वैदिक सृष्टि संवत की वैज्ञानिकता और कालगणना
कल्पसंवत का प्रचलन अनुचित है। केवल सृष्टि संवत ही प्रामाणिक है। वेद उत्पत्ति संवत की अवधारणा गलत है।
भारतवर्ष पर महर्षि दयानंद का इतना ऋण है कि हम सदियों तक नहीं चुका सकते।
अगर मैं यह कहूं कि आर्य समाज के लोगों पर तो स्वामी दयानंद के विशेष ऋण हैं, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
महर्षि दयानंद ने ही जब आर्य समाज के 10 नियम बनाए तो उसमें यह कहा है कि सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए। महर्षि दयानंद ने सृष्टि के प्रारंभ से अब तक इसको हमारे सामने प्रकट किया जिससे हमारा गौरव जागृत हुआ। क्योंकि इतिहास का आधार ज्योतिष होता है वही स्वामी दयानंद ने हमारे समक्ष रखा है।
चतुर्युग क्या हैं? महायुग क्या हैं ? यह जो 12000 दिव्य वर्षों का होता है । एक दिव्य वर्ष में 360 वर्ष होते हैं। 43,20,000 वर्ष के समक्ष 3 शून्य और लगा देने पर सृष्टि की आयु 4 अरब 32 करोड़ पूरी आ जाती है।
एक कलयुग महायुग का 1/10 भाग होता है।
कलयुग पूरी सृष्टि संवत का एक 1/1000 भाग होता है।
उपरोक्त शीर्षक में लिखी स्वामी दयानंद जी महाराज की बात को ही मैं आपके समक्ष रख रहा हूं।आशा है आर्य समाज के लोग स्वामी दयानंद के अनुयायी हैं कम से कम वे तो सत्य को स्वीकार करेंगे।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं गणित आचार्य ब्रह्मगुप्त ,ज्योतिष आचार्य बालकृष्ण व महर्षि याज्ञवल्क्य जो शतपथ ब्राह्मण के रचयिता हैं व अन्य भारतीय मनीषियों ने अनेक ग्रंथों में कालगणना का अनुपम विवरण दिया है । सूर्य सिद्धांत आदि विद्यमान ज्योतिष ग्रंथ, मनुस्मृति, पुराण, महाभारत के वन पर्व में काल गणना के संबंध में वैज्ञानिक, ज्योतिषीय एवं दार्शनिक विवेचना पाई जाती है।
सृष्टि संवत मनुष्य उत्पत्ति से नहीं प्रत्युत सृष्टि उत्पत्ति के आरंभ से मानना पड़ेगा ,अर्थात सृष्टि उत्पत्ति स्वयंभुव मनु से और मनुष्य उत्पत्ति वैवस्वत मनु से माननी पड़ेगी। वैवस्वत मनु के अनुसार मनुष्यों को उत्पन्न हुए लगभग 12 करोड वर्ष हुए हैं।
भारतीय विज्ञान सदैव से प्रत्यक्ष व प्रकृति से समन्वय स्थापित करके चलता है, इसलिए काल की गणना भी इसी से संबंध रखती है ।अल्बर्ट आइंस्टीन महान वैज्ञानिक ने भी टाइम एंड स्पेस की थ्योरी में यही पाया है। भारतीय मनीषियों ने पूरे ब्रह्मांड की आयु की गणना की है ।100 वर्ष से लेकर दिव्य वर्ष परार्ध तक की गणना की है। कलयुग सबसे छोटा युग है जो सब का आधार माना है।
युगों के नाम यजुर्वेद में आते हैं। ऋग्वेद में 12000 मंत्र हैं और 12000 दिव्य वर्षों का एक महायुग होता है। इसी प्रकार यजुर्वेद सामवेद के मंत्र 8000 तथा 4000 का योग भी 12000 आता है। पृथ्वी की आयु की गणना करने के लिए सूर्यताप, भूताप, समुद्र क्षार ,भूगर्भीक प्रकार और रेडियोएक्टिविटी के द्वारा वैज्ञानिकों ने अनुमानित की है। जो क्रमशः 18 से 20 मिलियन वर्ष, 20 से 60 मिलियन वर्ष, 100 मिलियन वर्ष, 100 मिलीयन वर्ष, 370 मिलियन वर्ष आती है।
