महाजनपद काल – एक सम्पूर्ण यात्रा (भाग-5)-वत्स महाजनपद
उगता भारत ब्यूरो
वत्स महाजनपद
वत्स महाजनपद 16 महाजनपदों में से एक है। आधुनिक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तथा मिर्ज़ापुर ज़िले इसके अर्न्तगत आते थे। इस जनपद की राजधानी कौशांबी (ज़िला इलाहाबाद,उत्तर प्रदेश) थी। ओल्डनबर्ग के अनुसार ऐतरेय ब्राह्मण में जिन वंश के लोगों का उल्लेख है वे इसी देश के निवासी थे।उत्तरपूर्व में यमुना की तटवर्ती भूमि इसमें सम्मिलित थी। इलाहाबाद से 30 मील दूर कौशाम्बी इसकी राजधानी थी।वत्स को वत्स देश और वत्स भूमि भी कहा गया है। इसकी राजधानी कौशांबी (वर्तमान कोसम) इलाहाबाद से 38 मील दक्षिणपश्चिम यमुना पर स्थित थी। महाभारत के युद्ध में वत्स लोग पांडवों के पक्ष से लड़े थे।कौशांबी में जनपद की राजधानी प्रथम बार पांडवों के वंशज निचक्षु ने बनाई थी। गौतम बुद्ध के समय वत्स देश का राजा उदयन था जिसने अवंती-नरेश चंडप्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता से विवाह किया था। इस समय कौशांबी की गणना उत्तरी भारत के महान नगरों में की जाती थी।
इस राज्य की सर्वोच्च उन्नति शतानीक के पुत्र उदयन के समय में हुई थी। कहा जाता है, उसका जन्म उसी दिन हुआ था जिस दिन गौतम बुद्ध का हुआ था। इतना तो निश्चित है कि वह बुद्ध का समकालीन था और अपने समय के प्रमुख व्यक्तियों में से एक था।उदयन के साम्राज्य की सीमाएँ ज्ञात नहीं हैं। किंतु संभवत: उसका राज्य गंगा और यमुना के दक्षिण में था और पूर्व में मगध तथा पश्चिम में अवंति से इसकी सीमाएँ मिली थीं। हर्ष की प्रियदर्शिका के अनुसार उदयन ने कलिंग की विजय करके अपने श्वसुर दृढ़वर्मन को पुन: अंग के सिंहासन पर स्थापित किया था। कथासरित्सागर में उसकी दिग्विजय का विशद वर्णन है। किंतु इन विवरणों में ऐतिहासिक सत्य को खोज निकालना कठिन है। एक जातक कथा से प्रतीत होता है कि सुंसुमारगिरि के भग्ग (भर्ग) लोगों का राज्य भी वत्स राज्य के अधीन था।
प्रारंभ में उदयन बौद्ध धर्म के विरुद्ध था। उसने नशे में क्रुद्ध में होकर एक बार पिंडोल नाम के भिक्षु को उत्पीड़ित किया था किंतु बाद में पिंडोल के प्रभाव के कारण ही वह बुद्ध का अनुयायी बना।
यह स्वाभाविक था कि वत्स और अवंती के राजवंश अपनी शक्ति की स्पर्धा में परस्पर शत्रु बनें किंतु उदयन के जीवनकाल में अवंतिनरेश प्रद्योत भी वत्सराज पर आक्रमण करने का साहस न कर सका। कालांतर में, ऐसा प्रतीत होता है कि वत्स राज्य अवंति राज्य के प्रभाव में आकर उसी में मिल गया।
पुराणों में उदयन के बाद वहिनर, दंडपाणि, निरमित्र और क्षेमक के नामों के साथ वत्स के राजाओं की सूची समाप्त होती है। इन राजाओं के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं है। इनमें से वहिनर ही संभवत: बोधिकुमार के नाम से एक जातक में और नरवाहन के नाम से कथासरितत्सागर में उल्लिखित है। पुराणों के अनुसार क्षेमक के साथ वत्स के राजवंश का अंत हुआ। मगध नरेश शिशुनाग के द्वारा अवंति राज्य की विजय के साथ ही वत्स राज्य भी मगध राज्य का अंग बन गया।
ग्रंथों में उल्लेख-
*वत्स देश का नामोल्ल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी है-कि लोकपालों के समान प्रभाव वाले राम चन्द्र वन जाते समय महानदी गंगा को पार करके शीघ्र ही धनधान्य से समृद्ध और प्रसन्न वत्स देश में पहुँचे। इस उद्धरण से सिद्ध होता है कि रामायण-काल में गंगा नदी वत्स और कोसल जनपदों की सीमा पर बहती थी।
*अंगुत्तरनिकाय के सोलह महाजनपदों में वत्स देश की भी गिनती की गई है। वत्स देश के लावाणक नामक ग्राम का उल्लेख भास रचित स्वप्नवासवदत्ता नाटक के प्रथम अंक में है,षष्ठ अंक में राजा उदयन के कथन से सूचित होता है कि वत्स राज्य पर अपना अधिकार स्थापित करने में उदयन को महासेन अथवा चंडप्रद्योत से सहायता मिली थी।
*महाभारत के अनुसार भीम सेन ने पूर्व दिशा की दिग्विजय के प्रसंग में वत्स भूमि पर विजय प्राप्त की थी।