अंग्रेजी वर्ष 2023 का मेरा प्रथम प्रवचन और रविवारीय सुविचार*
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विजयी भव का मंत्र है शिष्टाचार
शिष्टाचार में महान बनाने के भी गुण निहित है
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आचार्य श्री विष्णगुप्त
शिष्टाचार प्रथम पहचान है। जब आप किसी से साक्षात मिलते हैं, किसी से इंटरनेट पर शब्द और ध्वनि से बात करते हैं, बेतार के तार यानी मोबाइल आदि से बात करते हैं तो फिर आपका पूरा व्यक्तित्व आकलन और पड़ताड़ की कसौटी पर होता है। सामने वाला व्यक्ति आपके लिखे हुए शब्दों और आपकी जबान से निकलने वाली ध्वनि से यह ज्ञात कर लेते हैं कि आपका व्यक्तित्व कैसा है, आप किस मानसिकता के व्यक्ति है, आपमें कितना सकरात्मक दृष्टि है, कितना नकरात्मक दृष्टि है, आप कितनी विश्वासी हैं, कितनी अविश्वासी हैं, आदि। विपरीत और अपमानित जैसी मानिसकता के सामने भी आपके शिष्टाचार की शक्ति की विजय हो सकती है।
इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण स्वामी विवेकानंद हैं। अमेरिका के शिकागो सम्मेलन में भारत के लिए और सनातन संस्कृति के संबंध में अपमानित करने वाले और घृणात्मक शब्द लिखे हुए थे। शब्द थे, हिन्दू धर्म: मूर्दा धर्म। अर्थ यह कि हिन्दू धर्म मुर्दा घर्म हैं, इसमें जीवंतता है ही नहीं, इसमें सक्रियता नहीं है, इसमें सामंजस्य नहीं है। कोई दूसरा होता तो ऐसे प्रतीक गढ़ने पर अपना रोष व्यक्त कर सकता था, शिकागो सम्मेलन से बॉयकॉट कर सकता था। पर स्वामी विवेकानंद ने शिष्टाचार का रास्ता अपनाया, शिष्टाचार को विजय मंत्र बनाया। उन्होंने विषय के तरफ देखा ही नहीं। शिष्टाचार का विजयश्री पताका फहराया। प्रतिशोध की जगह सम्मानपूर्वक शब्दों को हथियार बनाया। अमेरिकियों के लिए भाइयों और बहनों शब्द का प्रयोग किया। पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। पांच मिनट का निर्धारित समय की जगह स्वामी विवेकानंद घंटों बोलते रहे और पूरा अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भारत की सनातन संस्कृति से चमत्कृत हो गयी, भारतीय ज्ञान-विज्ञान का लोहा पूरी दुनिया मान गयी, स्वामी विवेकानंद महीनों-सालों अमेरिका के लोगों के लिए अध्यात्म का दर्शन बन गये।
शिष्टाचार में कमजोर, नकरात्मक और बइजुबान कभी भी आईकॉन नहीं, रॉल मॉडल नहीं बन सकते हैं, मील के पत्थर नहीं बन सकते हैं, लक्ष्मण रेखा नहीं खींच सकते हैं। अपवाद सच्चाई नहीं होता है। कुछ अपवाद में ऐसे लोग हो सकते हैं कि जो शिष्टाचार में बेहद कमजोर हों, नकरात्मक हो और बदजुबान भी हों फिर भी उंचाइयां ग्रहण कर ली हों, कुछ उपलब्धियां प्राप्त कर ली हों पर संपूर्णता मे ऐसा नहीं हो सकता है। दुनिया में जितने भी महापुरूष हुए हैं, जितने भी भगवान हुए हैं, जितने भी प्रेरक हुए हैं, जितने भी रॉल मॉडल हुए हैं वे सब के सब शिष्टाचार के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण और पोषक रहें हैं। शिष्टाचार सिर्फ बातों तक सीमित नहीं है। शिष्टाचार के दायरे विस्तृत हैं। सिर्फ बोलचाल में ही शिष्टचार के गुण जरूरी नहीं है बल्कि साक्षात्कार और सत्कार में गुणकारी शिष्टचार की आवश्यकता है। आप किस गर्मजोशी और ताजगी के साथ आंगतुक का स्वागत करते हैं, यह भी शिष्टचार का प्रेरक उदाहरण है।
हमारे लिए सीख क्या है? सीख यही है कि हमें विपरीत और अपमानजनक परिस्थितियों में भी आपा नहीं खोना चाहिए, अपने आप को गुस्से से भरना नहीं चाहिए, प्रति उत्तर में बदले की भावना नहीं होनी चाहिए। हमें शिष्टाचार में शालीनता और प्रेरणा के शब्द सीखनी चाहिए। शिष्टचार में प्रत्युक्त होने वाले शब्द नपे-तुले और आकर्षक क साथ ही साथ प्रभावित करने वाले होने चाहिए। अगर आप शिष्टचार पर नियंत्रण हासिल कर लिए तो फिर आपको महान बनने से कोई रोक नहीं सकता है, आईकॉन बनने से कोई रोक नहीं सकता है, रॉल मॉडाल बनने से कोई रोक नहीं सकता है। इसलिए हम सभी को सर्वश्रेष्ठ और समृद्ध शिष्टाचार का पोषक बनना ही चाहिए।
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आचार्य श्री विष्णुगुप्त
नई दिल्ली