एक मिलियन 1000000 वर्ष का होता है।
ऑर्थर होम्स नामक विद्वान ने पृथ्वी की आयु को भी निकालने का प्रयास किया है ।लेकिन यह सब सिद्धांत एवं गणना , हमारी कालगणना से मेल नहीं खाते हैं ।यह सब निश्चयात्मक नहीं है।
हमारे शास्त्रों में तो सृष्टि उत्पत्ति, पृथ्वी की उत्पत्ति, मनुष्य उत्पत्ति का जन्म -पत्र, रोजनामचा बना बनाया रखा है।
हमारे यहां जब यह जो होता है प्रतिदिन हमारा पुरोहित पंडित इस मंत्र को निश्चित रूप से बोलता है।
“द्वितीय परार्ध वैवस्वतमन्वतरे अष्टाविशन्ति कलौयुगे 5123 गताब्दे”
पंडित कहता है कि यह वैवस्वत मनु का 28वा कलि है ,जिसके 5123 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और यह द्वितीय परार्ध चल रहा है। (अर्थातपहला परार्थ समाप्त हो चुका है)
अथर्ववेद में 8/ 2/21 में कल्प के वर्षों की संख्या इस प्रकार बतलाई गई है। “शतम ते अयुतम हायनान्दे युगे त्रिणी चत्वारि कृणम।”
अर्थात सौ अयुत वर्षों के आगे दो तीन और चार की संख्या लिखने से कल्पकाल निकल आएगा।
उल्टी गिनती सोने के सामने 234 लिखी जाएंगी जिनको सीधी करने पर 4 अरब 32 करोड़ हो जाता है। यही उल्टी गिनती करने का सिद्धांत है। अयुत 10000 वर्ष का होता है। इसलिए 100 अयुत 10 लक्ष् हुए। 10 लक्ष् के 7 शून्य लिखकर उनके पहले दो तीन चार (उल्टी गिनती)लिखने से चार अरब 32 करोड़ वर्ष होते हैं ।यह संख्या 1000 चतुर्युगियों की है। इसी को ब्रह्मा का दिन या कल्प की संख्या कहते हैं। यजुर्वेद ( 30 /18 ) में चारों युगों के नाम भी दिए हैं।
इस प्रकार यह ज्योतिष की प्रबल गणनाएं हैं। जो युगों को ज्योतिष का सिद्धांत अनुसार बतलाती हैं।सूर्य सिद्धांत के अध्याय 1 में यह प्रमाण भी दिया गया है कि एक चतुर्युग में सूर्य ,बुध ,मंगल, शुक्र, शनि और बृहस्पति 43,20,000 भ्रमण करते हैं। यही संख्या चतुर्युगियों की भी है ।इस प्रकार से भी युग ज्योतिषमूलक ही सिद्ध होते हैं।
आज हम उपरोक्त सभी सिद्धांतों के दृष्टिगत विचार करेंगे कि सृष्टि के निर्माण को कितने वर्ष व्यतीत हो चुके हैं ?
इसके अलावा चारों युगों की काल गणना ,आयु सीमा अर्थात् कालावधि कितनी है ? कितना समय चारों युगों के योग का होता है?
मुझसे बहुत सारे साथियों का आग्रह आया है कि इस विषय में शास्त्रोक्त बातों को रखने का और इस विषय में उचित तर्कों सहित बताया जाए। इसलिए मैंने यह न्यून प्रयास किया है। बहुत सारी पुस्तकों का अध्ययन करने के उपरांत मैं इस लेख को लिख रहा हूं।
उदाहरण के तौर पर उन्होंने निम्न प्रकार दो संवत बताएं और दोनों में अंतर पूछा है।
दोनों संवत में करीब एक करोड़ 29 लाख कुछ हजार वर्ष का अंतर है । दोनों अलग अलग क्यों है? जैसे कि सृष्टि संवत 1,97 ,29,49,123, वेद उत्पत्ति संवत 1, 96, 08,53,,123।
ऐसे ही अनेक संबंधित एवम प्रासंगिक बिंदुओं पर विचार करते हैं।
प्रश्न : कलयुग का प्रारंभ कब हुआ?
