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मोपला दंगों से पहले खिलाफत के दृश्य का प्रतीकात्मक संवाद
अक्टूबर 1920,कालीकट
आज खिलाफत मंडल की सभा में पंजाब से मौलाना अल्लाहबख्श आए हुए थे, कालीकट के मुसलमानों ने खिलाफत मंडल के नेता रामनारायण नंबूदिरी को समझाया कि अलाहबख्श के भाषण से पहले हिन्दू-मुस्लिम एकता दिखाने के लिए जुलूस में अलाहबख्श की बग्गी को घोड़ों के बजाए हिन्दू नौजवानों द्वारा खिंचवाया जाए, इससे हिन्दू-मुस्लिम एकता का पूरे मुल्क में सुंदर संदेश जाएगा, नम्बूद्री राम नारायण खुश हुए, बग्गी में अलाहबख्श तन कर बादशाहों वाले अंदाज में तन कर बैठा था…….
मुस्लिम, सुभान अल्लाह-सुभान अल्लाह और अल्लाह-उ-अकबर का नारा लगाते चलते थे ! हिन्दू,अल्लाहबख्श के ऊपर फूलों की वर्षा करते थे !
हिन्दू युवक अलाहबख्श की बग्गी में घोड़ों की जगह जुते हुए पूरे कालीकट में अल्लाहबख्श को राजा की तरह यात्रा कराते रहे…..मुस्लिम गर्व से छाती फुलाए थे….
हिन्दू, ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता’ का गीत गाते नहीं थकते थे….बस एक छोटी सी हिंदुओं से गलती यह हो गई थी कि एक नायर के मुंह से अल्लाह उ अकबर के बीच ‘वंदेमातरम’ का नारा निकल गया…..
मुस्लिम नौजवानों ने फौरन नायर को जुलूस के बीच से खींच कर निकाल दिया ! हिन्दू नेताओं ने आदेश दिया कि हिन्दू भी अल्ला उ अकबर का नारा लगाएंगे….बड़ी मुश्किल से मुस्लिमों की नाराजी दूर कर जुलूस आगे बढ़ा,
और महानन्दी अय्यर के घर पहुचा……जहां मीटिंग थी……
सदारत कर रहे थे ,मौलाना अल्लाहबख्श … महानन्दी अय्यर ने सुझाव दिया कि चूंकि स्वराज आंदोलन भी जोरों पर है,
अतः मीटिंग में खिलाफत के साथ-साथ ‘स्वराज’ पर चर्चा हो जाये….
मुल्ला एटखान बेहद नाराज हो गए….कहने लगे कि
यह तो हिंदुओं को मुस्लिमों के ऊपर लादने की साज़िश हो रही है…
महानन्दी अय्यर ने अपनी ‘गलती’ की तुरंत क्षमा मांगी…..
गांधी जी ने कहा था कि
किसी भी हालत में खिलाफत तहरीक को सफल बनाना है…..
सयाने अल्लाहबख्श ने कहा कि हिन्दू अगर सच्चा हिन्दू है,
गांधी और खिलाफत तहरीर के लिए दिल से साथ है तो
खिलाफत तहरीर के लिए ‘धन और अन्य संसाधन’ हिंदुओं को देने होंगे,
क्योंकि केरल के मोपला मुसलमान बहुत गरीब हैं , सभा में उपस्थित सभी हिंदुओं ने करतल ध्वनि से इस प्रस्ताव का स्वागत किया,
महानन्दी अय्यर ने कहा की बेशक हिंदुओं को अपनी पत्नियों के ज़ेवर बेचने पड़ जाएं मगर खिलाफत तहरीर के लिए हिन्दू धन की कमी नहीं होने देंगे …..
मगर मगर चंदे की देखरेख के लिए कोई हिन्दू रखा जाता तो खिलाफत तहरीर में हिंदुओं की सहभागिता और दिखती …..सभा में मौजूद सभी मुस्लिम क्रोध में आ गये…..खिलाफत तहरीर पर पैसों की ताकत से हिन्दू कब्ज़ा करना चाहते हैं….एक मौलाना खड़े होकर बोलने लगा…..
