सुख दुःख के संदर्भ में
रात में प्रभात छिपा है,
मत ना होय अधीर ।
काल चक्र से बच नही पाये,
राजा हो या फकीर॥2117॥
कर्म की आत्मा भाव है –
कर्म फल देता नही,
फल देता है भाव ।
कर्मा शय वैसा बने,
जैसे मन के भाव॥2118॥
ज्ञान-कर्म -उपासना के संदर्भ में –
ज्ञान, कर्म ,उपासना ,
पंख तेरे ही तीन ।
इन तीनों को साधले ,
होगा बंध विहीन॥2119॥
व्यक्ति का व्यक्तित्व वैसा ही बनता है जैसे उसकी वृत्ति होती है –
वाणी का आधार मन,
वृत्ति से व्यक्तित्व ।
जैसा जिसका ज्ञान हो,
वैसा ही कृतित्त्व॥ 2120॥
अमूर्त है, अति सूक्ष्म है, किन्तु संसार का आकर्षण का केंद्र कौन ?
ढाई अक्क्षर से बने,
श्रद्धा शांति प्रेम ।
आकर्षण का केंद्र है,
जैसे योग और थोम॥ 2121॥
संत – संगति के संदर्भ में –
आक्रमकता त्यागनी ,
तो बैठे संत के पास ।
मुदिता औस सुकून दे,
दुरितों का करे नाश॥2122॥
रामचरित्र मानस में भी कहा गया है –
ऐ हि हण कर हमने पहचानि
साधु से होय कभी नहीं हानि
ओइम् के महस्मय (महिमा) के संदर्भ में –
ओइम् मोक्ष का मूल है,
जो जपे आठों याम ।
आत्म – बल ऊचा करें,
मिले प्रभु का धाम॥2123॥
पाचक रस दिखते नहीं,
दिखे न मज्जा मेद ।
व्यापक शक्तिशाली,
मिला ना उसके भेद॥2123 ॥
क्रमशः