उत्तर : कलयुग का प्रारंभ सन के अनुसार 20 फरवरी 3102 ईसा पूर्व को समय 2 बजकर 27 मिनट 30 सेकंड पर हुआ था।
प्रश्न: किसी भी युग का प्रारंभ कब होता है?
उत्तर : प्रत्येक 4,32,000 वर्ष बाद ब्रह्मांड के 7 ग्रह एक पंक्ति अर्थात सीध में (शास्त्रोक्त बातों के अनुसार युति में) जब आ जाते हैं उसी समय युग का प्रारंभ होता है।
प्रश्न : कलयुग का अब तक का कितना समय गुजर चुका है?
कलयुग का अब तक जो समय 5123वर्ष हो चुके हैं।
प्रश्न : चारों युगों क्रमश: सतयुग, त्रेता ,द्वापर, कलयुग का कुल समय अलग-अलग व चारों का योग क्या होता है ?
उत्तर : सतयुग का 17 लाख 28 हजार वर्ष का समय होता है , त्रेता 12 लाख 96000 वर्ष , द्वापर 8 लाख 64 हजार वर्ष व कलयुग का 4,32,000 वर्ष का समय होता है.।
प्रश्न: सतयुग( जिसको कृतयुग भी कहते हैं ,)में प्रत्येक 4,32,000 वर्ष बाद सातों ग्रह एक युति में आते हैं अर्थात 4 बार आएंगे।
इसलिए सतयुग का काल कलयुग के काल का 4 गुना है। त्रेता युग का काल 3 गुना है उसमें सातों ग्रह एक युति में तीन बार आते हैं। द्वापर में सातों ग्रह दो बार एक् युति में आते हैं इसलिए वह कलयुग का 2 गुना है। कलयुग में केवल एक बार आते हैं और जब आएंगे तभी कलयुग की प्रारंभ माना जाता है। विशेष ध्यान दें इस कलयुग का प्रारंभ है उस समय हुआ था जब महाभारत का युद्ध चल रहा था। जिसकी घोषणा श्री कृष्ण जी महाराज द्वारा उसी समय कुरुक्षेत्र के मैदान में कर दी गई थी।
यहीं पर विचार करेंगे तो पाएंगे कि कलयुग शेष 3 युगों में भी ओतप्रोत है । इसलिए यजुर्वेद 30/18 में कलयुग को आसकन्द कहा गया है।
प्रश्न :एक चतुर्युगी का कुल कितना योग होता है?
उत्तर:एक चतुर्युगी 43,20,000 वर्ष की होती है।
प्रश्न : महा युग किसे कहते हैं?
उत्तर,: चारों युगों को एक साथ जोड़ कर जो समय 43 लाख 20000 वर्ष का काल बनता है उसको ही एक महा युग कहते हैं।
अर्थात चतुर्युगी एवं महायुग एक ही होते हैं।
प्रश्न : मन्वन्तर क्या होता है?
उत्तर_ यह भी एक कालगणना है।
जब 71 बार चतुर्युगी ( महायुग) व्यतीत हो जाते हैं तो यह एक मन्वन्तर होता है।
स्पष्ट होता है कि एक मन्वन्तर में 71 महायुग (अर्थात चारों युगों का संयुक्त जोड़ )होते हैं।
प्रश्न : 71 महायुग का कुल कितना समय होता है?
उत्तर: 30 करोड़ 67 लाख20000 हजार वर्ष होते हैं।
प्रश्न ,: प्रलय कब होती है?