हिन्दू होने के नाते तुम्हारा हमें जजिया देने का फर्ज बनता है ! हम इत्तेहाद दिखा रहे हैं तो तुम हिन्दू काफिर हमसे चालबाजी दिखा रहे हो….
.तुम्हारे गांधी की वजह से हमने हिंदूओं को इस तहरीर में शामिल कर लिया है……महानन्दी अय्यर फिर खड़े हुए उन्होंने अपनी ‘भारी गलती’ के लिए क्षमायाचना की…..और तुरंत ही कालीकट के हिंदुओं की तरफ से दस हज़ार रु की रकम मुस्लिमों के हवाले की ….मौलवी अल्लाहबख्श ने कहा कि महानन्दी सच्चे हिन्दू हैं और आला दर्जे के महापुरुष हैं……
कुछ दिनों बाद ही महानन्दी अय्यर सहित हज़ारों हिंदुओं बेरहमी से काट दिये गए, हज़ारों हिन्दू महिलाओं की बलात्कार के बाद हत्या हुई,
हज़ारों का धर्म परिवर्तन हुआ…….देश में खिलाफत आंदोलन की वजह से ‘हिन्दू-मुसलमान एकता’ कायम हुई..
2 —
खिलाफत आंदोलन के बारे में अधिकांश मित्र व पाठक गण नहीं जानते
” सुन्नी/वहाबी इस्लामी खलीफा साम्राज्य ” को खिलाफत कहा जाता है ..!!
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भारतीय इतिहास में खिलाफत आन्दोलन का वर्णन तो है किन्तु कही विस्तार से नहीं बताया गया कि खिलाफत आन्दोलन वस्तुतः: भारत की स्वाधीनता के लिए नहीं अपितु वह एक राष्ट्र विरोधी व हिन्दू विरोधी आन्दोलन था ,, खिलाफत आन्दोलन दूर स्थित देश तुर्की के खलीफा को गद्दी से हटाने के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था . कि तुर्की की “इस्लामिक” जनता ने बर्बर व रूढ़िवादी इस्लामी कानूनों से तंग आ कर एकजुटता से मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्की के खलीफा को देश निकला दे दिया था ,,
भारत में मुहम्मद अली जौहर व शौकत अली जौहर दो भाई खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे..!! गांधी चाहते थे कि मुसलमान भारत की ‘आजादी के आंदोलन’ से किसी भी तरह जुड़ जाएं। अत: उन्होंने 1921 में अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी से जुड कर ‘खिलाफत आंदोलन’ की घोषणा कर दी, यद्यपि इस आंदोलन की पहली मांग खलीफा पद की पुनर्स्थापना थी
*मुसलमान सुन्नी इस्लामी उम्मत और खलीफा, खिलाफत के आगे सोचने लायक तो थे ही नहीं उन्हें बस 786 साल से हिंदुस्तान पर की गई तथाकथित हुकूमत का टिमटिमाहट वाला बुझता दिया इस्लामी रोशनी के साये में उम्मीद जगाने हेतु मिल गया था।
इस खिलाफत आंदोलन के दौरान ही मोहम्मद अली जौहर ने अफगानिस्तान के शाह अमानुल्ला को तार भेजकर भारत को दारुल इस्लाम बनाने के लिए अपनी सेनाएं भेजने का अनुरोध किया इसी बीच तुर्की के खलीफा सुल्तान अब्दुल माजिद सपरिवार (13 पत्नियों के साथ) माल्टा चले गये,
आधुनिक विचारों के समर्थक मुस्तफा कमाल पाशा नये शासक बने
भारत आकर मोहम्मद अली जौहर ने भारत को दारुल हरब (संघर्ष की भूमि जहाँ काफिर का शासन है.) कहकर मौलाना अब्दुल बारी से हिजरत का फतवा जारी करवाया। इस पर हजारों मुसलमान अपनी सम्पति बेचकर अफगानिस्तान चल दिये इनमें उत्तर भारतीयों की संख्या सर्वाधिक थी पर वहां उनके ही तथाकथित मजहबी भाइयों / इस्लामी उम्मा ने ही उन्हें खूब मारा तथा उनकी सम्पति भी लूट ली,
