( मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी सम्वत दो हजार छः विक्रमी ) को एतद्द्वारा संविधान को अंगीकृत , अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ।’
हमारे संविधान के निर्माण में सन1857 की क्रांति के पश्चात महारानी विक्टोरिया के घोषणा पत्र से लेकर 1935 तक के भारत सरकार अधिनियम के कई अधिनियमों ने विशेष भूमिका निभाई थी । 1857 की क्रांति के कुछ समय पश्चात ही हिंदू पैट्रियट में लिखकर श्री हरिश्चंद्र मुखर्जी ने भारतीय संसद की मांग रखने का सराहनीय प्रयास किया था। जब हम अपने संविधान के वर्तमान स्वरूप की कहानी को पढ़ना आरंभ करते हैं तो हरिश्चंद्र मुखर्जी कि वह मांग भी इसमें महत्वपूर्ण है जिसमें उन्होंने कहा था कि — ” भारत की जनता को स्वार्थी वर्ग के विधायन और अत्याचार से मुक्ति मिलनी चाहिए। हमारे जो देशवासी राजनीति में रुचि लेते हैं और विधान परिषद में भारतीय सदस्यों के प्रवेश के लिए आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं इस विचार का लक्ष्य संकीर्ण है, और अपूर्ण भी ।हम यह नहीं चाहते हैं कि विद्यमान परिषद में कुछ स्वतंत्र सदस्यों को प्रवेश मिले , हम तो भारतीय संसद चाहते हैं।’भारतीय संविधान के निर्माण में भारतीय परिषद अधिनियम 1860 , भारतीय परिषद अधिनियम 1892 , मार्ले मिंटो सुधार 1909 , भारतीय परिषद अधिनियम 1909 , भारत शासन अधिनियम 1919, साइमन कमीशन और भारत सरकार अधिनियम 1935 का भी विशेष योगदान रहा।आज हम अपने इसी संविधान का 73 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं । हमारे गणतंत्र को इस संविधान के अनुसार चलते हुए 73 वर्ष का समय हो चुका है । आज हमें देखना यह है कि हम संविधान की मूल भावना के अनुरूप अपने देश का निर्माण कर पाए हैं या नहीं ?
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार एवं ‘भारत को समझो’ अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है)