उत्तर : -14 मन्वन्तर गुजर जाने के बाद प्रलय होती है।
प्रश्न : -कल्प क्या होता है?
उत्तर :- 14 मन्वन्तरों का एक कल्प होता है।
प्रश्न – अब तक इस सृष्टि के कितने मन्वन्तर बीत चुके हैं ?
उत्तर – 6 मन्वन्तर बीत चुके हैं।
प्रश्न:एक मवन्तर का काल ₹30,67,20,000 को 6 से गुणा करने पर 1,84, 03,20000 वर्ष आते हैं। अर्थात 1,84,03,20000 वर्ष का काल 6 मवन्तरो का व्यतीत हो चुके हैं।
प्रश्न: उक्त 6 मवन्तरो की अवधि के अतिरिक्त और क्या जोड़ना चाहिए?
उत्तर: सतयुग के 17,28,000 वर्ष त्रेता के 12 ,96000 वर्ष द्वापर के ,8,64000 वर्ष और कलयुग के 5123 वर्ष जोड़ने चाहिए। तथा 27 चतुर्युगी जो अब तक व्यतीत हो गई हैं उनको भी जोड़ना होगा। जिसका समय है 11, 66,40,000 वर्ष।
प्रश्न: इनका कुल योग कितना होता है?
1,96, 08,53,123 वर्ष।
यही सृष्टि संवत है।
प्रश्न – ब्रह्मा का दिन क्या होता है?
उत्तर_ ब्रह्मा के 1 दिन को कल्प कहते हैं अथवा सृष्टि समय कहते हैं ।जिसमें चार अरब 32 करोड वर्ष होते हैं।
प्रश्न: ब्रह्मा के 100 वर्ष का काल कितना होता है?
उत्तर: 31,10,40,000000000.
31 नील ,10खरब, 40 अरब वर्ष की संपूर्ण प्रक्रिया होती है।
प्रश्न: ब्रह्मा के उपरोक्त 100 वर्ष की आयु में कितने परार्ध होते हैं?
उत्तर: दो परार्ध होते हैं ।इनमें से ब्रह्मा के पहले प्रकार परार्ध का अवसान हो चुका है। दूसरा परार्ध चल रहा है। जिसको हमारा पुरोहित प्रत्येक पुनीत कार्य करने से पूर्व अथवा यज्ञ करने से पूर्व बोलता है।
प्रश्न ,- 14 मन्वन्तर में कितनी चतुर्युगी बीत जाती हैं?
उत्तर ,- एक सहस्त्र अर्थात 1000 (अर्थात एक हजार) चतुर्युगी। जिसका कुल योग 4 अरब 32 करोड़ वर्ष हो गए।
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है।
प्रश्न – स्वायम्भुव मनु किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जिस समय नाक्षत्रिक सृष्टि उत्पन्न होती है ,उस काल को स्वायम्भुव मनु कहते हैं। सरल भाषा में जिस समय केवल आकाश में नक्षत्र उत्पन्न होते हैं उस काल को नाक्षत्रिक सृष्टि कहा जाता है। जिसमें परमाणुओं के संघात से युग्म उत्पन्न होते हैं।
ईश्वर पहले नक्षत्रों का निर्माण करता है ।सबसे बाद में मनुष्य को उत्पन्न करता है। क्योंकि मनुष्य के लिए सब आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता पहले से हो इसका ईश्वर ध्यान रखता है। इसीलिए वह बहुत दयालु है। हम उसकी संतान हैं।
प्रश्न: स्वायंभुव मनु के अतिरिक्त और कितने मनु होते हैं?
उत्तर: 6 मनु और होते हैं।
प्रश्न:कौन-कौन से हैं?
दूसरा मनु स्वरोचिष जिसमें पृथ्वी तैयार होती है।
तीसरे मनु में पृथ्वी से चंद्रमा पृथक होता है। चौथे मनु में समुद्र से पृथ्वी निकलती है। पांचवें मनु में वनस्पति पैदा होती है। छठे मनु में पशु तथा सातवें मनु वैवस्वत में मानुषी सृष्टि होती है।
प्रश्न : भारतीय पंचांग में मासों, सप्ताहों,दिनों का निर्धारण किस पर आधारित है?