वापस लौटते हुए उन्होंने देश भर में दंगे और लूटपाट की ,केरल में तो 20,000 हिन्दू धर्मांतरित किये गये, इसे ही ‘मोपला कांड भी कहा जाता है …
उन दिनों कांग्रेस के अधिवेशन वंदेमातरम के गायन से प्रारम्भ होते थे,
मोहनदास करमचंद गाँधी ने बिना विचार किये ही इस आन्दोलन को अपना समर्थन दे दिया जबकि इससे हमारे देश का कुछ भी लेना-देना नहीं था जब यह आन्दोलन असफल हो गया, जो कि होना ही था, तो केरल के मुस्लिम बहुल मोपला क्षेत्र में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अमानुषिक अत्याचार किये गए, माता-बहनों का शील भंग किया गया और हत्याएं की गयीं मूर्खता की हद तो यह है कि गाँधी ने इन दंगों की कभी आलोचना नहीं की और दंगाइयों की गुंडागर्दी को यह कहकर उचित ठहराया कि वे तो अपने धर्म का पालन कर रहे थे सिर्फ मोपला ही नहीं अपितु पूरे तत्कालीन ब्रिटिश भारत में अमानवीय मुस्लिम दंगे, लूटपाट और हिंदू हत्याएं हुई थी पर गांधी ने उन पर कभी किसी हिंदू हेतु संज्ञान नहीं लिया उलटा हिंदुओं को ईश्वर अल्ला तेरो नाम का वर्ण संकर गाना सुनाता गवाता रहा,, तो देखा आपने कि गाँधी को गुंडे-बदमाशों के धर्म की कितनी गहरी समझ थी?
1923 का अधिवेशन आंध्र प्रदेश में काकीनाड़ा नामक स्थान पर था,, मोहम्मद अली जौहर उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे जब प्रख्यात गायक विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने वन्दे मातरम गीत प्रारम्भ किया, तो मोहम्मद अली जौहर ने इसे इस्लाम विरोधी बताकर रोकना चाहा इस पर श्री पलुस्कर ने कहा कि यह कांग्रेस का मंच है, कोई मस्जिद नहीं और उन्होंने पूरे मनोयोग से वन्दे मातरम गाया। इस पर जौहर विरोध स्वरूप मंच से उतर गया था।
पर उनकी दृष्टि में उन माता-बहनों का कोई धर्म नहीं था, जिनको गुंडों ने भ्रष्ट किया मुसलमानों के प्रति गाँधी के पक्षपात का यह अकेला उदाहरण नहीं है, ऐसे उदाहरण हम पहले भी देख चुके हैं इतने पर भी उनका और देश का दुर्भाग्य कि हिन्दू-मुस्लिम एकता कभी नहीं हुई ना अब हो सकती है ..!!
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कम्युनिस्टों के जहर को समझने के लिए 1987 में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा छापी गई पुस्तक “India’s Struggle for freedom” का एक अंश है। इसमें मोपला द्वारा किए गए नरसंहार को छिपा दिया गया है।
केरल में मालाबार में हुए दंगों का आर्यसमाज ने 1921 में संज्ञान लिया और महात्मा आनंद स्वामी, ऋषिराम जी एवं अन्य आर्य जन लाहौर से उठकर केरल में राहत और शुद्धि कार्य के लिए गए। कई महीनों तक आर्यसमाज ने वहां शुद्धि और राहत कार्य किया। मालाबार दंगों में मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं पर हुए अत्याचार को महात्मा आनंद स्वामी जी ने पुस्तक रूप में ‘1921 मालाबार और आर्यसमाज’ के नाम से प्रकाशित किया था। इस पुस्तक को 100 वर्ष के पश्चात पुन: प्रकाशित किया जा रहा है। पुस्तक का मूल्य केवल 50 रुपये और पृष्ठ संख्या 88 रुपये है।