2017 की पहली तिमाही में हमारी ग्रोथ रेट 5.7 प्रतिशत थी, जो कि दूसरी तिमाही में 6.3 प्रतिशत हो गई है। हालांकि यह सुधार प्रभावी नहीं है। न्यून ग्रोथ रेट का पहला कारण काले धन पर सरकार का प्रहार है। जी हां, सरकार की स्वच्छता ही सरकार को ले डूब रही है। जो व्यक्ति तंबाकू का आदी हो जाता है, उसे एक झटके में तंबाकू देना बंद कर दिया जाए, तो वह डिप्रेशन में आ जाता है। इसी प्रकार काले धन पर वार से अर्थव्यवस्था डिप्रेशन में आ गई है।
देश की अर्थव्यवस्था स्वच्छ हो रही है। ऊंचे स्तर पर काले धन का प्रचलन कम हो रहा है, परंतु ग्रोथ अटकी हुई है जैसे अडिय़ल बैल अच्छा दाना खा कर भी चलने को तैयार नहीं होता है। 2017 की पहली तिमाही में हमारी ग्रोथ रेट 5.7 प्रतिशत थी, जो कि दूसरी तिमाही में 6.3 प्रतिशत हो गई है। हालांकि यह सुधार प्रभावी नहीं है, जैसे छात्र यदि 51 के स्थान पर 56 अंक प्राप्त करे, तो भी द्वितीय श्रेणी में ही पास होता है। न्यून ग्रोथ रेट का पहला कारण काले धन पर सरकार का प्रहार है। जी हां, सरकार की स्वच्छता ही सरकार को ले डूब रही है। जो व्यक्ति तंबाकू का आदी हो जाता है, उसे एक झटके में तंबाकू देना बंद कर दिया जाए, तो वह डिप्रेशन में आ जाता है।
इसी प्रकार काले धन पर वार से अर्थव्यवस्था डिप्रेशन में आ गई है। काला धन अर्थव्यवस्था में मोबिल ऑयल का काम कर रहा था। जैसे मंत्री जी और सचिव जी ने 100 करोड़ की घूस लेकर जमीन का सस्ता आबंटन कर दिया। बिल्डर को जमीन सस्ती मिल गई और उसका प्रोजेक्ट चल निकला। मंत्री जी ने 100 करोड़ की राशि को उसी बिल्डर के प्रोजेक्ट में लगा दिया। बिल्डर का प्रोजेक्ट शीघ्र बनने लगा। वर्तमान सरकार ने इस धांधली पर विराम लगाकर आदर्श स्थापित किया है, परंतु इस अच्छे कार्य का भी दुष्परिणाम हो रहा है जैसे तंबाकू बंद करने का होता है। घूस न लेने के कारण बिल्डर को जमीन महंगी लेनी पड़ रही है। किसी जानकार ने बताया कि हरियाणा में पूर्व सरकार प्रयास कर रही थी कि किसी जमीन को 100 करोड़ की घूस लेकर 200 करोड़ में बेच दिया जाए। उसी जमीन को वर्तमान सरकार ने 1000 करोड़ में बेचा। बिल्डर को जमीन 300 करोड़ (200 करोड़ की खरीद एवं 100 करोड़ की घूस) के स्थान पर 1000 करोड़ में मिली। मंत्री जी ने 100 करोड़ की राशि भी प्रोजेक्ट में नहीं लगाई। बिल्डर को यह रकम बैंक से लेनी पड़ी और इस पर ब्याज देना पड़ा। इस प्रकार कंस्ट्रक्शन का धंधा दबाव में आ गया है। कमोबेश यही कहानी दूसरे क्षेत्रों की भी है।
हालांकि कदाचार की इस परंपरा पर रोक लगाने के सिर्फ नकारात्मक प्रभाव ही देखने को नहीं मिले हैं। गहराई से यदि आकलन करें, तो इस साफ-सुथरी व्यवस्था का लाभ भी हुआ है। सरकार को पूर्व में उस जमीन के 200 करोड़ मिलने थे, जो अब मिले 1000 करोड़। सरकार का राजस्व बढ़ा। मान लीजिए इस अतिरिक्त मिले 800 करोड़ रुपए का उपयोग सरकार ने बुलेट टे्रन बनाने के लिए किया अथवा राफेल फाइटर प्लेन खरीदने के लिए किया। इस खरीद में यह रकम देश से बाहर चली गई। बुलेट टे्रन का आयात जापान से किया गया। इस प्रकार नई मांग विदेशों में बनी। जो मांग पूर्व में कंस्ट्रक्शन में घरेलू एल्यूमीनियम और श्रम के लिए बन रही थी, वह समाप्त हो गई। अर्थव्यवस्था साफ-सुथरी हो गई, परंतु मंद पड़ गई, क्योंकि रकम बाहर चली गई जैसे साफ-सुथरे गुब्बारे की हवा निकल जाए।