उत्तर: एक वैज्ञानिक प्रक्रिया के अंतर्गत निर्धारण किया जाता है। वेदों में 12 मासों के नाम आते हैं। क्योंकि पृथ्वी 12 मास में सूर्य का एक चक्कर लगाती है। इस प्रकार यह प्राकृतिक है। कोई मानवी कार्य नहीं है। भारत में 1 वर्ष के 360 दिन प्रारंभ से ही माने जाते हैं। भारत के ज्योतिषाचार्यों एवं गणितज्ञों ने पृथ्वी की गति का ज्ञान प्रारंभ से ही प्राप्त कर लिया था। उसके बाद भारतीय वैज्ञानिकों ,ज्योतिषियों ने वर्ष की वास्तविक गणना करने का आधार चंद्रमा के द्वारा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने वाली कक्षा से किया गया है। इसलिए चंद्रमास कहा जाता है। जो 30 तिथियों का होता है ।भारत में सप्ताह के 7 दिन के नामकरण भी प्राचीन काल से हैं ।आर्यभट्ट महान वैज्ञानिक ,गणित आचार्य ने सातों दिनों की महत्ता पर प्रकाश डाला है। सूर्य सिद्धांत पुस्तक में भी इसका उल्लेख मिलता है।
प्रश्न – वैवस्वत मनु क्या होता है?
उत्तर :- जब मानव सृष्टि उत्पन्न होती है, उसको वैवस्वत मनु कहते हैं ?
प्रश्न :- मनु की अब तक कितनी चतुर्युगी बीत चुकी हैं? अर्थात वैवस्तव मनु या मनुष्य की सृष्टि उत्पन्न हुए कितना समय हो चुका है?
उत्तर :- वैवस्तव मनु की 27 चतुर्युगी बीत चुकी हैं । यह 28 वां कलियुग चल रहा है ।इसके बाद अर्थात इस कलयुग के बाद 28 चतुर्युगी संपन्न हो चुकी होंगी।
जैसा कि यज्ञ का ब्रह्मा अथवा पुरोहित यज्ञ के पूर्व बोलता है।
प्रश्न – क्या यह सब कल्पित एवं गपोड़ हैं ?
उत्तर :- यह सब वैज्ञानिक ज्योतिष गणना के आधार पर है अर्थात कल्पित नहीं है।
प्रश्न वैवस्वत मनु से आज तक का योग क्या होता है ?
उत्तर : 12,05,33,123 वर्ष के लगभग हो चुके हैं जिसमें सतयुग, त्रेता, द्वापर एवं कलयुग के 5123 वर्ष 28 वी चतुर्युगी के शामिल है। (ऊपर भी बताया जा चुका है)
प्रश्न :- ये व्यवस्था क्या ज्योतिष के सिद्धांतों पर अवलंबित है?
उत्तर_ज्योतिष के सिद्धांतों पर तो अवलंबित है ही परंतु वहीं तक परिमित नहीं है ,अपितु महाभारत और बाल्मीकि रामायण तक में भी हैं ।अतएव युगों के द्वारा ठहराया हुआ सृष्टि सम्वत आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से कहीं अधिक विश्वास के योग्य है।
इसी साधन से हम कह सकते हैं कि वर्तमान में प्रचलित इस मानव सृष्टि को उत्पन्न हुए 6 मन्वन्तर ,27 चतुर्युगी तथा तीन युग क्रमश: सतयुग, त्रेता, द्वापर और चौथे कलियुग के 5123 वर्ष बीत चुके हैं।
प्रश्न – पृथ्वी कब बनी और मनुष्य सृष्टि कब हुई ?
उत्तर – नक्षत्र सृष्टि के समय पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। पृथ्वी में से टूटकर चंद्रमा का निर्माण हुआ। नाक्षत्रिक सृष्टि की वर्ष संख्या कुछ कम 2अरब वर्ष है। जिसका ऊपर हम उल्लेख कर चुके हैं
परंतु यहां यह उल्लेख करना भी अति महत्वपूर्ण होता है कि महर्षि दयानंद ने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में जगत की उत्पत्ति एवं वेदों के प्रकाश में कितना समय व्यतीत हुआ, संबंधी प्रश्न का उत्तर देते समय एक अरब 96 करोड़ कई लाख और कई सहस्त्र वर्ष जगत की उत्पत्ति और वेदों के प्रकाश होने में हुए बताएं हैं।
तथा महर्षि दयानंद द्वारा ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में इस पर विशेष रूप से उल्लेख किया है।
परंतु यह समय मनुष्य की उत्पत्ति का नहीं है ।यहां यह अंतर सावधानीपूर्वक एवं समझदारी से समझ लेना चाहिए ।यह समय जगत अथवा सृष्टि की उत्पत्ति के आरंभ से आज तक का है। सृष्टि उत्पत्ति तब से मानी जाती है जब से नक्षत्र सृष्टि का बनना आरंभ हुआ था। जबसे परमाणुओं का युग में बनना प्रारंभ हुआ था जबसे परमाणुओं का संघात प्रारंभ हुआ था ।जब से परमाणु से अणु,अणु से द्वयणु, आदि बने थे।यह वह समय है जब प्रलय का समय पूरा होकर सृष्टि का बनना आरंभ हुआ था। अर्थात उन्मुक्त प्रकृति का परस्पर संघात आरंभ हुआ था । परमाणु से अणु , द्वयक अणु,तृसरेणु आदि आरंभ होते हैं। इस समय से लेकर सूर्य, ग्रह, नक्षत्र आदि बनने तक के समय को स्वायम्भुव मनु कहते हैं। स्वायम्भुव मनु के समय में उत्पन्न उत्तानपाद ध्रुव आदि नक्षत्र आकाश में विद्यमान हैं ।
जिन का हिसाब ऊपर हम 27 चतुर युगी के बाद दे चुके हैं।
जब प्रलय काल आएगा तो यह क्रम विपरीत हो जाएगा।
अर्थात अंतिम सातवें स्थान पर उत्पन्न हुआ मनुष्य प्रलय के समय सर्वप्रथम नष्ट होगा। पहले मनुष्य नष्ट होगा । उसके बाद पशु नष्ट होंगे। ऐसा ही प्रत्येक के विषय में पढ़ें व मान लें अर्थात जान लें।सृष्टि के आरंभ का अर्थ है छूटे हुए परमाणुओं का फिर से मिल जाना।
जब से परमाणु मिलने लगते हैं तभी से सृष्टि का आरंभ माना जाता है ।तभी से ब्रह्मा का दिन शुरू होता है। तभी से कल्प का आरंभ होता है।
जब तक 1 -1 परमाणु अलग-अलग न हो जाए तब तक सृष्टि ही समझी जाती है अर्थात परमाणुओं का बिल्कुल छूट जाना ही पूर्ण प्रलय है।यह स्मरण रखना चाहिए कि मनुष्य, प्राणी, सूर्य ,चंद्र ,पशु ,पक्षी , वनस्पति या पल्लव के बाद ही उत्पन्न हुआ है । इन सब के रहते ही मनुष्य का अंत हो जाएगा अर्थात सबसे पहले मनुष्य का ही अंत होगा।
यद्यपि 12करोड़ 5लाख 33 हजार 123 वर्षों का जो विवरण हम ऊपर दे करके आए हैं ,यह अविश्वसनीय सी लगती है परंतु यह संख्या विज्ञान व ज्योतिष के आधार पर सही निकलती है। यही काल मनुष्य की उत्पत्ति का होता है।
संदर्भ– पंडित रघुनंदन शर्मा की पुस्तक” वैदिक संपत्ति “और महर्षि दयानंद की कृति अमर ग्रंथ “सत्यार्थ प्रकाश”एवं ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका
कुछ और संबंधित प्रश्न।
प्रश्न :- मनुष्य की उत्पत्ति सर्वप्रथम कहां पर हुई ?
