माँस मछरिया खात हैं सुरा पान से हेति

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ऋषिराज नागर (एडवोकेट)

भक्ति मार्ग पर चलने के लिए मनुष्य के लिए जरूरी है कि वह अपना शुद्ध चरित्र – आचरण नेक रखे, शराब या नशे का सेवन तथा मांस मछली अण्डे का प्रयोग अपने भोजन में ना करे, अपनी कमाई भी नेक रखे।

संतकबीर साहिब –

“माँस मछरिया खात हैं सुरा पान से हेति।
सो नर जड़ से जावेगे ज्यों मूली का खेत॥

‘माँस अहारी मानवा, परतछ राक्षस अंग ।
ता की संगति मत करो परत भजन में भंग ॥”

सन्त महात्मा फरमाते हैं कि प्रभु या परमात्मा, या खुदा तीर्थ व्रत, हज़, काबै या कैलाश में नहीं मिलता है, और न ही वह मूर्ति पूजा, कर्म काण्ड या धर्म पुस्तकों में है, और न ही वह वाचक ज्ञान, कर्म काण्डी पड़ितों के बताने पर या बाहय आडम्बर से मिलता है, और मूर्तियों के जागरण में ही वह नहीं है। ये सब चीजें केवल मालिक के दिखावी-प्रेम तक सीमित है। परमात्मा शब्द है, और वह मनुष्य को भजन सुमिरन के द्वारा अपने घर या शरीर में मिलेगा।

ईसा मसीह समझाते हैं –

“ख़ुदा की बादशाहत न यहाँ है
न वहाँ है, वह तुम्हारे अन्दर है।”

              (बाइबिल 17-21)

इसी प्रकार कबीर साहिब समझाते हैं कि वह परमात्मा कहीं भी कम या ज्यादा नही है, वह सब में भरपूर है।

“घाटि बधि (बढ़कर) कहीं न देखिये, ब्रझ रहा भरपूर। ”

“तेरा साहिब तुझ में, अन्ते कहूँ न जाय ॥”

“तेरा साहिब तुझ में है, जान सकै तो जान”

सन्त महात्मा कहते हैं कि परमात्मा ने मनुष्य को बनाया है और मनुष्य ने जांति – पांति, ऊँच -नीच व ईंट पत्थर के धार्मिक स्थलों, मन्दिर, मस्जिीद, गिरीजा गुरुद्वारा आदि को बनाया है। मनुष्य का शरीर ही परमात्मा द्वारा बनाया गया धर्म. स्थल है और इसी शरीर में वह मालिक, ख़ुदा अल्लाह God या परमात्मा, प्रभु निवास करता है जिसे भी वह मिला है अपने शरीर या घट में ही भजन- सुमिरन या इबादत से मिला है, और सन्त कहते है कि ‘वह रब पूरे आलम का है ‘ उसे ‘रब्बुल आलमीन कहा गया है।”

हमें प्रेम पूर्वक खुदा की बनाई गई कायनात को अपना समझना है, यह सब कायनात (सृष्टि) को मालिक या खुदा ने हमारे लिए बनायी है और हम भी उस कायनात का हिस्सा है। वह ख़ुदा है, वह खुद आयेगा हम उसे नहीं ढूढ सकते हमें केवल मालिक या खदा की इबादत (भजन सुमिरन) करनी है। हम लोग दिखावा या आडम्बर को भूलकर उस खुदा या मालिक को इस कायनात या सृष्टि का करता समझें । मनुष्य तो केवल इस सृष्टि में प्रभु की या खुदा की इबादत या भक्ति के लिये ही पैदा हुया है। किसी ने कहा है कि –

आये थे हरि नाम को ओटन लगे कपास,
हरि – नाम धर्म सन्तों से ही प्राप्त होता है ।
तथा नाम और सन्त-महात्मा सत्संग के मार्फत प्राप्त होते हैं।

बिन सत्संग विवेक ना होइ
राम कृपा बिन सुलय ना – सोई ।”

  सन्त फरमाते हैं कि हमारी भक्ति के लायक केवल परमात्मा हैं, पशु -पक्षी , पेड़ - पौधे,  जैसे: - पीपल, तुलसी आदि हमारी भक्ति योग्य नहीं है क्योंकि मनुष्य सृष्टि का सिरमौर है वह अपने से नीचे की योनियां की भक्ति नहीं कर सकता है। मनुष्य योनि (जन्म) के लिए देवता भी तरसते हैं। परमात्मा की बनाई हुई सृष्टि में मनष्य सर्वश्रेष्ठ है। अत: मनुष्य जन्म को परमात्मा की भक्ति करके सफल बनाया सकता है। 
         सन्त महात्मा, ऋषि मुनि कहते हैं कि आज के युग में हमें भजन सुमिरन या भक्ति करने के लिए पहाड़ो, गुफाओं बन या जंगलो में जाने की जरूरत नही है। हम ग्रहस्थ में परिवार में रहकर अपने घर पर ही अपना काम-काज या व्यापार आदि करते हुए हरि भक्ति कर सकते हैं। इसलिए क्षमा करें कि मैंने इस डायरी के कुछ पृष्ठों में घर गृहस्थी में काम आने वाली कुछ जरूरी बातों का भी जिक्र अपनी छोटी बद्धि के आधार पर किया है। वे बातें हरेक व्यक्ति के लिए आवश्यक नहीं हैं। इसलिए "जो अच्छा लगे उसे अपना लो, जो बुरा लगे उसे जाने दो।"

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