दलित कौन?
दलित अंग्रेज़ी शब्द डिप्रेस्ड क्लास का हिन्दी अनुवाद है। ये शब्द हमारे किसी धर्म ग्रथ या इतिहास में नही मिलता है।भारत में वर्तमान समय में ‘दलित’ शब्द कुछ विशेष वर्ग के साथ जोड़ दिया है जिसको गरीबी और अशिक्षा के कारण लम्बे अरसे तक
शोषण-उत्पीडन का शिकार खेलना पड़ा। दरअसल दलित शब्द का शाब्दिक अर्थ है दलन किया हुआ यानि मसला हुआ, मर्दित, दबाया, रौंदा या कुचला हुआ, विनष्ट किया हुआ।
परिणाम:पिछले छह-सात दशकों में ‘दलित’ एक समुदाय विशेष ने अपने साथ जोड़ लिया है चाहे वो किसी भी उच्च पद पर क्यों ना हो ,सत्ता पर बैठे सांसद ,मंत्री ,जज साहिब,राज्यपाल महोदय ही क्यों ना हो ,स्वयं को दलित कहने ने गर्व महसूस करते हैं और सरकारी लाभ लेते रहते हैं,परंतु तथाकथित दलित नेता पुरानी कहानियां सुनाकर इनकी नई पीढ़ी में विष घोलने,अलगाव पैदा करने,अलग राजनीति गुट बनाने और हिंदू धर्म छोड़कर बुद्धिष्ट या ईसाई पंथ अपनाने को प्ररित करते हैं।
आजादी के बाद अंबेडकर,गाँधी और नेहरू ने दलित नाम को संविधान की आड़ ने खूब प्रचारित किया जिसको हर राजनैतिक पार्टी ने लपका और समाज के विघटन का फायदा लिया। पूर्ण समर्थ और शिक्षित वयक्ति भी लाभ हेतु दलित नाम का बिल्ला लगाकर मत्यु पर्यन्त दलित कहलाना पसंद करते है और इसकी आने वाले नस्ले भी दलित।
मेरे विचार से स्वयं को समर्थ होने के बाद भी दलित कहना और वो भीं किसी लाभ हेतु , ईश्वर के प्रति, देश और समाज के प्रति सामाजिक और अध्यात्मिक दोष की श्रेणी में आना चाहिए।
दलित का वास्तविक भावार्थ क्या है?
दलित कोई भी जन्म से नहीं होता ये प्रत्येक व्यक्ति की वर्तमान परिस्थिति पर निर्भर करता है। जैसे कि;
१ जो आर्थिक रूप से अति गरीब हो और जीवन यापन के लिए दुसरे की दया पर जैसे कर्जा ,भीख आदि से उसको निर्वाह करना पड़ता हो
२ जो शारीरिक रूप से इतना कमजोर हो की उसको दुसरे की मदद हमेशा चाहिए
३ जो मानसिक रूप से इतना कमजोर हो की उसको दुसरे की मदद हमेशा चाहिए
४ अत्यंत आर्थिक रूप से कमजोर हो और दुसरे पर निर्भर रहना उसकी मजबूरी हो उसको भी अपवाद स्वरूप दलित कह सकते है
५ गुलाम या बंधुवा मजदूर
६ बिना दोष के जेल में पड़ा कैदी आदि
क्या दलित स्वर्ण बन सकता है
? जो हां बिल्कुल, जब उसकी परिस्थितिया अनुकूल हो जाये तो वह दलित नहीं रह जाता।
फिर शूद्र किसे कहते है?
देखो वर्तमान में प्रचलित जाति (caste) की अवधारणा यदि देखा जाए तो काफ़ी नई है इस प्रकार से वेदों में नहीं है | जाति (caste) के नाम पर साधारणतया स्वीकृत दो शब्द हैं — जाति और वर्ण | किन्तु सच यह है कि तीनों ही पूर्णतया भिन्न अर्थ रखते हैं |
जाति– जाति का अर्थ है जन्म के आधार पर किया गया वर्गीकरण | न्याय सूत्र यही कहता है “समानप्रसवात्मिका जाति:” अथवा जिनके जन्म का मूल स्त्रोत सामान हो (उत्पत्ति का प्रकार एक जैसा हो) वह एक जाति बनाते हैं | ऋषियों द्वारा प्राथमिक तौर पर जन्म-जातियों को चार स्थूल विभागों में बांटा गया है – उद्भिज(धरती में से उगने वाले जैसे पेड़, पौधे,लता आदि), अंडज(अंडे से निकलने वाले जैसे पक्षी, सरीसृप आदि), पिंडज (स्तनधारी- मनुष्य और पशु आदि), उष्मज (तापमान तथा परिवेशीय स्थितियों की अनुकूलता के योग से उत्त्पन्न होने वाले – जैसे सूक्ष्म जिवाणू वायरस, बैक्टेरिया आदि) |
हर जाति विशेष के प्राणियों में शारीरिक अंगों की समानता पाई जाती है | एक जन्म-जाति दूसरी जाति में कभी भी परिवर्तित नहीं हो सकती है और न ही भिन्न जातियां आपस में संतान उत्त्पन्न कर सकती हैं | अतः जाति ईश्वर निर्मित है |
जैसे विविध प्राणी हाथी, सिंह, खरगोश इत्यादि भिन्न-भिन्न जातियां हैं | इसी प्रकार संपूर्ण मानव समाज एक जाति है | ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र किसी भी तरह भिन्न जातियां नहीं हो सकती हैं क्योंकि न तो उनमें परस्पर शारीरिक बनावट (इन्द्रियादी) का भेद है और न ही उनके जन्म स्त्रोत में भिन्नता पाई जाती है |
बहुत समय बाद जाति शब्द का प्रयोग किसी भी प्रकार के वर्गीकरण के लिए प्रयुक्त होने लगा और इसीलिए हम सामान्यतया विभिन्न समुदायों को ही अलग जाति कहने लगे | जबकि यह मात्र व्यवहार में सहूलियत के लिए हो सकता है | सनातन सत्य यह है कि सभी मनुष्य एक ही जाति हैं |
वर्ण – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के लिए प्रयुक्त किया गया सही शब्द – वर्ण है – जाति नहीं | सिर्फ यह चारों ही नहीं बल्कि आर्य और दस्यु भी वर्ण कहे गए हैं | वर्ण का मतलब है जिसे वरण किया जाए (चुना जाए) | अतः जाति ईश्वर प्रदत्त है जबकि वर्ण अपनी रूचि से अपनाया जाता है | जो समय समय पर कर्म के आधार पर बदलते रहते है।
अछूत किसे कहते है : इसका उत्तर बहुत सरल है -जिसको छुनेसे किसी रोग का अंदेशा हो जैसे TB का मरीज ,कोरोना का रोगी, खुजली का रोगी , सर्प , बिच्छू , मगरमच्छ ,ततैया आदि ,जो गंदा हो , इसके अतिरिक्त डॉक्टर जिसने ऑपरेशन के बाद हाथ ना धोये हो ,शौच के बाद हाथ ना धोना आदि
आदि। बाकी कोई अछूत नहीं।
सुझाव सभी मानव ईश्वर की संतान है और सब मिलजुलकर कार्य करे।ऋगवेद के संगठन सुक्क्त के मंत्र यही कहते हैं।
वेद में क्या लिखा है
रुचं नो धेहि ब्राह्मणेषु रुचं राजसु नस्कृधि ।
रुचं विश्येषु शूद्रेषु मयि धेहि रुचा रुचम् ।।
―यजु० १८.४८
हे जगदीश ! आप हम लोगों के विद्वानों में प्रीति से प्रीति को धरो, हम लोगों के क्षत्रियों में प्रीति से प्रीति को करो, वैश्यों और शूद्रों में प्रीति से प्रीति को स्थापित करो। मुझमें भी प्रीति से प्रीति को स्थापित करो।
प्रियं मा कृणु देवेषु प्रियं राजसु मा कृणु।
प्रियं सर्वस्य पश्यत उतशूद्र उतार्ये।। (अथर्ववेद 19-62-1)
मुझे ब्राह्मण का प्रिय कर, मुझे क्षत्रीय का प्रिय कर, मुझे सब का प्रिय कर, शूद्र, वैश्य तक का प्रिय कर।
समाज में आई इस कुरीति को दूर करने के लिए , छुआ छूत दूर करने , शिक्षा आदि के लिए ,दलित उद्धार के लिए आर्यसमाज ने उल्लेखनीय काम किया जिसमें स्वामी श्रद्धानंद जी, अमीचंद शर्मा जी आदि अनगिनत महानुभाव है।
कृपया अपनी मानसिकता ठीक करे,एक दूसरे पर कोई दोषारोपण करने के बजाय प्रीति पूर्वक व्यवहार करे और सभी मनुष्य का सम्मान करें ।
प्रस्तुति : डीके गर्ग