उत्तर – महर्षि दयानंद के अनुसार ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में जिस प्रकार उल्लेख आया है कि त्रिविष्टप पर्वत जिसकी एक शाखा उत्तर में चीन की तरफ जाती है पूरब में असम तक जाती है और पश्चिम में हिंदू कुश पर्वत माला जाती है । तीन शाखाओं का होने के कारण त्रि शब्द का प्रयोग किया गया है ,जिसे अब हम तिब्बत कहते हैं, पर मनुष्य की उत्पत्ति हुई। यहीं से भारत की प्राचीन सभ्यता जैसे-जैसे भारत के आर्य लोग बाहर जाते रहे। उन देशों में किसी न किसी घटना के आरंभ होने से अपना संवत ,साका या कालगणना चली आ रही हैं। उन सब संवत के कालगणनाओं के आधार पर भी मनुष्य करोड़ों वर्ष से अपनी ऐतिहासिक वर्ष संख्या चला रहा है। यह ऐतिहासिक घटनाएं हैं। जो झूठी नहीं हो सकती ।ऊपर दिए हुए आर्यों के मौलिक संवत से चीनियों का सम्वत कुछ ही कम है उसकी वर्ष संख्या 9 करोड़ 60 लाख 2429 है। खताई लोगों का संवत 8 करोड़ 88 लाख 40 हजार 301 वर्ष का है।
इन संवतो की लंबी संख्याओं को असत्य न समझना चाहिए ।
चाईलडिया वाले पृथ्वी की उत्पत्ति को 215 मिरियाद वर्ष बतलाते हैं 1 मिरियद 10000 वर्ष का होता है इसलिए उनका संवत दो करोड़ 1500000 वर्ष तक जाता है, परंतु यह पृथ्वी की उत्पत्ति का समय नहीं है किंतु उनके किसी संवत का समय है।
परंतु सत्यार्थ प्रकाश में सृष्टि संवत को 1 ,97 29,49,122 वर्ष होने का उल्लेख महर्षि ने नहीं किया है। उन्होंने एक अरब 96 करोड़ की जो संख्या बताई है उससे आगे उन्होंने कुछ नहीं लिखा है। जिसका तात्पर्य होता है कि वह एक अरब 97 करोड़ की संख्या को नहीं लिखा।
इसलिए हे श्रेष्ठ जनों! हे आर्य पुरुषों! महर्षि दयानंद की बात को ही सत्य जानो तथा कल्प संवत को अपने मस्तिष्क से निकाल दो।
कुछ अन्य संवतो का विवरण प्रस्तुत करना भी आवश्यक हो जाता है। जिससे हम अपने संवत को सर्वथा उचित ही ठहराएंगे ।उनसे हम तुलनात्मक रूप से अध्ययन करते हैं।
चीन के प्रथम राजा से चीनी संवत क्या है?
9 करोड़ 60 लाख 2 हज़ार 429 वर्ष।
खता की प्रथम पुरुष से खटाई संवत क्या है?
8 करोड़ 88 लाख 40 हजार 301 वर्ष।
पृथ्वी की उत्पत्ति का चाल्डियन संवत क्या है?
2 करोड़ 1500000 वर्ष।
ईरान के प्रथम राजा से ईरानियन संवत क्या है?
1लाख 89हजार 908 वर्ष है।
आर्यों के फिनिशिया जाने का समय क्या है उनका संवत क्या है?
30000 वर्ष।
आर्यों के इजिप्ट (मिश्र )जाने के समय से इजिप्शियन संवत क्या है?
28, हजार 582 वर्ष।
मूसा के धर्म प्रचार से मूसाई संवत क्या है?
३४९६ वर्ष।
ईशा के जन्मदिन से ईसाई संवत क्या है?
हम सभी जानते हैं इसको जो वर्तमान में प्
अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 💯🙏