चोल साम्राज्य
चोल साम्राज्य भारत का बहुत महत्वपूर्ण साम्राज्य रहा है। जिसे वर्तमान इतिहास में कूड़ेदान में उठाकर फेंक दिया गया है। जबकि यह भारतवर्ष का एकमात्र ऐसा साम्राज्य था जिसने भारत के बाहर भी भारत के यश की पताका फहराई थी। यह पहला ऐसा साम्राज्य था जिसके शासकों ने भारत में नेवी अर्थात जल सेना का विकास और विस्तार किया था।
राजेंद्र प्रथम ने चोल साम्राज्य की सीमा का विस्तार अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, श्रीलंका, मालदीव, मलेशिया, दक्षिणी थाईलैंड और इंडोनेशिया तक कर लिया। इन देशों में आज भी भारतीय अतीत के प्रति लोगों में लगाव देखा जाता है। इसका कारण केवल एक था कि इन लोगों को धर्म और नैतिकता की शिक्षा भारत के चोल राजाओं के माध्यम से प्राप्त हुई थी। कालांतर में इंडोनेशिया जैसे देश में जब मुसलमानों ने अपना वर्चस्व स्थापित किया तो उस काल में भी वहां पर भारतीयता के प्रति लोगों में सद्भावना समाप्त नहीं हुई। उन्होंने देश, काल, परिस्थिति के अनुसार चाहे अपना मजहब परिवर्तित कर लिया हो पर वास्तव में वे अपने पूर्वजों अर्थात भारत के महान शासकों और ऋषियों के प्रति सदा समर्पित रहे हैं और आज भी उनके भीतर यही भाव देखा जाता है।
प्राचीन समय में व्यापार मुख्य रूप से समुद्री मार्ग से होता था। मालों से लदे जहाज हिंद महासागर होकर चीन-जापान व दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों तक माल ले जाया करते थे।
आप तनिक कल्पना कीजिए कि इन देशों में जाकर अपने साम्राज्य को स्थापित करना और निरंतर उसे मजबूत किया रखना उस समय कितना कठिन कार्य होता होगा ? परंतु इस दुष्कर कार्य को हमारे चोल शासकों ने करके दिखाया था।
इन चोल शासकों ने इतना बड़ा विशाल साम्राज्य स्थापित करके भी लोगों के दिलों पर शासन करने को प्राथमिकता दी थी अर्थात उनके मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया था, अपितु जन भावनाओं के अनुरूप शासन करके दिखाया था।
इस साम्राज्य का क्षेत्रफल 36 लाख वर्ग किलोमीटर था। विजयपाल चोल के द्वारा 848 ईसवी में इस साम्राज्य की स्थापना की गई थी जो राजेंद्र चोल तृतीय के शासनकाल अर्थात 1246 से 1279 ईस्वी तक चला। निश्चय ही इतने बड़े साम्राज्य के जनहितैषी शासकों पर हमें गर्व होना चाहिए।
मेरी पुस्तक “25 मानचित्र में भारत के इतिहास का सच” से
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत