Categories
इतिहास के पन्नों से

25 मानचित्रों में भारत के इतिहास का सच, भाग ……17

गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य

मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत के धर्म व संस्कृति को नष्ट करने और यहाँ पर अपनी इस्लामिक संस्कृति को थोपकर जबरन हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने की प्रक्रिया को लागू करने के उद्देश्य से भारत पर आक्रमण करने आरम्भ किए थे । भारत पर सबसे पहला आक्रमण इस्लाम की ओर से 638 ईसवी में किया गया । सन 712 में किए गए मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से पहले इस्लाम के 9 ख़लीफ़ाओं या आक्रमणकारियों ने भारत पर 15 आक्रमण किए थे , जो कि सारे के सारे असफल रहे थे। जब भारत में गुर्जर प्रतिहार शासक शासन कर रहे थे तो उन्होंने बहुत ही मजबूत इच्छाशक्ति के साथ अपने पूर्ण पराक्रम , शौर्य और वीरता का प्रदर्शन करते हुए इन विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारियों को भारत की सीमाओं पर ही रोकने का सराहनीय कार्य किया था । इस अध्याय में हम यह बताने का प्रयास करेंगे कि इतिहासकारों की दृष्टि में गुर्जर शासकों का यह कार्य कितना प्रशंसनीय और राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत था ? साथ ही यह भी स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे कि निष्पक्ष मुस्लिम विद्वान लेखकों की दृष्टि में भी भारतीय संस्कृति अर्थात आर्य संस्कृति और गुर्जर प्रतिहार शासकों का कितना सम्मान है ?
आर डी बनर्जी कहते हैं :- “प्रतिहार , परमार , चालुक्य ,चौहान , तंवर , गहलौत आदि वंशों को पूर्ण गुर्जर तथा गहरवार , चंदेल आदि वंशों को ( गुर्जर पिता व अन्य जातियों की माताओं से उत्पन्न ) अर्द्ध गुर्जर मानने वाले प्रसिद्ध इतिहासकार श्री आर.डी. बनर्जी ने अपनी पुस्तक ‘प्रीहिस्ट्रीक, एनशिएंट एंड हिंदू इंडिया’ के ‘दी ओरिजिन ऑफ दी राजपूतस एंड द राइज ऑफ़ जी गुर्जर एंपायर’ – नामक अध्याय में गुर्जर प्रतिहार सम्राटों द्वारा देश व धर्म की रक्षा में अरब आक्रमण के विरुद्ध किए गए संघर्षों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि ‘गुर्जर प्रतिहारों ने जो नवीन हिंदुओं अर्थात राजपूतों के नेता थे , उत्तर भारत को मुसलमानों द्वारा विजय करके बर्बाद किए जाने से बचाया तथा इसी प्रकार सारी जनसंख्या को मुसलमान बनने से बचा लिया।’
इस राजवंश के प्रथम संस्थापक राजा नागभट्ट थे। जिन्होंने 725 ई0 में इस वंश की स्थापना की थी। इस राजवंश की राजधानी कन्नौज थी। इसी के प्रतापी राजा गुर्जर सम्राट मिहिर भोज थे। इस वंश के शासकों ने भारत में पहली बार शुद्धि अभियान चलाकर हिंदू से मुसलमान बन गए लोगों की “घर वापसी” सुनिश्चित कराई थी। शुद्धि अभियान के इस महान कार्य से इस वंश के राजाओं की देशभक्ति और संस्कृति भक्ति का परिचय मिलता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि इस वंश के शासकों ने अपनी साम्राज्य लिप्सा की भावना के वशीभूत होकर साम्राज्य विस्तार नहीं किया था बल्कि वह देश, धर्म, संस्कृति की रक्षा के लिए अपना साम्राज्य विस्तार कर रहे थे। उनका अंतिम लक्ष्य विदेशी अरब आक्रमणकारियों को रोककर भारत को बचाने का था। इस साम्राज्य का अस्तित्व 1036 ईस्वी तक बना रहा। इस प्रकार निरंतर 300 वर्ष तक विदेशी आक्रमणकारियों को रोकने का महान कार्य यीशु वंश के शासकों ने किया। दुर्भाग्य से भारत के राष्ट्रीय इतिहास में इस वंश के सभी राजाओं को मिटा दिया गया है।

मेरी पुस्तक “25 मानचित्र में भारत के इतिहास का सच” से

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

Comment:Cancel reply

Exit mobile version