यह पुस्तक इतिहास की पुस्तक नहीं, स्वयं में इतिहास है* ————————-
आर्य सागर खारी🖋️
यह उपरोक्त वाक्य विनायक दामोदर सावरकर लिखित “18 57 का स्वतंत्रता समर” पुस्तक के विषय में एकदम सटीक है| एक मराठी युवक विनायक कानून की पढ़ाई के लिए विलायत जाता है… इंग्लैंड में उसका परिचय महर्षि दयानंद के अनन्य शिष्य, संस्कृत के विद्वान महान देशभक्त श्यामजी कृष्ण वर्मा से होता है… उस युवक के जीवन की दशा व दिशा दोनों बदल जाती है अब वह साधारण युवक वीर क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर बन जाता है | श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित इंडिया हाउस में रह कर वह युवक इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी ,ब्रिटिश म्यूजियम लाइब्रेरी में घंटों बिता कर 18 57 के स्वाधीनता संग्राम से संबंधित दस्तावेजों में डुबकिया लगाता है | अपनी मूल मराठी भाषा में वह भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम का इतिहास लिखता है… यह पुस्तक की शक्ल में जब आता है तो ब्रिटेन तथा फ्रांस जैसे देशों की माथे पर बल आ जाता है। साम्राज्यवादी ताकतें बौखला उठती है… पुस्तक होलेंड में प्रकाशित होती है… अंग्रेज इस पुस्तक से इतने भयभीत थे यह पुस्तक 1908 से लेकर 50 वर्षों तक अर्थात 15 अगस्त 1947 तक भारत में प्रतिबंधित रही क्रांतिकारी दीवाने इस पुस्तक को छुप-छुपकर कर पढ़ते थे….। भगत सिंह राजगुरु सुखदेव बिस्मिल नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे अनगिनत क्रांतिकारियों ने इस पुस्तक को पढ़कर अपने चिंतन व रणनीति को परिपक्व किया… यह क्रांतिकारियों की गीता बन गई | महर्षि दयानंद के बाद सावरकर वह दूसरे व्यक्ति थे जिन्होने कहा था कि 1857 एक आदर्श राज्य कांति थी ना कि सैनिक विद्रोह या गदर ,ग़दर शब्द यदि हम उस क्रांति के लिए प्रयोग में लाते हैं तो यह उन हजारों महान वीरांगनाओं वीरों का अपमान है जो 18 57 के स्वाधीनता संग्राम में बलिदान हो गए |
सावरकर लिखित इस पुस्तक में अंग्रेज इतिहासकारों लेखको व साम्राज्यवादी शक्तियों के षडयंत्र का पर्दाफाश किया गया | अंग्रेज वीरांगना लक्ष्मीबाई नाना साहब पेशवा तात्या टोपे बहादुर शाह जफर को हत्यारा उपद्रवी बताते थे | 18 57 के गदर को अंग्रेज राजनीतिक क्रांति ना बता कर केवल सैन्य विद्रोह घोषित करते थे… जिससे भारतीय उस महान क्रांति से कोई भारतीय युवक प्रेरणा न ले पाए..|
लेकिन वीर सावरकर द्वारा लिखित इस पुस्तक ने दूध का दूध पानी का पानी कर दिया उन्होंने उन अंग्रेज इतिहासकारों के ग्रंथों से उद्धरण लेकर अंग्रेजों की पोल खोली | सावरकर द्वारा लिखित यह पुस्तक बहुत ही अलंकारी वीरतापूर्ण शैली में लिखी गई है | 18 57 की क्रांति की सफलता असफलताओं के विषय में सावरकर ने बहुत ही उत्तम विश्लेषण किया है |यदि अंग्रेज पलटन की सिख व गोरखा रेजीमेंट गद्दारी ना करती राज निष्ठा की कसमें ना खाती अंग्रेजों के प्रति वफादारी न निभाती तो भारत 1857 में ही साम्राज्यवादी शक्तियों से मुक्त हो जाता | अवध बनारस कानपुर के जमींदारों की भी पोल उन्होंने खोली है भारत की गद्दार रियासते भी शामिल थी उनको भी सावरकर ने आईना दिखाया है… जिनमें अधिकांश राजपूतों की रियासत थी राज स्थान से बिलॉन्ग करती थी। सावरकर यदि इस पुस्तक को ना लिखते तो देश के गद्दारों का पता नहीं चल पाता | अंग्रेजों को सर्वाधिक चोट पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दिल्ली-एनसीआर में पहुंची थी सबसे ज्यादा नुकसान उन्होंने 18 57 की राज्यक्रांति में यहीं पर उठाया था दूसरा नुकसान उन्होंने अवध बनारस इलाहाबाद क्षेत्र में उठाया… पंजाब मद्रास मुंबई प्रांत में यह क्रांति की ज्वाला नहीं भड़क सकी व राजपूताना अर्थात आज के राजस्थान में भी स्वाधीनता की चिंगारी नहीं उठ सकी यह अप्रत्याशित व चौकाने वाला है |
सावरकर की लेखनी ने बता दिया था अंग्रेज वीर नहीं आला दर्जे के कायर हैं… इस पुस्तक को पढ़कर आपको बोध हो जाएगा सावरकर जैसा निडर देशभक्त व्यक्ति अंग्रेजों के सामने कभी माफी मांग ही नहीं सकता… जैसा कि कुछ अल्प बुद्धि उनके विषय में प्रचारित करते रहते हैं दुष्प्रचार फैलाते रहते हैं | अंग्रेज जब लंदन में स्वाधीनता संग्राम के 50 वर्ष मना रहे थे वर्ष 6मई 1908 में उन्होंने तमाम कार्यक्रम लंदन में आयोजित किए उन कार्यक्रमों का कॉमन विषय था जो यह था ” 50 वर्ष पूर्व इसी सप्ताह शौर्य प्रदर्शन से हमारा साम्राज्य भारत में बचा था”| वीर सावरकर अंग्रेजों की धूर्तता का जवाब देने के लिए ठीक 4 दिन बाद 10 may 1908 इस पुस्तक की भूमिका ” ऐ शहीदों” शीर्षक से चार पृष्ठों के पंपलेट के रूप में छापते हैं जो पूरे ब्रिटेन में क्रांतिकारियों के बीच लोकप्रिय हो जाता है | अंग्रेज फिर भी नहीं समझ पाते कि यह तो सिर्फ ट्रेलर है अभी तो असली धमाल हॉलैंड में छप रहा है… 18 57 के इतिहास से संबंधित प्रमाणित पुस्तक के रूप में |
साथियों सावरकर द्वारा लिखित यह पुस्तक बहुत ही विचारोत्तेजक अमूल्य निधि है… जिसको पढ़ कर हजारों युवक बीसवीं सदी के स्वाधीनता संग्राम क्रांतिकारी आंदोलनों की बलिवेदी पर कुर्बान हो गए सावरकर द्वारा लिखित यह पुस्तक करारा तमाचा है उन काले अंग्रेजों के मुंह पर जो सावरकर को नहीं समझते हैं ना सावरकर को उन्होंने कभी पढ़ा है |
आर्य सागर खारी ✍✍✍
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