अब बुलेट टे्रन बन गई। मुंबई से अहमदाबाद जाने में आठ घंटे के स्थान पर तीन घंटे लगने लगे। पूर्व में व्यापारी एक दिन मुंबई से अहमदाबाद जाता था, रात वहां होटल में ठहरता था और दूसरे दिन वापस आता था। अब वह सुबह जाता है और शाम को वापस आ जाता है। अहमदाबाद के होटल का धंधा ठप हो गया। 2018 की चुनौती है कि साफ-सुथरी अर्थव्यवस्था को कायम रखते हुए उध्र्वगामी दिशा दी जाए। उपाय है कि बढ़े हुए राजस्व का उपयोग इस प्रकार किया जाए कि घरेलू अर्थव्यवस्था का चक्का घूमने लगे। जैसे छोटे शहरों में सडक़ और बिजली की व्यवस्था सुधारी जाए। इन सडक़ों को बनाने में सीमेंट एवं श्रम की मांग घरेलू अर्थव्यवस्था में बनेगी, बुलेट टे्रन की तरह बाहर नहीं जाएगी। छोटे शहरों में उद्योग बढ़ेगा तो अहमदाबाद के होटल ग्राहक बढ़ेंगे। छोटे शहरों में सडक़ बनाने के ठेके स्थानीय ठेकेदारों को दिए जाएंगे। तात्पर्य यह कि साफ-सुथरी अर्थव्यवस्था को जो बुलेट टे्रन, आठ लेन के हाई-वे, एयरपोर्ट आदि से जोड़ दिया गया है, वह समस्या पैदा कर रहा है। उसी साफ-सुथरी अर्थव्यवस्था को झुग्गी और छोटे कस्बों की बिजली, लाइट एवं सडक़ से जोड़ा जाए तो अर्थव्यवस्था चल निकलेगी। ‘विकास’ की दिशा आम आदमी की जरूरतों के अनुकूल होनी चाहिए।
ग्रोथ रेट के न्यून रहने का दूसरा कारण उद्यमियों की निराशा है। सरकार ने नोटबंदी तथा जीएसटी लागू करने के समय उद्यमी को चोर तथा नौकरशाह को ईमानदार बताया है। माहौल बना है कि व्यापारी टैक्स की चोरी कर रहे थे। ईमानदार सरकारी कर्मचारियों की मदद से इनके द्वारा की जा रही चोरी को बंद किया जाएगा। सरकार द्वारा टैक्स की इस रकम का उपयोग बुलेट टे्रन के लिए किया जाएगा। बुलेट टे्रन का विवेचन हम ऊपर कर चुके हैं। अब व्यापारी को चोर बताने के प्रभाव को समझें। महाभारत में प्रसंग आता है कि राजा शल्य अपनी सेना के साथ पांडव के पक्ष में आ रहे थे। रास्ते में दुर्योधन ने उनकी बहुत आवभगत की। दुर्योधन का अन्न खा लेने के कारण शल्य को अनचाहे ही कौरवों के पक्ष में युद्ध में उतरना पड़ा, परंतु उनका हृदय पांडवों के पक्ष में था। समयक्रम में वह कर्ण के सारथी के रूप में युद्ध में उतरे। उन्होंने कर्ण के रथ को बड़ी कुशलता से चलाया, परंतु बीच-बीच में पांडवों की बड़ाई और कौरवों की निंदा करते रहे जैसे उन्होंने कर्ण से कहा : ‘तुम अर्जुन की बराबरी नहीं कर सकते हो’। इस प्रकार कर्ण का मनोबल टूट गया और अंत में वह हार गया। तात्पर्य यह है कि किसी को बार-बार चोर कहा जाए तो उसकी ऊर्जा समाप्त हो जाती है। दूसरी तरफ सरकार द्वारा उन्हीं सरकारी कर्मचारियों को ईमानदार बताया जा रहा है, जो वास्तव में चोरी कराते हैं। कहावत है यथा राजा तथा प्रजा। यानी सरकारी कर्मी जैसे होंगे, वैसे ही उद्यमी होंगे। मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि आज उद्यमी के लिए ईमानदारी से व्यापार करना संभव नहीं है, चूंकि सरकारी कर्मी हर पग पर घूस मांगते हैं। सरकार की नासमझी है कि काले धन के मूल कारण सरकारी कर्मियों को ईमानदार बताया जा रहा है और भ्रष्टाचार का जो लक्षण मात्र व्यापारी हैं, उन्हें चोर बताया जा रहा है। गृहिणी ने जो ईमानदारी से 10-20 हजार रुपए तिजोरी में बचाकर रखे थे, वे तो काले हो गए। सरकारी बैंक कर्मी ने पुराने नोटों को बदलने में जो कमाई की वह ‘सफेद’ हो गई। ऐसे विरोधाभासी हालात के नकारात्मक प्रभाव होना स्वाभाविक ही था। इस वातावरण में भारत का व्यापारी सहम गया है। उसकी मानसिक ऊर्जा रक्षात्मक हो गई है। वह व्यापार के झंझट से मुक्त होना चाहता है। बड़ी कंपनियों को छोड़ दें, तो देश की उद्यमिता पस्त हो गई है। यही कारण है कि देश में निवेश कम हो रहा है, सोने की खरीद बढ़ रही है और भारी मात्रा में हमारी रकम विदेशों को जा रही है। इस समस्या का कारगर उपाय है कि केंद्र सरकार नोटबंदी की गलती को स्वीकार करे और व्यापारियों से क्षमा मांगे। जीएसटी के अंतरराज्यीय व्यापार के सकारात्मक पहलू को बढ़ाए और टैक्स वसूली बढ़ाने के नकारात्मक पहलू को दबाए। यदि निवेश की दिशा आम जनता के पक्ष में की जाए और व्यापारी को ईमानदार तथा सरकारी कर्मचारी को भ्रष्ट माना जाए, तो 2018 में अर्थव्यवस्था चल निकलेगी।